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सबसे पहले कश्मीर मसले पर चर्चा करते हैं हुर्रियत कांफ्रेस के सैयद अली रज़ा गिलानी अपने आपको कश्मीर के मामले में सत्याग्रही साबित करना चाहते हैं बेशक कश्मीर मसले पर रज़ा गिलानी साहब के नापाक इरादे साफ़ नज़र आते हैं वो कहीं न कहीं पडोसी मुल्को के लिए मोहरे का काम रहे हैं वो शायद भूल गए है कश्मीर की तो बात दूर यहाँ की एक इंच ज़मीन को भी भारत से अलग नहीं किया जा सकता है वे अलगाववाद के कभी पूरा न होने वाले अपने मकसद को पूरा करने के लिए कश्मीरी युवायों को बरगला रहे हैं उन्हें हिंसा के लिए उकसा रहे हैं सबसे बड़ा सवाल यह है की वो वास्तव में आज़ादी के किस रूप को चाहते हैं? क्या कश्मीर आज आजाद नहीं हैं ? शायद उन्होंने आज़ादी की गलत परिभाषा को अपने ज़ेहन में बैठा लिया है
उनके समझने के लिए प्रधानमंत्री वी पी सिंह का लाल किले की प्राचीर से दिया गया बयान ही काफी है जिसमे उन्होंने कहा था यदि आज़ादी की बात की जाये तो उसे इतनी दी जाएगी जैसे ज़मीन से लेकर आसमान, लेकिन यदि कोई आज़ादी का गलत मतलब निकालता है तो वह आज़ादी को भूल जाए उनके बयान से साफ़ है भारत जब आज के मुकाबले सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली नहीं था तब कश्मीर को भारत से अलग करने में न पाकिस्तान और न अलगवादी कामयाब हो सके तो अब जब भारत विश्व की महाशक्तियो में शामिल है वे ऐसा सोचकर अपना समय और उर्जा दोनों बर्बाद कर रहे हैं
वही पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती कश्मीर में जारी हिंसा और अशांति के लिए नेशनल कांफ्रेस की सरकार को ज़िम्मेदार मान रही हैं उनका कहना है उमर अब्दुल्ला कश्मीर को चलाने में पूरी तरह नाक़ामयाब रहे हैं वे बेशक युवा हैं लेकिन महलों की चारदीवारी में रहकर आम युवा को नहीं समझा जा सकता है जो आज हिंसा पर उतारू है यह बात उन्होंने एक जाने माने अख़बार को दिए इंटरव्यू मेंकही लेकिन यदि महबूबा जी से भी पूछा जाये कि कश्मीर कि अमन शांति के लिए वो क्या विशेष प्रयास कर रही है? इसका उत्तर तो उनको ही पता होगा लेकिन आम जनता को उनका कोई खास प्रयास दिखाई नहीं देता है वैसे कश्मीर मसले से नज़दीक से रूबरू होने के लिए राजनैतिक लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल कश्मीर जा रहा है देखते हैं वहां के लोग उनको कैसे लेते है, वैसे सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद कि जानी चाहिए
चलो अयोध्या मसले पर थोडा और गंभीरता से चर्चा करते हैं .................................... '