रविवार, 19 सितंबर 2010

केंद्र से लेकर किचिन पोलिटिक्स में भी अयोध्या और कश्मीर का मुद्दा

भारत के लिए आगामी सप्ताह बड़ा ही चुनौतीपूर्ण रहने वाला है सबसे बड़ी बात अयोध्या मसले पर २४ सितम्बर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ का बहुप्रतिक्षित निर्णय आने वाला है वही दूसरी और कश्मीर में अलगाववाद अलाव को हवा देने के मकसद से हुर्रियत कांफ्रेस के नेता सैयद अली रज़ा गिलानी ने २१ सितम्बर को सेना के कैम्पों के सामने धरना देने का ऐलान कर दिया है इन सभी पहलुओं कोदेखते हुए आगे आने वाले कुछ दिन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए बड़े चुनोतिपूर्ण रहने वाले हैं



सबसे पहले कश्मीर मसले पर चर्चा करते हैं हुर्रियत कांफ्रेस के सैयद अली रज़ा गिलानी अपने आपको कश्मीर के मामले में सत्याग्रही साबित करना चाहते हैं बेशक कश्मीर मसले पर रज़ा गिलानी साहब के नापाक इरादे साफ़ नज़र आते हैं वो कहीं न कहीं पडोसी मुल्को के लिए मोहरे का काम रहे हैं वो शायद भूल गए है कश्मीर की तो बात दूर यहाँ की एक इंच ज़मीन को भी भारत से अलग नहीं किया जा सकता है वे अलगाववाद के कभी पूरा न होने वाले अपने मकसद को पूरा करने के लिए कश्मीरी युवायों को बरगला रहे हैं उन्हें हिंसा के लिए उकसा रहे हैं सबसे बड़ा सवाल यह है की वो वास्तव में आज़ादी के किस रूप को चाहते हैं? क्या कश्मीर आज आजाद नहीं हैं ? शायद उन्होंने आज़ादी की गलत परिभाषा को अपने ज़ेहन में बैठा लिया है

उनके समझने के लिए प्रधानमंत्री वी पी सिंह का लाल किले की प्राचीर से दिया गया बयान ही काफी है जिसमे उन्होंने कहा था यदि आज़ादी की बात की जाये तो उसे इतनी दी जाएगी जैसे ज़मीन से लेकर आसमान, लेकिन यदि कोई आज़ादी का गलत मतलब निकालता है तो वह आज़ादी को भूल जाए उनके बयान से साफ़ है भारत जब आज के मुकाबले सैन्य व आर्थिक रूप से शक्तिशाली नहीं था तब कश्मीर को भारत से अलग करने में न पाकिस्तान और न अलगवादी कामयाब हो सके तो अब जब भारत विश्व की महाशक्तियो में शामिल है वे ऐसा सोचकर अपना समय और उर्जा दोनों बर्बाद कर रहे हैं

वही पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती कश्मीर में जारी हिंसा और अशांति के लिए नेशनल कांफ्रेस की सरकार को ज़िम्मेदार मान रही हैं उनका कहना है उमर अब्दुल्ला कश्मीर को चलाने में पूरी तरह नाक़ामयाब रहे हैं वे बेशक युवा हैं लेकिन महलों की चारदीवारी में रहकर आम युवा को नहीं समझा जा सकता है जो आज हिंसा पर उतारू है यह बात उन्होंने एक जाने माने अख़बार को दिए इंटरव्यू मेंकही लेकिन यदि महबूबा जी से भी पूछा जाये कि कश्मीर कि अमन शांति के लिए वो क्या विशेष प्रयास कर रही है? इसका उत्तर तो उनको ही पता होगा लेकिन आम जनता को उनका कोई खास प्रयास दिखाई नहीं देता है वैसे कश्मीर मसले से नज़दीक से रूबरू होने के लिए राजनैतिक लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल कश्मीर जा रहा है देखते हैं वहां के लोग उनको कैसे लेते है, वैसे सकारात्मक परिणाम आने की उम्मीद कि जानी चाहिए

चलो अयोध्या मसले पर थोडा और गंभीरता से चर्चा करते हैं .................................... '

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

भारत के कश्मीर को अमन चाहिए


भारत का कश्मीर अलगाववाद और हिंसा की आग में झुलस रहा है | युवा हिंसा पर उतारू हैं| सार्वजनिक संपंती को नुकसान पहुंचाकर आन्दोलनकारी अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं| अनेक युवा और सेना के जवान इस बेबुनियाद आन्दोलन की चपेट में आकर अपनी जान गवा चुके हैं | बहुतों के घर उजड़ चुके हैं, बहुत सी माँओं ने अपने बेटों को खो दिया है और बहुतों ने अपने पति को | लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है उनमें अविश्वास घर कर गया है | अब वहां के अधिकांश लोग कश्मीर मे किसी भी कीमत पर अमन चाहते हैं , वे अब इस रोज रोज की हिंसा से अजीज़ आ चुके हैं, वो शांति से जीना चाहते हैं उनकी रोजी रोटी, कामकाज हिंसा के कारण ठप पड़ चुके हैं उनके लिए सब कुछ अनिश्चित सा हो गया है | लेकिन कुछ सत्ता को चाहने वाले या पाकिस्तान के इशारों पर काम करनेवाले ये कभी चाहते ही नहीं कि वहां सामान्य जीवन बहाल हो| इस हिंसा को भड़काने में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों से इंकार नहीं किया जा सकता है, कहीं ना कहीं अलगाववादी पाकिस्तान से प्रेरित नज़र आते हैं |

` कश्मीर के युवा चीफ मिनिस्टर उमर अब्दुल्ला साहब इस अलगाववादी हिंसा को रोकने में पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं| ध्यान देने
वाली बात यह है - उमर अब्दुल्ला भी कश्मीर के युवा हैं और आन्दोलनकारी भी कश्मीर के युवा| कोंग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राहुल गाँधी भी इसी बात को ध्यान में रखकर कश्मीर मामले में उमर अब्दुल्ला को समय और समर्थन देने की बात कह रहे हैं कि युवा ही युवायो को ज्यादा अच्छे से समझ सकता है | लेकिन उमर अब्दुल्लाह की शांति अपील को कश्मीरी युवायों ने एक सिरे से खारिज कर दिया है वो कहीं न कहीं समझते हैं कि वो हममे से सामान्य नहीं हैवे राजपरिवार से संबंध रखते हैं| उन युवायों का सोचना है वे हमारी समस्यों से सही से वाफिक नहीं हैं।यदि वास्तव में उमर अब्दुल्ला कश्मीर में सुशासन और शांति चाहते है तो उनको युवायों की मानसिकता को समझना होगा उनके साथ बेहतर संवाद स्थापित करना होगा, उनको उनके बीच जाना होगा|

` कश्मीर में स्थाई शांति स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार की सत्तारुद पार्टी , विपक्ष , राज्य सरकार, सेना , प्रशासन, मीडिया , साहितकार, कलकर सभी को मिलजुलकर काम करना होगा ताकि असंतुष्ट युवायों को सही दिशा में लाया जा सके उन्हें विश्वास दिलाना होगा की आपका विकास अखंड भारत मेंही संभव है | सत्ता और विपक्ष को इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने के वजाए एक प्रभावी हल खोजना चाहिए | यदि ईमानदारी से देखा जाये तो किसी राष्ट्रीय नेता ने हिंसा के
दौरान वहां का दौरा नहीं किया वहां जाकर नजदीकी संवाद करने की, उनका वास्तविक हाल जाने की कोशिश नहीं कीगयी | महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को सर्वदलिये बैठक में कहा की -"इस देश में लालू प्रसाद , मुलायम सिंह , आडवाणी जैसे तमाम नेता है जो जनता से व्यापक संपर्क रखते हैं लेकिन इन तीनो में इन तीन महीनो के दौरान कश्मीर नहीं गया"| उनका कहना था -"उनको जाना चाहिए था यदि कोई मर भी जाता तो क्या फर्क पड़ता? यह तो कहा जायेगा की जनता के मकसद के लिए जान दे दी" लेकिन असरदार भूमिका निभाने के लिए राजनीतिको को करना होगा | उन्हें समझदारी और संवेदनशीलता से काम लेना होगा| मीडिया, साहित्कार, कलाकारइन सभी को अपनी भूमिका बडानी होगी| ये सभी लोग महज़ अभी लेख लिख रहे हैं या गोष्ठियों में जारहे हैं इन सभी को अपनी भूमिका बढानी चाहिए और देश की अखंडता और राष्ट्रिता के लिए जोखिम उठाना चाहिए

` कश्मीर मसले पर लोगो की भावनायों को भड़काने वाले साहित्कारों और मीडिया से जुड़े लोगों पर भी सरकार को लगाम कसनी होगी| इ बारे में डोगरी साहित्य की जानी मानी लेखिका पदमा सचदेवाअपने एक लेख में लिखती हैं " गुलाम अहमद मज्हूर साहब कश्मीर के जाने मानइ कवि हुए हैं | उन्होंने कश्मीरी कविता को नयी शैली दी | लेकिन वो लिखते थे की -`हिंदुस्तान मैं तुम पर अपनीजान कुर्बान करता हूँ पर यह देह कश्मीर के साथ है` यह बात खलने वाली है| हैरानी की बात है किउस समय शेइख अब्दुल्ला साहब , बक्सी साहब और अनेक जाने माने
राजनेता"| फिर भी किसी ने उनको नहीं रोका | उनसे पूछा जाना चाहिए वो ऐसा क्यों लिख रहे हैं? स्थितयां बिगाड़ने में इस तरहकि भावनायों का भी योगदान है | इस प्रकार की भावनायों को फ़ैलाने वालों पर रोक लगनी चाहिए तभी कश्मीर में अमन कायम हो सकता है |

गुरुवार, 16 सितंबर 2010

गरीबी का दंश कब तक ?

भारत में गरीबी को एक बड़ी और गंभीर समस्या के रूप में देखा जा सकता है| आर्थिक असमानता समाज में गहरी खाई बना रही है | समाज का एक छोटा तबका मालामाल और एक बड़ा वर्ग गरीबी का दंश झेलता हुआ| चंद अमीरों के हिस्से में सारी सुविधाए और आगे बरने के सारे मौके लेकिन गरीब ज़रूरी सुविधायों से भी महरूम|