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रविवार, 21 दिसंबर 2014

दुनिया के प्रमुख आतंकवादी संगठन

अल कायदा के लड़ाके
पूरी दुनिया इस समय आतंकवाद के कहर से कराह रही है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से आतंकवादी संगठन निर्दोष लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। विडंबना यह है कि हत्या, लूट, अवैध वसूली और बलात्कार करने वाले ये सभी आतंकी संगठन धर्म की आड़ लेकर खड़े किए गए हैं। इन्होंने खुद के संगठन के ऐसे-ऐसे धार्मिक और अन्य नाम रखे हुए हैं, जिससे ये युवाओं को बरगलाकर संगठन में शामिल कर सकें।
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि धर्म के नाम पर घोर अधर्म करने वाले कुछ प्रमुख आतंकी संगठनों के नामों का मतलब क्या है। इन नामों और इनके मतलब से हम जान सकते हैं कि ये आतंकी संगठन कितने शातिर दिमाग हैं जो खुद को सही ठहराने के लिए धर्म को कवच के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
तालिबान
यह पश्तो भाषा का शब्द है जिसका मतलब छात्र यानी शिक्षार्थी से होता है। लेकिन यह ऐसा छात्र है जो अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले ही अपने इलाकों की गलियों-कूचों में खून की नालियां बहाकर दुनिया को हिंसा की शिक्षा देने चल पड़ा है। यह आतंकी संगठन पूरे अफगानिस्तान में फैल चुका है और दिसंबर 1996 से दिसंबर 2001 तक वहां सरकार भी बना चुका है। इस संगठन का गठन 1994 में मोहम्मद उमर ने किया था। आज तालिबान न केवल अफगानिस्तान में कहर बरपा रहा है, बल्कि इसका विस्तार पाकिस्तान तक हो चुका है। वहां तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान नाम से आतंकी संगठन अस्तित्व में आ चुका है। इसके खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने अभियान चलाया हुआ है। इससे क्रुद्ध होकर इस संगठन ने 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 मासूम बच्चों समेत 141 लोगों का कत्लेआम कर डाला।
अल कायदा
इसका शाब्दिक अर्थ है- द बेस। अल का अर्थ “द” है और कायदा का “बेस” यानी आधार। यह विश्वव्यापी आतंकवादी संगठन है, जिसका गठन ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्ला आजम ने 1988-89 में कई आतंकवादियों के साथ मिलकर किया था। उसके बाद से यह संगठन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भयंकर तबाही मचा चुका है। अल कायदा शब्द का अर्थ “मिलिट्री बेस” से भी लगाया जाता है। 2001 में खुद ओसामा बिन लादेन ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए उनके संगठन ने अनेक प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना की थी। इन ट्रेनिंग कैंपों को वे लोग अल कायदा (मिलिट्री बेस) कहकर संबोधित करते थे। बस उसी के बाद से आतंकवादी संगठन को भी अल कायदा कहा जाने लगा। हालांकि ब्रिटेन के पूर्व राजनेता राबिन कुक ने लिखा है कि अल कायदा शब्द का अनुवाद “द डाटाबेस” करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब उन कंप्यूटर फाइलों से था जिनमें उन हजारों मुजाहीदीन आतंकवादियों के ब्योरे थे, जिन्हें रूस को हराने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद से भर्ती और प्रशिक्षित किया गया था।
आईएसआईएस
इसका शाब्दिक मतलब है इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया। इराक और सीरिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य से इस आतंकी संगठन का गठन किया गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आईसिस (Isis) मिस्र में बच्चे का नाम होता है। वहां इसे एक देवी से जोड़कर देखा जाता है और सभी देवियों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस तरह आईएसआईएस से, अंग्रेजी में मिलाकर बोलने से आईसिस की भी ध्वनि निकलती है, जिससे लगता है कि यह कोई पवित्र किस्म का संगठन है। आज दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बन चुके आईएसआईएस की स्थापना इराकी नागरिक अबु बकर अल बगदादी ने अलकायदा से अलग होकर की थी।
हिज्ब उल मुजाहीदीन
इसका शाब्दिक अर्थ है- पवित्र योद्धाओं का दल, मगर संगठन के किसी भी काम का पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है। इसके उलट इस संगठन से जुड़े लोगों के हाथ सैकड़ों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं। 1985 में इस संगठन की स्थापना कश्मीरी अलगाववादी अहसान डार ने की थी। इस समय इस समूह का सरगना सैयद सलाहुद्दीन है, जो पाकिस्तान में छिपा हुआ है और वहीं से आतंकवादी गतिविधियां संचालित करता है।
जैश ए मोहम्मद
इस नाम का शाब्दिक मतलब है- मोहम्मद की सेना, मगर दुर्भाग्य से मोहम्मद की दी शिक्षाओं से इस संगठन से जुड़े लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह भी कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इसे 2002 में पाकिस्तान में ऊपरी तौर पर तो प्रतिबंधित करने की घोषणा की गई थी मगर अंदरूनी तरीके से पाकिस्तान ने इसकी मदद करना जारी रखा हुआ है। इस संगठन को भारत के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन भी आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। इसका गठन 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने किया था। इसे हरकत उल मुजाहीदीन नाम के आतंकवादी संगठन से अलग होकर बनाया गया था। यह वही मसूद अजहर है जिसे भारत ने 1999 में अपहृत विमान यात्रियों की रिहाई के बदले में छोड़ा था। 2001 में भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेदार भी इसी संगठन को माना जाता है। 2002 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने संगठन पर प्रतिबंध लगाया तो इसने अपना नाम बदलकर खुद्दाम उल इस्लाम रख लिया, जिसका मतलब है इस्लाम का सेवक।
लश्कर ए तैइबा
इसका शाब्दिक मतलब है खुदा की सेना, लेकिन वास्तव में यह जालिमों की सेना ही है जो केवल खून बहाना ही जानती है। इसका मतलब शुद्धता यानी पवित्रता की सेना भी निकाला जाता है, मगर संगठन के नाम और काम में जमीन-आसमान का अंतर है। यह दक्षिण एशिया का बेहद संगठित आतंकी समूह है जो अपनी गतिविधियां पाकिस्तान से संचालित करता है। इसका गठन 1990 में हाफिज सईद, अब्दुल्ला आजम और जफर इकबाल नाम के शातिर दिमाग लोगों ने किया था। इस आतंकी संगठन के अनेक प्रशिक्षण शिविर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चलते हैं। 2008 के मुंबई हमलों के लिए इसी संगठन ने अंजाम दिया था। इस संगठन पर भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, रूस और आस्ट्रेलिया प्रतिबंध लगा चुके हैं। औपचारिक रूप से पाकिस्तान भी इसे प्रतिबंधित कर चुका है पर भारत और दुनिया के अनेक देश मानते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इस आतंकी संगठन को अपना सहयोग और समर्थन जारी रखे हुए है।
बोको हराम
यह नाइजीरिया का आतंकवादी संगठन है। बोको हराम का शाब्दिक अर्थ है- पश्चिमी शिक्षा हराम है। बोको हराम का मानना है कि पश्चिमी शिक्षा बंद कर सिर्फ और सिर्फ इस्लामी शिक्षा दी जाए। इस संगठन के अनुसार लड़कियों को पढ़ने का बिल्कुल अधिकार नहीं है, इसलिए उन्हें स्कूलों में भेजना अपराध है। इस नजरिये को लोगों पर लादने के लिए बोको हराम के आतंकी लोगों की हत्या करते हैं, लड़कियों का अपहरण करते हैं और बलात्कार करते हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं पर हमला करते हैं। वे गिरजाघरों और अन्य जगहों पर विस्फोट भी करते हैं जिनमें हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। बोको हराम का गठन 2002 में धर्मगुरू मोहम्मद यूसुफ ने किया था। शुरुआत में इस संगठन ने मस्जिद और धार्मिक स्कूल बनवाए, लेकिन धीरे–धीरे यह राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ और फिर आतंकवादी संगठन के रूप में बदल गया। बोको हराम कहता है कि अंग्रेजी शिक्षा हराम है, मगर अब नाइजीरिया में अनेक लोग कहने लगे हैं कि यह संगठन ही हराम है।
हमास
हमास शब्द अरबी भाषा के हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया का संक्षेप रूप है। इसका मतलब है इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन। अरबी में हमास एक अलग शब्द भी है, जिसका मतलब “उत्साह” होता है। हमास का गठन 1987 में मिस्र और फिलस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में पहले आत्मघाती हमले के बाद से 2005 तक हमास ने इसरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए। 2005 में हमास ने हिंसा से खुद को अलग किया मगर 2006 में फिर से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले शुरू कर दिए। तब से रह-रहकर हमास और इसरायली सैनिकों के बीच संघर्ष होता है जिसमें हर बार सैकडों लोग मारे जाते हैं। ज्यादा नुकसान फिलस्तीनी लोगों का ही होता है। हमास का मतलब उत्साह है, मगर हमास से जुड़े लोग फिलस्तीन को आगे बढ़ाने में कोई उत्साह नहीं दिखाते। इसके बजाय वे इसरायल से लड़ने में ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।
अल शबाब
यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- द यूथ यानी युवा। दुर्भाग्य से ये युवा भी युवाओं जैसा कोई काम नहीं कर रहे हैं। ये युवा अपने कंधों पर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उठाने के बजाय बंदूकें-राइफल हाथ में लेकर लोगों का खून बहा रहे हैं। अल शबाब सोमालिया, केन्या आदि देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इस संगठन ने ही पिछले दिनों केन्या के एक मॉल में घुसकर बड़ी निर्ममता से 60 लोगों की हत्या कर दी थी। यहां बताते चलें कि बहरीन में अल शबाब नाम से एक फुटबाल क्लब भी है। कई देशों में अल शबाब नाम से सामाजिक संस्थाएं भी हैं।
आतंकवादी संगठनों की चाल भी यही है कि अपने संगठन का ऐसा नाम रखा जाए जो समाज में या तो पहले से प्रतिष्ठित हों या जिसे सुनकर किसी अच्छे उद्देश्य का अहसास होता हो। इससे उन्हें युवाओं का ब्रेन वाश करने में मदद मिलती है और वे धर्म व जिहाद के नाम पर अपने संगठन की ताकत बढ़ाने में भी सफल हो जाते हैं।

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले

भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले
मुम्बई, १३ जून २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.
फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे। एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया।
मुंबई, 26 नवम्बर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए। हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई.
असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।
मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।
मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।
नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।
नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।
अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।
बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।
जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।
रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।
अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।
हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल।
हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।
फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 66 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।
मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 30 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।
मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।
वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 20 लोगों की मौत।
अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 62 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

आतंकवाद के कारण व समाधान


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आज पूरी दुनि‍या आतंक के साये में जीने को मजबूर है। समाचार पत्र चरमपंथ और उग्रवाद से संबंधित घटनाओं से भरे रहते हैं।  तथाकथित जिहाद के नाम पर अपनी बात को मनवाने का यह कैसा तरीका है, जिसमें आदमी जान लेने और देने पर तुल हुआ  है! उन्माद का यह कैसा रूप है जहां मानव स्वेच्छा से आत्मघाती बम के रूप में परिवर्तित होकर अपने ही साथियों की जान केवल इस लिए लेना चाहता है कि वे उसके चिंतन के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं!  मौजूद लेख में उन सभी कारणों को खोजने और मनोवैज्ञानिक विश्‍लेषण करने का प्रयास किया गया है, जो मनुष्य को आतंक के रास्ते पर ढकेलने के लिए जिम्‍मेदार हैं

आतंकवाद के लिए जिम्‍मेदार पहलू
झुँझलाहट और क्रोध – 
 आतंकवाद के मूल में क्रोध की अतिशयता ही रहती है। जब हमारे मन के मुताबिक व्यवहार हमें नहीं मिलता तो हमें झुँझलाहट होती है। सामान्यतः ऐसा सबके साथ ही होता है और समय के साथ यह झुँझलाहट समाप्त हो जाती है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो इस स्थिति से नहीं निकल पाते। क्रोध और झुँझलाहट उनके मन में इकट्ठे होते रहते हैं। धीरे-धीरे वे एक किस्म के मानसिक रोग का शिकार हो जाते हैं। क्रोध की अग्नि इतनी तीव्र हो जाती है कि वे हर बात का समाधान हिंसा और बल-प्रयोग से ही कर लेना चाहते हैं। अनेक असामाजिक एवं अवांछित तत्व उनकी इसी कमज़ोरी का लाभ उठा कर उन्हें आतंकवाद के दलदल में घसीट लेते हैं
सामाजिक परिवेश का मन पर असर
 कभी-कभी हमें सार्वजनिक रूप से अपमान अथवा अन्यायपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है। गाँधीजी को दक्षिण अफ़्रीका में ऐसी ही परिस्थितियों का सामना अनेक बार करना पडा़ था। उन्होंने तो ऐसी विपरीत परिस्थितियों � @�ें भी �ीरज नहीं खोया। लेकिन हर आदमी गाँधीजी के समान उच्च आदर्श नही प्रस्तुत कर सकता। बहुत से लोग विपरीत एवं अपमानजनक सामाजिक परिस्थितियों में घुटने टेक देते हैं। ऐसी परिस्थितियों के निराकरण के लिए वे हिंसा और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। दस्यु-बाला फूलनदेवी के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं कि वह डाकू बन बैठी। भारत में नक्सलवाद भी इसी प्रकार का उदाहरण है।
महत्वाकांक्षा –   
  आज हर आदमी एक ही क्षण में करोड़पति बन जाना चाहता है। बिना परिश्रम के सफलता नहीं मिलती। यह बात आधुनिक समय में अधिक महत्व नहीं रखती। जब हम देखते हैं कि अमुक व्यक्ति को किसी फ़िल्म में काम करने का अवसर मिला और वह रातों-रात सड़क से महल में पहुंच गया, तब हम में से कुछ इस बात को पचा नहीं पाते। वे सोचते हैं कि यह अवसर उन्हें भी तो मिल सकता था! पैसों और संसाधनों का असमान वितरण, अवसरों का सबके लिए उपलब्ध न होना आदि त्थय अनेक लोगों को अवांछित गतिविधियों में लिप्त कर देने के लिए पर्याप्त होते हैं। ऐसे लोग आरंभ में शीघ्रता से धन कमाने के लिए अपहरण, जबरन वसूली जैसे गैरकानूनी धंधों का सहारा लेते हैं। धीरे-धीरे ऐसे लोग किसी आतंकवादी संगठन का सहारा लेकर अपनी शक्ति को और अधिक बढा़ने का प्रयत्न करते हैं। डी० कंपनी के लिए काम करने वाले अनेक लोग इसी श्रेणी में आते हैं। यही महत्वाकांक्षा कभी-कभी राजणैतिक रंग भी ले लेती है। महत्वाकांक्षी व्यक्तियों एवं संगठनों को ऊंचे-ऊंचे सपने दिखा कर राजनीति से जुडे़ लोग उनसे अनेक अवांछित कार्य करवाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार ऐसे लोगों को राजनैतिक संरक्षण मिल जाता है और उनकी शक्ति में व्रिद्धि होती रहती है। महत्वाकांक्षा का नशा बहुत शक्तिशाली होता है। इस नशे के आदी मनुष्य राजसत्ता पर भी कब्जा करना चाहते हैं। इसके लिए वे हथियारों की तस्करी, नशे का कारोबार तथा राजनेताओं को अपनी ओर करने का प्रयत्न करते रहते हैं। अपनी शक्ति में वृद्धि करने के लिए वे मानसिक स्तर पर कमज़ोर लोगों की तलाश में रहते हैं। जहां उन्हें ऐसे लोग दिखाई देते हैं, वे तुरंत उन्हें अपने जाल में फँसा लेते हैं।
महत्वाकांक्षा का राजसी रूप  
जो असिमित महत्वाकांक्षा मनुष्यों में होती है, और उन्हें आतंकवाद के रास्ते पर ले जाती है, वही कभी-कभी सरकारों में भी देखी जाती है। अपने राज्य की उन्नति और पडो़सी राज्य की अवनति के लिए भी आतंकवाद को एक माध्यम के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। पाकिस्तान की ओर से भारत में आतंकवाद का प्रसार इसी बात का उदाहरण है। पाक सेना आतंकवाद को युद्ध की एक नीति के रूप में प्रयुक्त करती है। कभी धर्म के नाम पर और कभी ऐसे ही किसी और बहाने से, भारत के विरुद्ध लोगों को भड़का कर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है।
धार्मिक कट्टरपंथ
यद्यपि धर्म मानव के नैतिक विकास का माध्यम है, तथापि कभी-कभी निहित स्वार्थ इसे आतंकवादी तैयार करने के लिए भी प्रयुक्त करते हैं। तथाकथित इस्लामिक जेहाद की दुहाई देकर भोले-भाले धर्म-सहिषणु लोगों को आतंकवाद के रास्ते पर धकेल दिया जाता है।

समाधान -
समझने होंगे धर्म के सही मायने
जो धर्म इंसान के अनुकूल शिक्षा और वातारवरण नहीं दे स‍कता है उसे धर्म नहीं कहा जा है, धर्म कट्टरता का नाम नहीं होता है, धर्म तो श्रेष्टताओं का समुच्‍चय होता हैं, धर्म प्रगतिशीलता का वाहक  कहा जाता है, धर्म का उद्देश्‍य ही यही हैं कि मनुष्‍य को उसके विकास के चरम तक ले जाए, धर्म केवल माध्‍यम हैं लक्ष्‍य नहीं, धर्म का मतलब विवेकहीन, तर्कहीन मान्‍यताओं का कट्टरता के साथ अनुसरण करना नहीं हैं, धर्म में तो विवके को ही सर्वोपरि माना जाना चाहिए  विश्‍व में धर्म के प्रति बन चुकी कट्टर मान्‍यताओं के चंगुल से निकलना होगा, जिसका सबसे बडा जरिया श्रेष्‍ठ शिक्षा ही हो सकती है,
प्रततिशील शिक्षा की आवश्‍कता
आतंकवाद के सफाए के लिए सबसे पहले शिक्षा के क्षेत्र में हमें ऐसे परिवर्तन करने होंगे, जिससे छात्रों का संपूर्ण मानसिक एवं नैतिक उत्थान हो सके। इस प्रकार, वे क्रोध और झुँझलाहट के वशीभूत होकर आतंकवादी नहीं बनेंगे। नैतिक विकास द्वारा वे सही तथा गलत के बीच का अंतर समजेंगे और सही निर्णय लेने में सक्षम होंगे। शिक्षा के प्रचार-प्रसार से सभी मनुष्यों में एक सही समझ पैदा होगी। इससे सीधे-सादे लोगों को बहका-फुसलाकर दहशत फैलाने लिए प्रेरित नहीं किया जा सकेगा।
इसके अलावा  हमें संसाधनों के न्यायपूर्ण एवं समान वितरण पर भी ध्यान देना होगा। समाज एवं प्रशासन का दायित्व है कि वह सनिश्चित करे कि जाति, धर्म, वर्ग अदि के आधार पर कभी किसी को अन्याय और अपमान नहीं  सहना पडे़गा। स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना के विकास से आतंकवाद का समूल नाश किया जा सकता है।

आशीष कुमार


हाथियारों से लैस अफगानिस्‍तान के अज्ञात स्‍थान पर खडे आतंकवादी