मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

राष्ट्र और धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं



भारत मां
जब बाबर ने काबुल से आकर भारत पर हमला किया था, तो भारत के तत्कालीन महान संत गुरूनानक ने कहा था कि ''हिदुओं के नैतिक पतन के कारण यह दैवीय आपत्ति आई है, जिसका असर देश के भाग्य पर लंबे समय तक रहेगा।''
बाकी की हकीकत  के बारे में सभी जानते हैं। देश ने लंबी मुस्लिम  गुलामी का दौर देखा। उस दौर में हिंदुत्व और उसके आदर्श रसातल में पहुंच गए थे। उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी को दौर आया, जिसमें बचे-कुचे संस्कृति के अंश भी गायब होने की कगार पर पहुंच गए थे।
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तमाम महान लोगों की कुर्बानी के बाद 1947 की आजादी मिली,लेकिन केवल राजनीतिक। संस्कृति और विवेक की आजादी अभी बाकी है। उधार ली हुई तार्किकता को विवेक मान लिया गया है। विवेक में मौलिकता नहीं है, या कहें विवेक अभी गुलाम है। नकल को ही संस्कृति मान लिया गया है।
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योगी अरविंद ने कहा था - "धर्म और राष्ट्र एक साथ चलते हैं। यदि धर्म का पतन होता है तो राष्ट्र का पतन होने लगता है। धर्म के सिकुड़ने के साथ राष्ट्र की सीमाएं सिकुड़ने लगती हैं। साथ ही, उन्होंने कहा था - इक्कीसवीं सदी में भारत फिर खड़ा होगा, अपनी नैतिकता, अपने ज्ञान, अपने अध्यात्म की शक्ति के बल पर। भारत ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म में नई बुलंदियों को छुएगा। दुनिया उसकी सर्वोच्चता स्वीकार करेगी"।
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स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधनों और पुस्तकों मे जिक्र किया था - "मैं स्पष्ट तौर पर देखता हूं, भारत विश्वगुरू बन रहा है, वह पूरे विश्व का वह अपने ज्ञान के जरिए मार्गदर्शन देगा।"
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हम भारतवासियों को यही उम्मीद है कि श्रीअरविंद और विवेकानंद सच साबित हों, इस संसद के होहल्ले और तथाकथित सेक्युलरवादियों की चिंता के बीच