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शनिवार, 18 जुलाई 2020
शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018
मीडिया और युद्ध का बाजार
नब्बे के दशक के
शुरूआती दौर में अमेरिकी सीएनएन चैनल ने खाड़ी युद्ध दिखाकर भारतीय बाजार में
दस्तक दी थी। इसकी कवरेज ने युद्ध को सीधे लोगों के बेडरूम तक पहुंचा दिया था। दर्शकों
ने मशीनगनों से निकलती गोलियों की तड़तड़ाहट व बम बरसाते टैंकों को घर बैठकर टीवी
सेटों पर देखा। फिल्मों में दिखायी जाने वाली काल्पनिक हिंसा और युद्ध को सीएनएन
ने उन्हें पहली बार हकीकत में दिखाया था। दर्शकों के लिए यह बेहद रोमांचित करने
वाला अनुभव था। इस युद्ध की ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार लोगों
की नजर में असल जिंदगी के हीरो बन गए। साथ ही, इस युद्ध कवरेज ने मीडिया संस्थानों
को युद्ध के जरिए पैसा कमाने की नई ‘कारगर थ्योरी’ भी दी।
अमेरिका के विलियम
रेंडोल्फ हर्स्ट को पीत पत्रकारिता के साथ युद्ध उन्मादी पत्रकारिता का जनक कहा
जाता है। अमेरिका में पत्रकारिता के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा। उन्होंने
19वीं सदी के अंत से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक अमेरिका की पत्रकारिता को एक नई
पहचान दी। वर्ष 1887 में उनको अपने पिता से ‘द सेन फ्रांसिसको एग्जामिनर’ अखबार का करोबार विरासत
में मिला था। बाद में वे सेन फ्रांसिस्को से न्यूयार्क आ गए।
न्यूयार्क शहर आने
पर विलियम हर्स्ट ने जाने-माने अखबार ‘द न्यूयार्क जनरल’ खरीद को लिया। लेकिन वहां वे जोसेफ पुलित्जर के
अखबार ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ के साथ सर्कुलेशन की प्रतिस्पर्धा में फंस गए। सर्कुलेशन बढ़ाने के
लिए उन्होंने पीत पत्रकारिता से भी गुरेज नहीं किया। वर्ष 1898 में अमेरिका व
स्पेन की बीच हुए युद्ध को उन्होंने लोगों के सामने सनसनी बनाकर पेश किया। अखबार
की बिक्री बढ़ाने के लिए कुछ युद्ध की घटनाओं को तो शून्य से ईजाद कर दिया, जिनका
जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने युद्ध के रोमांच और हिंसा को
अखबारी करोबार के मुनाफे में बदल दिया था।
हालांकि इसके लिए उन्हें अलोचनाओं का भी समाना करना पड़ा।
लेख मीडिया चरित्र में विस्तार के साथ प्रकाशित है। इसे पढ़ने के लिए
अमेजन पर मीडिया चरित्र
हिन्दी बुक पर ऑनलाइन मीडिया चरित्र
लेख मीडिया चरित्र में विस्तार के साथ प्रकाशित है। इसे पढ़ने के लिए
अमेजन पर मीडिया चरित्र
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बुधवार, 31 जनवरी 2018
नागपुर-वर्धा यात्रा
नागपुर और वर्धा की यात्रा दिल्ली से 25 जनवरी, 2018 को प्रारंभ की गई और
29 जनवरी, 2018 को समापन हुआ। यात्रा बहुत सुखद रही। महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महात्मा गांधी आश्रम
सेवाग्राम, विनोबा भावे आश्रम पवनार व नापुर में उमिया धाम, दीक्षा भूमि,
अंबाझरी लेक देखने का अवसर मिला।
मंगलवार, 30 जनवरी 2018
विनोबा भावे आश्रम, पवनार, वर्धा
लेबल:
9411400108,
पवनार,
वर्धा,
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मां उमिया धाम नागपुर
मां
उमिया धाम मां पार्वती का भव्य मंदिर है। यह नापुर के रेलवे स्टेशन से
भण्डारा रोड पर करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पंचायतन
शैली में बना हुआ है। इसकी स्थापत्य कला बहुत ही सुंदर है। मंदिर में शिव
की अर्धागिंनी मां पार्वती की प्रतिमा मध्य में स्थित है। एक और भगवान शिव
का प्रतीक शिवलिंग व उसके एकदम सामने भगवान राम और सीता की संयुक्त विग्रह
लगा हुआ। हनुमान जी की प्रतिमा की प्रवेश द्वार के पास ही लगा हुई है।
मंदिर
में साउंड और लाइट की बहुत ही सुंदर व्यवस्था है। रात को मंदिर संगीत के
साथ विभिन्न प्रकार की परिवर्तित होती लाइटों से प्रकाशित रहता है। बदलते
प्रकाश के रंग लोगों के मन के बरबस अध्यात्म की तरफ खींच ले जाते हैं। यदि
शाम के समय मंदिर दर्शन का कार्यक्रम बनाया जाए तो लाइट-साउंट इफैक्ट का
आनंद लिया जा सकता है।
मंदिर
सार्वजिक यातायात व टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। बर्डी बस
स्टैंड से पारडी के लिए बस मिलती है। वहां हर 10-15 मिनट में शेयरिंग ऑटो
से मंदिर पहुंचा जा सकता है। रेलेवे स्टेशन से पहले पारडी जाना होगा वहां
से ऑटो लेना होगा।
नागपुर
महाराष्ट्र की उपराजधानी है। यहां दिसंबर के माह में विधानसभा सत्र भी
चलता है। जनवरी-फरवरी के महीने में यहां दिन का तापमान करीब 25 डिग्री
सेल्सियस रहता है, जोकि पर्यटन के बहुत ही अनुकूल तापमान है। फोटो -
क्रांति आनंद, आशीष कुमार
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