नब्बे के दशक के
शुरूआती दौर में अमेरिकी सीएनएन चैनल ने खाड़ी युद्ध दिखाकर भारतीय बाजार में
दस्तक दी थी। इसकी कवरेज ने युद्ध को सीधे लोगों के बेडरूम तक पहुंचा दिया था। दर्शकों
ने मशीनगनों से निकलती गोलियों की तड़तड़ाहट व बम बरसाते टैंकों को घर बैठकर टीवी
सेटों पर देखा। फिल्मों में दिखायी जाने वाली काल्पनिक हिंसा और युद्ध को सीएनएन
ने उन्हें पहली बार हकीकत में दिखाया था। दर्शकों के लिए यह बेहद रोमांचित करने
वाला अनुभव था। इस युद्ध की ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार लोगों
की नजर में असल जिंदगी के हीरो बन गए। साथ ही, इस युद्ध कवरेज ने मीडिया संस्थानों
को युद्ध के जरिए पैसा कमाने की नई ‘कारगर थ्योरी’ भी दी।
अमेरिका के विलियम
रेंडोल्फ हर्स्ट को पीत पत्रकारिता के साथ युद्ध उन्मादी पत्रकारिता का जनक कहा
जाता है। अमेरिका में पत्रकारिता के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा। उन्होंने
19वीं सदी के अंत से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक अमेरिका की पत्रकारिता को एक नई
पहचान दी। वर्ष 1887 में उनको अपने पिता से ‘द सेन फ्रांसिसको एग्जामिनर’ अखबार का करोबार विरासत
में मिला था। बाद में वे सेन फ्रांसिस्को से न्यूयार्क आ गए।
न्यूयार्क शहर आने
पर विलियम हर्स्ट ने जाने-माने अखबार ‘द न्यूयार्क जनरल’ खरीद को लिया। लेकिन वहां वे जोसेफ पुलित्जर के
अखबार ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ के साथ सर्कुलेशन की प्रतिस्पर्धा में फंस गए। सर्कुलेशन बढ़ाने के
लिए उन्होंने पीत पत्रकारिता से भी गुरेज नहीं किया। वर्ष 1898 में अमेरिका व
स्पेन की बीच हुए युद्ध को उन्होंने लोगों के सामने सनसनी बनाकर पेश किया। अखबार
की बिक्री बढ़ाने के लिए कुछ युद्ध की घटनाओं को तो शून्य से ईजाद कर दिया, जिनका
जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने युद्ध के रोमांच और हिंसा को
अखबारी करोबार के मुनाफे में बदल दिया था।
हालांकि इसके लिए उन्हें अलोचनाओं का भी समाना करना पड़ा।
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