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गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

नदियां जोड़ो, पर क्यों


नदी जोड़ो परियोजना के लिए ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट की तुलना में कहीं ज्यादा जमीन की जरूरत होगी। तब क्या सुप्रीम कोर्ट यह मान लेगा कि उन इलाकों के किसानों के लिए जमीन का दर्जा मां के बजाय किसी और चीज का है? इन कानूनी और भावनात्मक पहलुओं को एक तरफ रख दें तो नदी जोड़ो परियोजना में सबसे बड़ी अड़चन पर्यावरण की ओर से पैदा होने वाली है।
एनडीए के शासनकाल में प्रस्तावित 'नदियां जोड़ो' परियोजना को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने न केवल मौजूदा सरकार को इसे अमल में उतारने का निर्देश दिया है, बल्कि अपनी तरफ से इस पर नजर रखने के लिए एक कमेटी भी गठित कर दी है। सरकार की भी बलिहारी है कि इसका कड़ा प्रतिवाद करना उसे जरूरी नहीं लगा। जिस समय इस परियोजना का प्रस्ताव आया था, हर तरफ इसकी काफी वाहवाही हुई थी। कागज पर इसका सम्मोहन आज भी कम नहीं हुआ है। लेकिन इसके दूसरे पहलुओं पर नजर डालने से स्पष्ट हो जाएगा कि यह जब तक कागजों पर रहे, तभी तक अच्छी है, क्योंकि इसके जमीन पर आते ही कई तरह की आफतें खड़ी हो जाएंगी। इस परियोजना में तो तीस से ज्यादा नदियों को जोड़ने की बात है।

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर की हैसियत इसके सामने कुछ भी नहीं है। इसके बावजूद पंजाब अपने हिस्से का एक लीटर पानी भी कहीं और जाने देने को राजी नहीं है और उसे इसके लिए बाध्य करने का कोई तरीका आज तक नहीं खोजा जा सका है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच ब्रिटिश काल से ही कायम कावेरी जल विवाद इतना पेचीदा हो चुका है कि मुल्लापेरियार बांध की ऊंचाई बढ़ाने या इसे नए सिरे से बनवाने के प्रस्ताव तक को दोनों राज्यों की सरकारें अपने-अपने अस्तित्व के लिए चुनौती मान रही हैं। ऐसे में नदी जोड़ो परियोजना कितने राज्यों के बीच किस-किस तरह के विवादों का विषय बनेगी और इसका नतीजा देश के लिए कैसा होगा, यह कोई भी सोच सकता है।

दूसरा पहलू इस परियोजना के लिए जमीनों के अधिग्रहण का है। नोएडा एक्सटेंशन के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में यह भावनात्मक वक्तव्य भी शामिल था कि जमीन किसानों की मां है। फिलहाल देश का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां सड़क, रेल, बिजलीघर, खान, उद्योग या आवासीय कॉलोनियां बनाने के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उग्र आंदोलन न चल रहे हों। नदी जोड़ो परियोजना के लिए ऐसे किसी भी प्रोजेक्ट की तुलना में कहीं ज्यादा जमीन की जरूरत होगी। तब क्या सुप्रीम कोर्ट यह मान लेगा कि उन इलाकों के किसानों के लिए जमीन का दर्जा मां के बजाय किसी और चीज का है?

नदियों को खत्म करने की पूरी तैयारीइन कानूनी और भावनात्मक पहलुओं को एक तरफ रख दें तो नदी जोड़ो परियोजना में सबसे बड़ी अड़चन पर्यावरण की ओर से पैदा होने वाली है। नदियां अपना स्वाभाविक ढाल पकड़ती हैं और उनके पानी की दिशा अगर नहरों के जरिये मोड़ दी जाती है तो कुछ साल बाद वे जमीन को दलदली और खारा बना कर अपना बदला निकालती हैं। हरित क्रांति के दौरान नहरों का मजा ले चुके कुछ राज्य फिलहाल इसकी सजा भुगत रहे हैं। ऐसे में कागज पर मोहक सिंचाई योजनाएं बनाने और उन पर अमल के लिए अदालती निर्देश का इंतजार करने से बेहतर यही होगा कि सरकारें बारिश का पानी जमा करने और ग्राउंड वाटर रीचार्ज जैसे उपायों पर अपना ध्यान केंद्रित करें।

शनिवार, 31 मार्च 2012

अज्ञात की यात्रा


मेरा जीवन अज्ञात पहेली, प्रश्‍नों की अविरल धारा सी
भाव, विचार, कर्मों की कडियां, स्वर्णिम धागा बंधन सी
संस्कार, पाप, पुण्य प्रवाह, जन्मों की गठरी बोझिल सी
रिश्‍ते- नाते, धन, प्रेम की दुनिया, मन मोहित दिव्य दृश्‍य सी

सरल जीवन को समझ न पाया, प्रकाशित सत्य को झुठलाया
अंतस के जंगल में भटका, संस्कारों के चुंगल से घबराया
सफलता-असफलता की कसौटी के फेर स्वयं को उलझाया
राजा सुरथ, समाधि वैश्‍य की कहानी को पुनः क्यों दोहराया?

कभी सफलता पर इतराता, कभी भाग्य पर इठलाता है
कभी रूप पर दंभ भरता है, कभी ताकत को दिखलाता है
कभी किसी का बैरी बनता, कभी हितैषी बन जाता है
कभी न समझ में मुझको आता, इसका सत्य स्वरूप क्या है?

हर पल जीवन अज्ञात पथिक सा आगे बढता जाता है
अगला क्षण न जाने तब भी आशा के दीप  जलाता है
समाधान की चाह में भयभीत हो साहसिक कदम उठाता है
जीवन सफल बनाने को पागल सा हो जुटा जाता है
अपने ही सूत्रों से अज्ञात की यात्रा को उलझाता जाता है
- आशीष कुमार