शनिवार, 31 मार्च 2012

अज्ञात की यात्रा


मेरा जीवन अज्ञात पहेली, प्रश्‍नों की अविरल धारा सी
भाव, विचार, कर्मों की कडियां, स्वर्णिम धागा बंधन सी
संस्कार, पाप, पुण्य प्रवाह, जन्मों की गठरी बोझिल सी
रिश्‍ते- नाते, धन, प्रेम की दुनिया, मन मोहित दिव्य दृश्‍य सी

सरल जीवन को समझ न पाया, प्रकाशित सत्य को झुठलाया
अंतस के जंगल में भटका, संस्कारों के चुंगल से घबराया
सफलता-असफलता की कसौटी के फेर स्वयं को उलझाया
राजा सुरथ, समाधि वैश्‍य की कहानी को पुनः क्यों दोहराया?

कभी सफलता पर इतराता, कभी भाग्य पर इठलाता है
कभी रूप पर दंभ भरता है, कभी ताकत को दिखलाता है
कभी किसी का बैरी बनता, कभी हितैषी बन जाता है
कभी न समझ में मुझको आता, इसका सत्य स्वरूप क्या है?

हर पल जीवन अज्ञात पथिक सा आगे बढता जाता है
अगला क्षण न जाने तब भी आशा के दीप  जलाता है
समाधान की चाह में भयभीत हो साहसिक कदम उठाता है
जीवन सफल बनाने को पागल सा हो जुटा जाता है
अपने ही सूत्रों से अज्ञात की यात्रा को उलझाता जाता है
- आशीष कुमार

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