न्यू मीडिया बनाम
प्रिंट मीडिया
न्यू मीडिया अपने
स्वरूप, आकार और संयोजन में मीडिया के पारंपरिक रूपों से भिन्न और
उनकी तुलना में काफी व्यापक है। पारंपरिक रूप से मीडिया या मास मीडिया शब्दों का
इस्तेमाल किसी एक माध्यम पर आश्रित मीडिया के लिए किया जाता है, जैसे कि कागज पर
मुद्रित विषयवस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रिंट मीडिया। न्यू मीडिया इस सीमा
से काफी हद तक मुक्त तो है ही, साथ में पारंपरिक मीडिया
की तुलना में अधिक व्यापक भी है।
प्रिंट के मुख्य
के स्वरूप अखबार या पत्रिकाएं ही हैं। वहीं न्यू मीडिया के तमाम स्वरूप हैं। न्यू मीडिया समाचारों, लेखों, सृजनात्मक लेखन
या पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया की परिभाषा पारंपरिक
मीडिया की तर्ज पर दी ही नहीं जा सकती। न सिर्फ समाचार पत्रों की वेबसाइटें और
पोर्टल न्यू मीडिया के दायरे में आते हैं बल्कि नौकरी ढूंढने वाली वेबसाइट, रिश्ते तलाशने
वाले पोर्टल, ब्लॉग, स्ट्रीमिंग ऑडियो-वीडियो, ईमेल, चैटिंग, इंटरनेट फोन, इंटरनेट पर होने
वाली खरीददारी, नीलामी, फिल्मों की सीडी, डीवीडी, डिजिटल कैमरे से
लिए फोटोग्राफ, इंटरनेट सवेर्क्षण, इंटरनेट आधारित
चर्चा के मंच, दोस्त बनाने वाली वेबसाइटें और सॉफ्टवेयर तक न्यू मीडिया का
हिस्सा हैं। न्यू मीडिया को पत्रकारिता का एक स्वरूप भर समझने वालों को अचंभित
करने के लिए शायद इतना काफी है, लेकिन न्यू मीडिया इन तक भी सीमित नहीं है। ये
तो उसके अनुप्रयोगों की एक छोटी सी सूची भर है और ये अनुप्रयोग निरंतर बढ़ रहे
हैं।
इंसान की भाषायी
अथवा कलात्मक अभिव्यक्ति को एक से अधिक व्यक्तियों तथा स्थानों तक
पहुँचाने की व्यवस्था को ही मीडिया का नाम दिया गया है। पिछली कई सदियों
से प्रिंट मीडिया इस मायने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है, जहाँ हमारी लिखित
अभिव्यक्ति होती रही है तथा बाद में छायाचित्रों को शामिल करने पर दृश्य अभिव्यक्ति भी
प्रिंट मीडिया के द्वारा संभव हो सकी है। यह मीडिया बहुरंगी कलेवर में और भी
प्रभावी हुई। बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने भी साथ-साथ अपनी जगह बनाई, जहाँ पहले तो श्रव्य अभिव्यक्ति को रेडियो के माध्यम से प्रसारित करना
संभव हुआ तथा बाद में टेलीविजन के माध्यम से श्रव्य-दृश्य दोनों ही अभिव्यक्तियों का प्रसारण संभव हो सका। प्रिंट मीडिया
की अपेक्षा यहाँ की दृश्य
अभिव्यक्ति अधिक प्रभावी हुई, क्योंकि यहाँ चलायमान दृश्य अभिव्यक्ति भी
संभव हुई।
बीसवीं सदी में
कंप्यूटर के विकास के साथ एक नए माध्यम ने जन्म लिया, जो डिजिटल था। शुरूआती
दौर में डाटा के सुविधाजनक आदान-प्रदान के लिए शुरू की गई कंप्यूटर
आधारित सीमित इंटरनेट सेवा ने आज विश्वव्यापी रूप अख्तियार कर लिया है। इंटरनेट
के प्रचार-प्रसार और लगातार तकनीकी विकास ने एक ऐसी वेब मीडिया को जन्म दिया, जहाँ अभिव्यक्ति की
आजादी है। जहां हर कोई अपनी बात ‘मास’ के पास पहुंचा सकता है। यह वेब मीडिया ही ‘न्यू मीडिया’ है, जो एक कंपोजिट
मीडिया है, जहाँ तत्काल अभिव्यक्ति संभव है, जहाँ एक शीर्षक
अथवा विषय पर उपलब्ध सभी अभिव्यक्यिों की एक साथ जानकारी प्राप्त करना संभव है, जहाँ किसी
अभिव्यक्ति पर तत्काल प्रतिक्रिया देना ही संभव नहीं, बल्कि उस अभिव्यक्ति को उस पर प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं के
साथ एक जगह साथ-साथ देख पाना भी संभव है। इतना ही नहीं, यह मीडिया
लोकतंत्र में नागरिकों के वोट के अधिकार के समान ही हरेक व्यक्ति की भागीदारी के
लिए हर समय उपलब्ध और खुली हुई है।
हालांकि करीब ढाई
दशक की जीवनयात्रा के बाद शायद 'न्यू मीडिया' का नाम 'न्यू मीडिया' नहीं रह जाना
चाहिए क्योंकि वह सुप्रचलित और परिपक्व सेक्टर का रूप ले चुका है। लेकिन शायद वह
हमेशा 'न्यू मीडिया' ही बना रहे
क्योंकि पुरानापन उसकी फितरत में ही नहीं है। वह तेजी के साथ विकसित और बदल रहा
है। साथ ही, नए पहलुओं, नए स्वरूपों, नए माध्यमों, नए प्रयोगों और
नई अभिव्यक्तियों से संपन्न भी होता जा रहा है। नवीनता और सृजनात्मकता इस नए
मीडिया की स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं। यह कल्पनाओं की गति से बढ़ने वाला मीडिया
है जो निरंतर बदलाव और नएपन से गुजरता रहेगा, और नया बना
रहेगा।
न्यू मीडिया
सुपरफिशियल तो प्रिंट मीडिया गंभीर माध्यम -
मीडिया विद्वान
नोम चामस्की ने न्यू मीडिया को ‘सुपरफिशियल’ माध्यम कहा है।
हालांकि, वह खुद ट्वीटर आदि पर विभिन्न गंभीर विषयों से संबंधित
नियमित ‘कमेंट’ डालते रहते हैं। विकीलिक्स के माध्यम से
दुनियाभर में तहलका मचाने वाले जुलियन अंसाजे
ने तो सोशल न्यू मीडिया को आने वाली सभ्यताओं के लिए एक खतरनाक माध्यम
बताया है। वह समाज को सोशल मीडिया के ‘कंपलशन’ से बचे रहने के
लिए आगाह कर रहे हैं। मार्शल मैक्लुहान ने कार को ‘यांत्रिक दुल्हन’ रेडियो को ‘जनजातिय ढोल’, फोटो का ‘बिना दीवारों का
वेश्यालय’ और टीवी को ‘इडियट बॉक्स’ व ‘डरपोक राक्षस’ कहा था। यदि
माध्यमों को परिभाषित करने की उनकी शैली को आगे बढ़ाया जाए तो न्यू मीडिया जैसे
नवीन माध्यम को ‘शरारती बच्चा’ कहना ठीक रहेगा।
यह सही भी है, सोशल मीडिया नियंत्रणरहित
माध्यम है।
प्रिंट मीडिया के
चरित्र की चर्चा करनी हो तो उसके लिए एक शानदार उदाहरण है, अमेरिका के तीसरे
राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने कहा था, ''यदि मुझे कभी यह
निश्चित करने के लिए कहा गया कि अखबार और सरकार में से किसी एक को चुनना है तो मैं
बिना हिचक यही कहूंगा कि सरकार चाहे न हो, लेकिन अखबारों का
अस्तित्व अवश्य रहे।" एक दौर था जब अखबार को समाज का दर्पण कहा जाता था समाज
में जागरुकता लाने में अखबारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह भूमिका किसी एक
देश अथवा क्षेत्र तक सीमित नहीं है, विश्व के तमाम
प्रगतिशील विचारों वाले देशों में समाचार पत्रों की महती भूमिका से कोई इंकार नहीं
कर सकता।
मीडिया में और
विशेष तौर पर प्रिंट मीडिया में जनमत बनाने की अद्भुत शक्ति होती है। नीति
निर्धारण में जनता की राय जानने में और नीति निर्धारकों तक जनता की बात पहुंचाने
में समाचार पत्र एक सेतु की तरह काम करते हैं। समाज पर समाचार पत्रों का प्रभाव
जानने के लिए हमें एक दृष्टि अपने इतिहास पर डालनी चाहिए। लोकमान्य तिलक, महात्मा गाँधी और
पं. नेहरू जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने अखबारों को अपनी लड़ाई का एक महत्वपूर्ण
हथियार बनाया। आजादी के संघर्ष में भारतीय समाज को एकजुट करने में समाचार पत्रों
की विशेष भूमिका थी। यह भूमिका इतनी प्रभावशाली हो गई थी कि अंग्रेजों ने प्रेस के
दमन के लिए हरसंभव कदम उठाए। स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और
वकालत करने में अखबार सबसे आगे रहे। आज मीडिया अखबारों तक सीमित नहीं है, लेकिन वेब
मीडिया की तुलना में प्रिंट मीडिया की पहुंच और विश्वसनीयता कहीं अधिक है।
प्रिंट मीडिया का
महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि आप छपी हुई बातों को संदर्भ के रूप में
इस्तेमाल कर सकते हैं और उनका अध्ययन भी कर सकते हैं। ऐसे में प्रिंट मीडिया की
जिम्मेदारी भी निश्चित रूप से बढ़ जाती है। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी के शेर से ज्यादातर
वाकिफ होंगे, “न खेचों कमान, न तलवार निकालो।
"गर तोप मुकाबिल हो, तो अखबार निकालो।“
प्रिंट के
मुकाबले ‘फ्री फ्लो मीडियम’ है न्यू मीडिया –
सोशल मीडिया ‘फ्री फ्लो मीडियम’ है। इसका प्रयोग
करने वाला प्रत्येक व्यक्ति ‘प्रोड्युसर’ भी है और ‘कंज्युमर’ भी। मुख्यधारा मीडिया
और सोशल मीडिया में अंतरनिर्भरता भी देखने को मिलती है। किसी घटना से संबंधित कोई
खबर मुख्यधारा मीडिया में आती है तो सोशल मीडिया में उसके प्रभाव को देखा जा सकता
है। वहीं, यदि सोशल मीडिया में कोई ‘ट्रेंड’ चल रहा है तो
उसके प्रभाव को समाचार चैनलों में देखा जा सकता है। राजनेताओं या अभिनेताओं द्वारा
फेसबुक, ट्विटर या ब्लॉग पर डाला गया भी पोस्ट भी कभी-कभी मुख्यधारा
मीडिया के लिए बड़ी खबर बन जाते हैं।
सूचनाओं को
सीमाओं से मुक्त करने वाले हस्तक्षेप का नाम ही न्यू मीडिया है। वह विभिन्न
माध्यमों को साथ लाने, उनके बीच अंतर−संबंध विकसित करने, उन्हें
परिवर्द्धित−समृद्ध करने और नई संभावनाओं से जोड़ने वाला माध्यम है। उसका कलेवर
इतना विशाल है कि वह एक ही स्थान पर अनेक पारंपरिक मीडिया को साथ आने, अपनी पहचान बनाए
रखते हुए अभिव्यक्ति को व्यापक बनाने का अवसर देता है। एक ही वेब पेज पर खबर, उससे जुड़े
वीडियो, ऑडियो, तसवीरों, पुरानी खबरों की
कडि़यों, पाठकीय टिप्पणियों व चर्चाओं आदि को रखने की उसकी क्षमता
सिद्ध करती है कि वह वैकल्पिक माध्यम से कहीं बड़ी चीज़ है। यह क्षमता पुराने
मीडिया में नहीं थी क्योंकि प्रिंट, रेडियो और
टेलीविजन की विषय−वस्तु अलग−अलग माध्यमों से ही प्रसारित होती थी।
एक खुला और काफी
हद तक नियंत्रणमुक्त माध्यम होने के नाते न्यू मीडिया की विषयवस्तु में गुणवत्ता, वजन, साख, प्रामाणिकता आदि
के मामले में कुछ सीमाएं हैं। लेकिन फिर उसने मीडिया में सदियों से प्रचलित इस
अवधारणा को भी पहली बार खंडित करने का दुस्साहस किया है कि कंटेंट ही सब कुछ है।
वह सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं है बल्कि ईमेल से लेकर सर्च इंजन, सॉफ्टवेयर
डाउनलोड से लेकर वीडियो साइट, समाचार पोर्टल से लेकर ई−कॉमर्स, फोटो−शेयरिंग
वेबसाइटों से लेकर चैट तक और सामाजिक मेलजोल के पोर्टलों से लेकर ब्लॉग तक न्यू
मीडिया के दायरे में आते हैं।
प्रिंट मीडिया
अभिव्यक्ति की आजादी के मसले पर बात करे तो तमाम ऐसे पहलू हैं, जिनपर चर्चा की
जानी चाहिए। प्रिंट मीडिया यानि किसा अखबार या पत्रिका में संपादकों के रूप ‘गेटकीपरों’ की एक पूरी फौज
होती है। किसी खबर को प्रकाशन से पूर्व तमाम संपादकीय कसौटियों से होकर गुजरना है।
ऐसे हालतों में कभी-कभी अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है। लेकिन गंभीरता के
मामले में प्रिंट मीडिया न्यू मीडिया के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कहीं आगे है।
प्रिंट मीडिया ऐसा मंच हैं जहां रफ्तार से इतर, ठहर कर गंभीर विषयों पर बहस की जा
सकती है।
साथ ही न्यू
मीडिया ने प्रिंट मीडिया और पारंपरिक के लिए एक बड़ी चुनौती भी पेश की है। शेन
बोमैन और क्रिस विलिस के शब्दों में कहें तो खबरों के चौकीदार के रूप में पारंपरिक
मीडिया की भूमिका को सिर्फ तकनीक या प्रतिद्वंद्वियों से ही खतरा नहीं है बल्कि
उसके अपने उपयोगकर्ताओं से भी है। क्योंकि न्यू मीडिया ने उपयोगकर्ता को सप्लायर
भी बना दिया है। पारंपरिक मीडिया के लिए इस अजीबोगरीब युगांतरकारी संक्रमण के
माहौल में आम आदमी से जुड़ना और अपना स्वरूप बदलना शायद एक विकल्प नहीं बल्कि
अनिवार्यता हो गया है।
तभी तो
एक्सप्रेसइंडिया से लेकर टाइम्स समूह और सीएनएन से लेकर डीएनए तक ने अपने पाठकों
को बेखौफ टिप्पणियां करने के लिए ब्लॉगिंग का मंच मुहैया करा दिया है। तभी तो सीएनएन−आईबीएन से लेकर एनडीटीवी और टाइम्स नाऊ तक आम
लोगों को सिटीजन रिपोर्टर बनाने में जुटे हैं। तभी तो गूगल पचासों लाख पुस्तकों को
डाउनलोड करने और सर्च करने लायक बनाने के लिए उनके डिजीटाइजेशन में जुटा है।
कभी जो विदेशी अखबार,
पत्र – पत्रिकाए हमारे देश में बहुत मंहगीं होने के कारण जिनके दर्शन भी नहीं हो पाते थे वो आज दुनिया भर की पत्र
– पत्रिकाए हमारे कंप्यूटर के परदे पर हाजिर हो जाती है वो भी मुफ्त में,
केवल हमारे पास इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए ।
खासियतों के जरिए
आगे है न्यू मीडिया-
न्यू मीडिया में
पारंपरिक मीडिया के मुकाबले तमाम खासियतें हैं। वह सीमाओं के विरुद्ध कार्य करने
वाली शक्ति के रूप में उभरा है। उसे न समय की सीमा प्रभावित करती है और न भौगोलिक
सीमा। खबर के वेबसाइट पर डाले जाने की देर है कि वह पाठक तक भी पहुंच जाती है, भले ही वह विश्व
के किसी भी कोने में क्यों न रहता हो। न प्रिंट मीडिया की तरह सुबह तक का इंतजार
और न टेलीविजन की तरह अपने उपग्रह के फुटप्रिंट (कवरेज क्षेत्र) तक सिमटे रहने की
सीमा। उसकी विषयवस्तु चूंकि आंकिक (डिजिटल) है इसलिए स्थायी भी है। वर्षों सहेजकर
रखिए वह न खराब होगी, न उसकी गुणवत्ता में कोई फर्क आएगा। टेलीविजन
चैनलों में बीटा और यूमैटिक टेपों का प्रयोग कर चुके पत्रकारों को याद होगा कि किस
तरह वीडियो को एक टेप से दूसरी टेप में ट्रांसफर करने पर जेनरेशन लॉस आ जाता था!
अगर किसी वीडियो को चार.पांच बार एक से दूसरी टेप में ट्रांसफर किया जा चुका है तो
फिर लिप.सिंक की समस्या (वीडियो में बोले जा रहे शब्दों का उनके उच्चारण के कुछ
क्षण बाद सुनाई देना)। जैसे ही टेलीविजन चैनलों ने डिजिटल माध्यमों को अपनाया, पुरानी पीढ़ी की
समस्याएं खुद दूर हो गईं
लेकिन ये अकेली
सीमाएं नहीं हैं जिन्हें न्यू मीडिया ने ध्वस्त किया है। उसने अलग.अलग किस्म की
सूचनाओं के संप्रेषण के लिए अलग.अलग माध्यम के इस्तेमाल की अनिवायर्ता को समाप्त
कर दिया है। अखबारी खबरें पढ़ने के लिए मुद्रित पन्नों, आकाशवाणी की
खबरें सुनने के लिए रेडियो और टीवी चैनलों की खबरें देखने के लिए टेलीविजन सैट
जैसे माध्यम अब अपरिहार्य नहीं रहे। कंप्यूटर, स्मार्टफोन और
न्यू मीडिया के अन्य डिजिटल माध्यमों ने सूचनाओं के भिन्न.भिन्न स्वरूपों (मुद्रित
पाठ, ध्वनि, वीडियो, चित्र आदि) को एक
साथ आने के लिए मंच उपलब्ध कराया है। सूचनाओं के ये सभी स्वरूप एक ही वेबपेज पर
सौहार्द के साथ रह सकते हैं और एक दूसरे की विषयवस्तु को समृद्ध करते हैं। डिजिटल
माध्यम होने के कारण, पाठक चाहे तो उन्हें अपने कंप्यूटर या अन्य
डिजिटल युक्ति में सहेजकर भी रख सकता है। वह चाहे तो अपने कंप्यूटर में उसे
संपादित भी कर सकता है।
सारांश
न्यू मीडिया यानी
भविष्य का मीडिया सीमाओं के बारे में नहीं, सीमाएं खत्म करने
के बारे में है। वहां रफ्तार और दोनो ओर से संवाद है। वहीं, प्रिंट मीडिया गंभीर व
प्रमाणिकता का प्रतीक है। दोनी ही माध्यमों की कुछ सीमाएं व आजादियां है। न्यू
मीडिया ने हर व्यक्ति को आवाज दी है। वह इसके जरिए अपने को अभिव्यक्त कर रहा है।
प्रिंट मीडिया के जरिए घटनाओं का इतिहास तैयार हो रहा है, वहीं न्यू घटनाओं के साथ
व्यक्तियों का भी इतिहास तैयार कर रहा है।
यह हकीकत है कि हम
समय के उस दौर में हैं जहां खबरों और सूचनाओं के केंद्रीकृत नियंत्रण की व्यवस्था ज्यादा
प्रभावी नहीं है। न्यू मीडिया ने सूचनाओं पर सबका
अधिकार की कल्पना को हकीकत में बदलने में सहयोग किया है। पारंपरिक मीडिया, जिसमें
प्रिंट मीडिया भी शामिल हैं लोगों विचार और अधिकारों की जानकारी दी है।
यह कंटेट के
स्वरूप, प्रस्तुति तथा सूचनाओं के डिलीवरी−मैकेनिज्म को ही नहीं
बल्कि मीडिया की बुनियादी अवधारणा को भी बदलने की क्षमता रखता है क्योंकि न्यू
मीडिया की मूल प्रकृति इंटरएक्टिव है। पाठक के साथ सीधा संपर्क इसकी बुनियादी
विशेषता है। पारंपरिक मीडिया के 'एक प्रकाशक, अनेक पाठक' वाले
एकाधिकारवादी स्वरूप को न्यू मीडिया के 'अनेक प्रकाशक, अनेक पाठक' वाले अपेक्षाकृत
लोकतांत्रिक स्वरूप से बड़ी चुनौती मिल रही है। ऐसी चुनौती जो न रेडियो ने दी थी न
टेलीविजन ने, और जो मीडिया को आमूलचूल बदल सकती है। लेकिन सिर्फ चुनौती
ही क्यों, मीडिया के लिए यह एक बहुमूल्य अवसर भी तो है। अपना विकास व
विस्तार करने का, तकनीक के अधिक करीब आने का, पाठकों से सीधे
संवाद का और अपने आर्थिक साम्राज्य को फैलाने का भी।
संदर्भ-
1-
हरमन, नोम चोमेस्की, (1988), मेन्यूफेक्चरिंग
कोंसेंट: ए पॉलिटिकल
इकॉनमी ऑफ मास मीडिया, पेंटीओन बुन,
2-
मार्शल मैक्लुहान(1964), अंडरस्टैडिंग मीडिया,
एक्सटेंशन ऑफ मैन, एमआइटी प्रेस
3-
रीठा टी मुलिन (2008), थॉमस जेफरसमन: आर्किटेक्ट ऑफ फ्रीडम, पॉ प्रिंट
4-
लिसा जिटलमैन (2003), न्यू मीडिया, एमआइटी
प्रेस
5-
हेनरी जेंकिंस (2006), कन्वर्जेंस कल्चर: व्हेर न्यू एंड मीडिया कोलाइड, न्यूयार्क युनिवर्सिटी
प्रेस
6-
मीडिया मंथन, राज्य सभा टेलीविजन कार्यक्रम
7-
न्यूज लांड्री, मीडिया पोर्टल, संचालित मधु
त्रेहन
8-
https://www.goodreads.com/quotes/tag/freedom-of-speech