मंगलवार, 6 जनवरी 2015

महापुरूष भी पैदा करता है मीडिया



आज के दौर में कार्लाइल की यह पंक्तियां एकदम सटीक लगती हैं अगर समाचार पत्र हाथ में हों तो महापुरुषों का उत्पादन बाएं हाथ का खेल है। महापुरुष करंसी नोट की तरह होते हैं। करंसी नोटों की तरह वे स्वर्ण के प्रतीक हैं। उनका एक मूल्य होता है। हमें देखना यह है कि वे जाली नोट तो नहीं हैं?” कार्लाइल का कहना था कि इतिहास में ऐसे ढेर सारे महापुरुष हुए हैं, जो झूठे और स्वार्थी थे, लेकिन हम सब जानते हैं उन्हें अखबारों और प्रचारकों ने जनता के सामने महापुरुष बना दिया। वे किसी समाचार पत्र या मीडिया द्वारा निर्मित किए गए। अखबारों की मिलीभगत के कारण यह सदा सवाल बना रहेगा कि वे कितने खरे सिक्के थे और कितनी खरी-खरी बातें कहते थे। लेकिन अब सवाल समीक्षा का है, क्या हमें समाचार पत्रों या मीडिया से जुड़े लोगों की भी तुलना करंसी नोटों की उत्पादन संस्था से नहीं करनी चाहिए? क्या यह नहीं देखना चाहिए कि कहीं ये जाली नोट तो नहीं छाप रहे हैं? अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कहीं ये हीरोको विलेनऔर विलेनको हीरोतो नहीं बना रहे हैं?