शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

भारत के कश्मीर को अमन चाहिए


भारत का कश्मीर अलगाववाद और हिंसा की आग में झुलस रहा है | युवा हिंसा पर उतारू हैं| सार्वजनिक संपंती को नुकसान पहुंचाकर आन्दोलनकारी अपना आक्रोश जाहिर कर रहे हैं| अनेक युवा और सेना के जवान इस बेबुनियाद आन्दोलन की चपेट में आकर अपनी जान गवा चुके हैं | बहुतों के घर उजड़ चुके हैं, बहुत सी माँओं ने अपने बेटों को खो दिया है और बहुतों ने अपने पति को | लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है उनमें अविश्वास घर कर गया है | अब वहां के अधिकांश लोग कश्मीर मे किसी भी कीमत पर अमन चाहते हैं , वे अब इस रोज रोज की हिंसा से अजीज़ आ चुके हैं, वो शांति से जीना चाहते हैं उनकी रोजी रोटी, कामकाज हिंसा के कारण ठप पड़ चुके हैं उनके लिए सब कुछ अनिश्चित सा हो गया है | लेकिन कुछ सत्ता को चाहने वाले या पाकिस्तान के इशारों पर काम करनेवाले ये कभी चाहते ही नहीं कि वहां सामान्य जीवन बहाल हो| इस हिंसा को भड़काने में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों से इंकार नहीं किया जा सकता है, कहीं ना कहीं अलगाववादी पाकिस्तान से प्रेरित नज़र आते हैं |

` कश्मीर के युवा चीफ मिनिस्टर उमर अब्दुल्ला साहब इस अलगाववादी हिंसा को रोकने में पूरी तरह नाकामयाब रहे हैं| ध्यान देने
वाली बात यह है - उमर अब्दुल्ला भी कश्मीर के युवा हैं और आन्दोलनकारी भी कश्मीर के युवा| कोंग्रेस के राष्ट्रीय सचिव राहुल गाँधी भी इसी बात को ध्यान में रखकर कश्मीर मामले में उमर अब्दुल्ला को समय और समर्थन देने की बात कह रहे हैं कि युवा ही युवायो को ज्यादा अच्छे से समझ सकता है | लेकिन उमर अब्दुल्लाह की शांति अपील को कश्मीरी युवायों ने एक सिरे से खारिज कर दिया है वो कहीं न कहीं समझते हैं कि वो हममे से सामान्य नहीं हैवे राजपरिवार से संबंध रखते हैं| उन युवायों का सोचना है वे हमारी समस्यों से सही से वाफिक नहीं हैं।यदि वास्तव में उमर अब्दुल्ला कश्मीर में सुशासन और शांति चाहते है तो उनको युवायों की मानसिकता को समझना होगा उनके साथ बेहतर संवाद स्थापित करना होगा, उनको उनके बीच जाना होगा|

` कश्मीर में स्थाई शांति स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार की सत्तारुद पार्टी , विपक्ष , राज्य सरकार, सेना , प्रशासन, मीडिया , साहितकार, कलकर सभी को मिलजुलकर काम करना होगा ताकि असंतुष्ट युवायों को सही दिशा में लाया जा सके उन्हें विश्वास दिलाना होगा की आपका विकास अखंड भारत मेंही संभव है | सत्ता और विपक्ष को इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति करने के वजाए एक प्रभावी हल खोजना चाहिए | यदि ईमानदारी से देखा जाये तो किसी राष्ट्रीय नेता ने हिंसा के
दौरान वहां का दौरा नहीं किया वहां जाकर नजदीकी संवाद करने की, उनका वास्तविक हाल जाने की कोशिश नहीं कीगयी | महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को सर्वदलिये बैठक में कहा की -"इस देश में लालू प्रसाद , मुलायम सिंह , आडवाणी जैसे तमाम नेता है जो जनता से व्यापक संपर्क रखते हैं लेकिन इन तीनो में इन तीन महीनो के दौरान कश्मीर नहीं गया"| उनका कहना था -"उनको जाना चाहिए था यदि कोई मर भी जाता तो क्या फर्क पड़ता? यह तो कहा जायेगा की जनता के मकसद के लिए जान दे दी" लेकिन असरदार भूमिका निभाने के लिए राजनीतिको को करना होगा | उन्हें समझदारी और संवेदनशीलता से काम लेना होगा| मीडिया, साहित्कार, कलाकारइन सभी को अपनी भूमिका बडानी होगी| ये सभी लोग महज़ अभी लेख लिख रहे हैं या गोष्ठियों में जारहे हैं इन सभी को अपनी भूमिका बढानी चाहिए और देश की अखंडता और राष्ट्रिता के लिए जोखिम उठाना चाहिए

` कश्मीर मसले पर लोगो की भावनायों को भड़काने वाले साहित्कारों और मीडिया से जुड़े लोगों पर भी सरकार को लगाम कसनी होगी| इ बारे में डोगरी साहित्य की जानी मानी लेखिका पदमा सचदेवाअपने एक लेख में लिखती हैं " गुलाम अहमद मज्हूर साहब कश्मीर के जाने मानइ कवि हुए हैं | उन्होंने कश्मीरी कविता को नयी शैली दी | लेकिन वो लिखते थे की -`हिंदुस्तान मैं तुम पर अपनीजान कुर्बान करता हूँ पर यह देह कश्मीर के साथ है` यह बात खलने वाली है| हैरानी की बात है किउस समय शेइख अब्दुल्ला साहब , बक्सी साहब और अनेक जाने माने
राजनेता"| फिर भी किसी ने उनको नहीं रोका | उनसे पूछा जाना चाहिए वो ऐसा क्यों लिख रहे हैं? स्थितयां बिगाड़ने में इस तरहकि भावनायों का भी योगदान है | इस प्रकार की भावनायों को फ़ैलाने वालों पर रोक लगनी चाहिए तभी कश्मीर में अमन कायम हो सकता है |