बुधवार, 18 नवंबर 2020

लाला लाजपत राय के इस्लाम के बारे में विचार

17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय का निधन हुआ था । 17 नवंबर उनकी पुण्यतिथि है । शत शत नमन और श्रद्धांजलि । 

लाला लाजपत राय ने देशबंधु चितरंजन दास को एक चिट्ठी लिखी थी । इस चिट्ठी का जिक्र भीम राव अंबेडकर ने अपनी किताब "पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन" में किया है । (फोटो उन्हीं की किताब से ली गई है)

कुरान और हदीस को पढ़ने के बाद चिंता से ग्रस्त होकर लाल लाजपत राय ने चिट्ठी में लिखा... कि अगर मान भी लिया जाए कि कोई मुसलमान बहुत सज्जन हो तो भी क्या वो कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा के खिलाफ जाएगा ? जिसमें काफिरों को कत्ल वाजिब ए जायज और भारत को दारुल इस्लाम बनाने की बात कही गई है।

उस चिट्ठी में लाला लाजपत राय लिखते हैं... 

“एक बात ओर मुझे बहुत दिनों से कष्ट दे रही है जिसे मैं चाहता हूँ कि आप बहुत ध्यान से सोचें और वो है हिंदू-मुस्लिम एकता । मैंने पिछले 6 महीने में अपना अधिकांश समय मुस्लिम इतिहास और मुस्लिम कानून को पढ़ने में लगाया है और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि यह ना तो संभव है और ना ही व्यवहारिक है । हकीम अजमल खां साहब से बेहतर कोई मुसलमान हिंदुस्तान में नहीं है लेकिन क्या कोई अन्य मुस्लिम नेता कुरान के खिलाफ जा सकता है । मैं तो केवल यही सोचता हूँ कि इस्लामिक कानून के बारे में मेरा ज्ञान सही नहीं है और ऐसा ही सोचकर मुझे राहत मिलती है । मुझे आशंका ये है कि हिंदुस्तान के 7 करोड़ मुसलमान और अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया, अरब और मेसोपोटामिया और तुर्की के हथियारबंद गिरोह मिलकर अप्रत्याशित स्थिति पैदा कर देंगे । मैं मुस्लिम नेताओं पर भी पूरी तरह से विश्वास करने को तैयार हूँ लेकिन कुरान और हदीस की निषेधाज्ञा की मेरे पास कोई काट नहीं है ।”   
(पूरी चिट्ठी अटैच की हुई तस्वीर में पढ़ सकते हैं)

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