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मंगलवार, 30 जनवरी 2018

विनोबा भावे आश्रम, पवनार, वर्धा

गौतम बजाज, इन्होंने करीब तीस साल विनोबा भावे के साथ गुजारे। आज विनोबा भावे के पवनार आश्रम के प्रमुख हैं। 






विनोबा भावे का समाधि स्थल
पवनार आश्रम की मार्गदर्शिका देवी, इन्होंने भी एक लंबा समय विनोवा भावे के साथ गुजारा।


गुरुवार, 18 जनवरी 2018

सपनों का सच

Devanshi sejwar


मेरे सपने मुझसे क्या कहते हैं
कभी मुझे डराते हैं,
कभी स्नेह दिलाते हैं।
बिछड़ों से मिलाते हैं,
कभी उनके लिए तड़पाते हैं।
सपनों में कभी राजा हूं,
कभी रंक हूं।
कभी उसके पास हूं,
कभी उससे दूर हूं।
उसको छूकर रोमांचित हो उठता हूं,
कभी दौड़ता कभी हांफता।
कभी दौड़ नहीं पाता,
कभी उसे पकड़ नहीं पाता हूं।
कभी डर को डरता है,
कभी उससे डर जाता हूं,
कभी उड़ता, छलांग लगता हूं।
सपनों में मेरी सफलताएं हैं,
मेरी कुंठाएं है, असफलताएं हैं।
कभी बचपन है, कभी बचपन की यादें।
कभी मेरी कलम है कभी परीक्षाएं हैं।
परीक्षाएं छूटती हैं, कलम खो जाती है।
कभी कलम चल नहीं पाती है।
उठकर सोचता हूं।
कलम और परीक्षाओं से,
काफी आगे निकल आया हूं।
ना अब बचपन है, न वो लोग हैं।
अब दौड़ है, सपनों के बोझ हैं।
मान-अपमान है, शक्ति है – असहाय हैं।
अब अहसास बदल गए हैं।
वो दौर निकल गए हैं।
सपने मुझे क्यों धोखा देते हैं।
भूत-भविष्य क्यों दिखाते हैं।
अब बस सोचते हैं,
सपनों को नकारते हैं।
क्या यही सच या सपना सच।
तो न यह सच न सपना सच है।
आओ जगकर, सच को तलाशते हैं।
सपनों से निकलकर, सत्य को पाते हैं।  


mass communication galgotias university

Ashish Kumar & prof. Amitabh srivastva

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

JAAT HISTORY अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा




लेखक - आशीष कुमार
अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा
यह घटना सन् 1270-1280 के बीच की है । दिल्ली में बादशाह बलबन का राज्य था । उसके दरबार में एक अमीर दरबारी था ।जिसके तीन बेटे थे । उसके पास उन्नीस घोड़े भी थे । मरने से पहले वह वसीयत  लिख गया था कि इन घोड़ों का आधा हिस्सा... बड़े बेटे को, चौथाई हिस्सा मंझले को और पांचवां हिस्सा सबसे छोटे बेटे को बांट दिया जाये । बेटे उन 19 घोड़ों का इस तरह बंटवारा कर ही नहीं पाये और बादशाह के दरबार में इस समस्या को सुलझाने के लिए अपील की । बादशाह ने अपने सब दरबारियों से सलाह ली पर उनमें से कोई भी इसे हल नहीं कर सका ।
उस समय प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो बादशाह का दरबारी कवि था । उसने जाटों की भाषा को समझाने के लिए एक पुस्तक भी बादशाह के कहने पर लिखी थी जिसका नाम खलिक बारीथा । खुसरो ने कहा कि मैंने जाटों के इलाक़े में खूब घूम कर देखा है और पंचायती फैसले भी सुने हैं और सर्वखाप पंचायत का कोई पंच ही इसको हल कर सकता है । नवाब के लोगों ने इन्कार किया कि यह फैसला तो हो ही नहीं सकता..! परन्तु कवि अमीर खुसरो के कहने पर बादशाह बलबन ने सर्वखाप पंचायत में अपने एक खास आदमी को चिट्ठी देकर सौरम गांव (जिला मुजफ्फरनगर) भेजा (इसी गांव में शुरू से सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय चला आ रहा है और आज भी मौजूद है) ।
चिट्ठी पाकर पंचायत ने प्रधान पंच चौधरी रामसहाय को दिल्ली भेजने का फैसला किया। चौधरी साहब अपने घोड़े पर सवार होकर बादशाह के दरबार में दिल्ली पहुंच गये और बादशाह ने अपने सारे दरबारी बाहर के मैदान में इकट्ठे कर लिये । वहीं पर 19 घोड़ों को भी लाइन में बंधवा दिया । चौधरी रामसहाय ने अपना परिचय देकर कहना शुरू किया - शायद इतना तो आपको पता ही होगा कि हमारे यहां राजा और प्रजा का सम्बंध बाप-बेटे का होता है और प्रजा की सम्पत्ति पर राजा का भी हक होता है । इस नाते मैं जो अपना घोड़ा साथ लाया हूं, उस पर भी राजा का हक बनता है । इसलिये मैं यह अपना घोड़ा आपको भेंट करता हूं और इन 19 घोड़ों के साथ मिला देना चाहता हूं, इसके बाद मैं बंटवारे के बारे में अपना फैसला सुनाऊंगा ।बादशाह बलबन ने इसकी इजाजत दे दी और चौधरी साहब ने अपना घोड़ा उन 19 घोड़ों वाली कतार के आखिर में बांध दिया, इस तरह कुल बीस घोड़े हो गये । अब चौधरी ने उन घोड़ों का बंटवारा इस तरह कर दिया-
- आधा हिस्सा (20 ¸ 2 = 10) यानि दस घोड़े उस अमीर के बड़े बेटे को दे दिये ।
- चौथाई हिस्सा (20 ¸ 4 = 5) यानि पांच घोडे मंझले बेटे को दे दिये ।
- पांचवां हिस्सा (20 ¸ 5 = 4) यानि चार घोडे छोटे बेटे को दे दिये ।
इस प्रकार उन्नीस (10 + 5 + 4 = 19) घोड़ों का बंटवारा हो गया । बीसवां घोड़ा चौधरी रामसहाय का ही था जो बच गया । बंटवारा करके चौधरी ने सबसे कहा - मेरा अपना घोड़ा तो बच ही गया है, इजाजत हो तो इसको मैं ले जाऊं ?” बादशाह ने हां कह दी और चौधरी साहब का बहुत सम्मान और तारीफ की । चौधरी रामसहाय अपना घोड़ा लेकर अपने गांव सौरम की तरफ कूच करने ही वाले थे, तभी वहां पर मौजूद कई हजार दर्शक इस पंच के फैसले से गदगद होकर नाचने लगे और कवि अमीर खुसरो ने जोर से कहा -अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा। सारी भीड़ इसी पंक्ति को दोहराने लगी । तभी से यह
कहावत हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उत्तरप्रदेश तंथा दूसरी जगहों पर फैल गई । यहां यह बताना भी जरूरी है कि 19 घोड़ों के बंटवारे के समय विदेशी यात्री और इतिहासकार इब्न-बतूत भी वहीं दिल्ली दरबार में मौजूद था । यह वृत्तांत सर्वखाप पंचायत के अभिलेखागार में मौजूद है।
धन्यवाद।
ये है जाटों का इतिहास दोस्तों।

MEDIA BOOKS मीडिया चरित्र पुस्तक के कवर



MEDIA BOOKS दैनिक जागरण में प्रकाशित 'मीडिया चरित्र' पुस्तक की समीक्षा


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MEDIA BOOK REVIEW दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित मीडिया चरित्र पुस्तक की समीक्षा

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हिन्दी समाचार पत्र दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित 'मीडिया चरित्र' पुस्तक की समीक्षा

सोमवार, 1 मई 2017

ASHISH KUMAR

-:समर्पण:-
प्रेम कब प्रतिभा के पंखों को उगा देता है
पता ही नहीं चलता।
यह कृति
समर्पित है करुणा की मूर्ति
मेरी दादी स्व. श्रीमती गुलाब कौर के चरणों में
जिनका स्नेह
इस सृजन की शक्ति बना।

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MEDIA CHARITRA- ASHISH KUMAR, मीडिया चरित्र - आशीष कुमार



मीडिया चरित्र




अध्याय  सूची
1.       कारोबारी ढांचा और पेंच में पत्रकारिता
2.       सत्ता के गलियारों में भटकती पत्रकारिता
3.       चुनावी चौपड़ में मोहरा बना मीडिया
4.       देसी मीडिया की चौपड़ में विदेशी मोहरे
5.       पेड न्यूज: गंदा है पर धंधा है
6.       मीडिया की डुगडुगी और बाबाओं का बाजार
7.       मीडिया और युद्ध का बाजार
8.       मीडिया ट्रायल: खुद ही मुद्दई, खुद ही मुंसिफ
9.       किसानों के सरोकार और मीडिया बाजार
10.   तेरे बाजार में लगती शिक्षा की बोली
11.   सास-बहू, सनी लियोनीऔर मीडिया
12.   मीडिया में दलित: अब बात हाशिये की
13.   वो क्यों गायब है
14.   हिंदी पत्रकार मीडिया के महादलित
15.   संस्कृति-साहित्य से तौबा!
16.   तकनीकी तामझाम में झोलाछाप पत्रकारिता
17.   पैसे की दुनिया में पर्यावरण की बात!
18.   सोशल मीडिया कितना सोशल


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