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बुधवार, 10 दिसंबर 2014

फेसबुकिया बकवासबाजी


फेसबुकिया बकवासबाजी – भाग1

लोग सरलता के लिए परिभाषाओं के ढांचे गढ़ लेते हैं, ताकि दिमाग को विवेक की कसरत ने करनी पड़े। ये उन्हीं मीडियाजनों की तरह हैं जो सारे धतकर्म करते हैं और समाधि के प्रकारों की भी चर्चा करते हैं, इनकी समाधि और परिभाषाओं में कोई अंतर नहीं होता है। यह तो ऐसा है जिसने कभी आम न खाया आया हो और आम के स्वाद के बारे में पूछना चाहे। मेरा जवाब हो सकता है कि आम खट्टा होता है कुछ मीठा होता है, सौंधी खुशबू आती है, लेकिन सवाल पूछने वाला फिर कहेगा मीठा यानि गुड़ जैसा खट्टा यानि निबू जैसा। तो मैं कहूंगा नहीं ख्ट्टा और मीठा एक साथ। तो उसका अगला सवाल हो सकता है नीबू और गुड़ को मिलाने पर बने स्वाद जैसा। मैं कहूंगा नहीं उसका स्वाद अलग होता है। सवाल और जवाबों से जिस प्रकार आम का स्वाद नहीं चखा जा सकता, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति को परिभाषाओं से नही समझा जा सकता है, इसकी महानता को अनुभव करने के लिए इसे जीना होगा। साध्वी या साधु उसी महान परंपरा का एक अंग, जिसे जीकर ही जाना जा सकता है, बाहरी भगवा आवरण, चिमटा या फरसी से नहीं।
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भाग -2
विचित्रता का आलम देखिए कुछ लोग फेसबुक पर ही फसाद करने लग जाते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का ऐसा रायता फैलाने का शौक होता है कि दोनों हाथों से समेटना भारी हो जाए। इसे आजादी कहेंगे या घुट्टनापना, जिसमें बेशर्मी के नाड़े दिमाग से बाहर लटके हुए दिखाई देते हैं। मैं फेसबुकिया झंडाबरदारों से जानना चाहूंगा कि आजादी की सीमा कहां तक होनी चाहिए। अपने को स्वघोषित विद्वान मानकर दूसरे के दिमाग को कूड़ेदान समझ लेना क्या ठीक है। वैसे गाहे-बगाहे हुए अनुभव के आधार पर बताना चाहूंगा कि असली मजा ज्ञान की पीक मारने की जगह बतासे की तरह चूसने में है।
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भाग -2 .
मित्रों को भी कई कैटेगिरियां में परिभाषित किया जा सकता है, जैसे फेसबुकिया मित्र, धरातलीय मित्र, मौके की तलाश में रहने वाले मित्र, काम निकलने पर ही संपर्क करने वाले मित्र, बकलोल मित्र यानि काम से ज्यादा बातों की मित्रता में विश्वास करते हैं। लेकिन एक खास तरह के मित्रों की नस्ल को जोर देकर बताने की जरूरत है वे हैं फेसबुक पर पीछा करने वाले मित्र, ये वो होते हैं जो स्टेटस अपडेट का चोरी-छुपे पीछा करते हैं, कोई निशान भी नहीं छोड़ते। ऐसे मित्रों के बारे में समझ में नहीं आता कि वे इतनी इनर्जी दूसरे को मॉनिटर करने में क्यों खर्च कर देते हैं। दूसरे की कई सफलता भरी फेसबुक स्टेटस तो उन्हें जलाकर कोयला कर देती हैं, क्योंकि सामने वाला कोई अपने को मनहूस दिखाने पोस्ट तो डालेगा नहीं, जिससे उसे खुश होने को मौका मिल सके।
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