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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

भारत में बिजनेस पत्रकारिता




विकसित होते भारत में आर्थिक पत्रकारिता विशेष महत्व रखती है। आर्थिकपत्रकारिता शब्द में दो शब्द हैंआर्थिक और पत्रकारिता। आर्थिक का संबंध अर्थशास्त्र से है। अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों धन और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।
अर्थशास्त्र की बहुत शुरुआती परिभाषाओं में एक परिभाषा एल रोबिंस ने दी हैअर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन उन साध्यों और सीमित साधनों के रिश्ते के रुप में करता है, जिनके वैकल्पिक प्रयोग हैं। संसाधन सीमित हैं, उनके किस प्रकार के प्रयोग संभव हैं। उन संसाधनों से किस प्रकार अधिकतम आउटपुट कैस प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर अर्थशास्त्र के अंतर्गत ढूंढा जाता है। अर्थशास्त्र के बारे में उन विद्वानों ने भी लिखा है, जो मूलत अर्थशास्त्री नहीं थे। प्रख्यात नाटककार और व्यंग्यकार बर्नार्ड शा ने लिखा हैअर्थशास्त्र जीवन से अधिकतम पाने की कला है।
अर्थशास्त्र में उत्पादन के विभिन्न तत्वों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। उत्पादन के महत्वपूर्ण तत्व हैं भूमि या प्राकृतिक संसाधन, जैसेखनिज, कच्चा माल, जो उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं। श्रम यानी वह मानवीय प्रयास जो उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं। इनमें मार्केटिंग और तकनीकी विशेषज्ञता शामिल है। पूंजी, जिससे मशीन,फैक्टरी इत्यादि खड़ी की जाती है। कारोबारी प्रयास, जिनके चलते शेष सारे तत्व काराबोर को संभव बनाते हैं।
इस लिहाज से आर्थिक पत्रकारिता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि आर्थिक या बिजनेस पत्रकारिता का अर्थ उस पत्रकारिता से है, जिसमें व्यापार, वाणिज्य जैसी तमाम आर्थिक गतिविधियों की जानकारी विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं तक पहुंचायी जाती है। आर्थिक पत्रकारिता करने के लिए आर्थिक गतिविधियों और शब्दावलियों की जानकारी होना बहुत आवश्यक है।
यदि किसी जनसंचार के विद्यार्थी को बतौर पत्रकार आर्थिक पत्रकारिता करनी है  तो आर्थिक शब्दों तकनीकी जानकारी होना बहुत जरूरी है। अर्थजगत में प्रत्येक आर्थिक गतिविधि से जुड़े शब्द का एक विशेष महत्व होता है। ऐसे शब्दों को समझे बगैर, न तो सही तरह से पत्रकारिता हो सकती है और न ही लेखक पाठकों को ठीक से समझा सकता है। आर्थिक पत्रकारिता करने से पहले आर्थिक शब्दालियों का आत्मसात करना बहुत जरूरी है। साथ ही हिन्दी में आर्थिक और बिजनेस पत्रकारिता करने के लिए यह आवश्यक है कि सही ढंग से अंगे्रजी का हिंदी में अनुवाद करना भी आना चाहिए।  क्योंकि हिन्दी  ख़बर लिखने के लिए जो भी सामग्री मिलती है, वह आम तौर पर अंगे्रजी में ही होती है,इसलिए अगर आप डेस्क के साथ-साथ रिपोर्टिंग भी कर रहे हों, तो अनुवाद से साबका आपका होगा ही। ऐसे में, अंगे्रजी जानना बेहद ज़रूरी हो जाता है। अनुवाद करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि शब्दश: अनुवाद न हो और भावानुवाद को महत्व दिया जाए। जटिल शब्दों को सरल शब्दों में लिखना ही आर्थिक पत्रकारिता की सही पहचान है। हां, अनुवाद करते वक्त अगर कोई कठिन तकनीकी शब्द आ जाए, तो बेहतर यही होगा कि उस शब्द को अंगे्रजी में ही जाने दें, ताकि अर्थ का अनर्थ न हो।
अनुवाद किसी भी दृष्टि से अनुवाद न लगे। पढ़ने वाले को यह एहसास हो कि जिस ख़बर को वह पढ़ रहा है, वह मूल रूप से हिंदी में ही लिखी गई है। वैसे, अनुवाद करना भी एक कला है और यह कला नियमित अभ्यास के जरिए ही आत्मसात की जा सकती है, बशर्ते कि हर शब्द का सही अर्थ लेखक जानता और समझता हो। अनुवाद तभी सही तरह से पठनीय होता है, जब पत्रकार एक भाषा से दूसरी भाषा की आत्मा को समझे। अगर मूल पाठ को समझने में कोई दिक्कत हो, तो अर्थ का अनर्थ होने का ख़तरा सौ प्रतिशत बना रहता है।
आर्थिक पत्रकारिता करने वाले लोगों को यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि आखिर किसी खास क्षेत्र के बजट में अगर सरकार बेतहाशा वृद्धि कर रही है, तो उसकी असली वजह क्या है? यहां यह जानना और लोगों को समझाना भी जरूरी होता है, क्योंकि ऐसी ब़ढोत्तरी के लिए सरकार कुछ और तर्क देती है, लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई कुछ और ही होती है।
आर्थिक पत्रकारिता करने वालों को इस बात से भी वाकिफ होना चाहिए कि भले ही एक तरफ देश में विदेशी मुद्रा भंडार और अरबपतियों की संख्या ब़ढ रही हो, लेकिन दूसरी ओर एक ब़डा वर्ग ऐसा भी है, जो दिनोंदिन और, और गरीब होता जा रहा है। समाज में चौतरफा फैल रही विषमता के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार आर्थिक गैरबराबरी ही है। दरअसल, आर्थिक असमानता की वजह से ही समाज में जीवनशैली, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास के अलावा, कई बुनियादी मोर्चों पर गैरबराबरी ब़ढ रही है। इन सभी मुद्दों पर लिखते वक्त हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहीं हम पूंजीपतियों की जी हुजूरी में तो नहीं लग गए हैं। दरअसल, हमें लिखते वक्त यह ध्यान भी रखना होगा कि आर्थिक गैरबराबरी की वजह से ही राज और समाज में कई तरह की विषमता फैलती है।