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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

भक्त धन्ना जाट

भक्त धन्ना जाट
Bhakt Danna Jaat
धन्ना जी का जन्म श्री गुरु नानक देव जी से पूर्व कोई 53 वर्ष पहले माना जाता है| आपका जन्म मुंबई के पास धुआन गाँव में एक जाट घराने में हुआ| आप के माता पिता कृषि और पशु पालन करके अपना जीवन यापन करते थे| वह बहुत निर्धन थे| जैसे ही धन्ना बड़ा हुआ उसे भी पशु चराने के काम में लगा दिया| वह प्रतिदिन पशु चराने जाया करता|

गाँव के बाहर ही कच्चे तालाब के किनारे एक ठाकुर द्वार था जिसमे बहुत सारी ठाकुरों की मूर्तियाँ रखी हुई थी| लोग प्रतिदिन वहाँ आकर माथा टेकते व भेंटा अर्पण करते| धन्ना पंडित को ठाकुरों की पूजा करते, स्नान करवाते व घंटियाँ खड़काते रोज देखता| अल्पबुद्धि का होने के कारण वह समझ न पाता| एक दिन उसके मन में आया कि देखतें हैं कि क्या है| उसने एक दिन पंडित से पूछ ही लिया कि आप मूर्तियों के आगे बैठकर आप क्या करते हो? पंडित ने कहा ठाकुर की सेवा करते हैं| जिनसे कि मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं| धन्ने ने कहा, यह ठाकुर मुझे भी दे दो| उससे छुटकारा पाने के लिए पंडित ने कपड़े में पत्थर लपेटकर दे दिया|

घर जाकर धन्ने ने पत्थर को ठाकुर समझकर स्नान कराया और भोग लगाने के लिए कहने लगा| उसने ठाकुर के आगे बहुत मिन्नते की| धन्ने ने कसम खाई कि यदि ठाकुर जी आप नहीं खायेंगे तो मैं भी भूखा ही रहूंगा| उसका यह प्रण देखकर प्रभु प्रगट हुए तथा रोटी खाई व लस्सी पी| इस प्रकार धन्ने ने अपने भोलेपन में पूजा करने और साफ मन से पत्थर में भी भगवान को पा लिया|

जब धन्ने को लगन लगी उस समय उसके माता - पिता बूढ़े हों चूके थे और छ अकेला नव युवक था| उसे ख्याल आया कि ठाकुर को पूजा से खुश करके यदि सब कुछ हासिल किया जा सकता है तो उसे अवश्य ही यह करना होगा जिससे घर की गरीबी चली जाए तथा सुख की साँस आए| ऐसा सोच कर ही वह पंडित के पास गया| पंडित ने पहले ठाकुर देने से मना के दिया कि जाट इतना बुद्धिमान नहीं होता कि वह ठाकुर की पूजा कर सके| दूसरा तुम अनपढ़ हो| तीसरा ठाकुर जी मन्दिर के बिना कही नहीं रहते और न ही प्रसन्न होते| इसलिए तुम जिद्द मत करो और खेतों की संभाल करो| ब्रहामण का धर्म है पूजा पाठ करना| जाट का कार्य है अनाज पैदा करना|

परन्तु धन्ना टस से मस न हुआ| अपनी पिटाई के डर से पंडित ने जो सालगराम मन्दिर में फालतू पड़ा था उठाकर धन्ने को दे दिया और पूजा - पाठ की विधि भी बता दी| पूरी रात धन्ने को नींद न आई| वह पूरी रात सोचता रहा कि ठाकुर को कैसे प्रसन्न करेगा और उनसे क्या माँगेगा| सुबह उठकर अपने नहाने के बाद ठाकुर को स्नान कराया| भक्ति भाव से बैठकर लस्सी रिडकी व रोटी पकाई| उसने प्रार्थना की, हे प्रभु! भोग लगाओ! मुझ गरीब के पास रोटी, लस्सी और मखन ही है और कुछ नहीं| जब और चीजे दोगे तब आपके आगे रख दूँगा| वह बैठा ठाकुर जी को देखता रहा| अब पत्थर भोजन कैसे करे? पंडित तो भोग का बहाना लगाकर सारी सामग्री घर ले जाता था| पर भले बालक को इस बात का कहाँ ज्ञान था| वह व्याकुल होकर कहने लगा कि क्या आप जाट का प्रसाद नहीं खाते? दादा तो इतनी देर नहीं लगाते थे| यदि आज आपने प्रसाद न खाया तो मैं मर जाऊंगा लेकिन आपके बगैर नहीं खाऊंगा|

प्रभु जानते थे कि यह मेरा निर्मल भक्त है| छल कपट नहीं जानता| अब तो प्रगट होना ही पड़ेगा| एक घंटा और बीतने के बाद धन्ना क्या देखता है कि श्री कृष्ण रूप भगवान जी रोटी मखन के साथ खा रहे हैं और लस्सी पी रहें हैं| भोजन खा कर प्रभु बोले धन्ने जो इच्छा है मांग लो मैं तुम पर प्रसन्न हूँ| धन्ने ने हाथ जोड़कर बिनती की --

भाव- जो तुम्हारी भक्ति करते हैं तू उनके कार्य संवार देता है| मुझे गेंहू, दाल व घी दीजिए| मैं खुश हो जाऊंगा यदि जूता, कपड़े, साथ प्रकार के आनाज, गाय या भैंस, सवारी करने के लिए घोड़ी तथा घर की देखभाल करने के लिए सुन्दर नारी मुझे दें|

धन्ने के यह वचन सुनकर प्रभु हँस पड़े और बोले यह सब वस्तुएं तुम्हें मिल जाएँगी|

प्रभु बोले - अन्य कुछ?

प्रभु! मैं जब भी आपको याद करू आप दर्शन दीजिए| यदि कोई जरुरत हुई तो बताऊंगा|

तथास्तु! भगवान ने उत्तर दिया|

हे प्रभु! धन्ना आज से आपका आजीवन सेवक हुआ| आपके इलावा किसी अन्य का नाम नहीं लूँगा| धन्ना खुशी से दीवाना हो गया| उसकी आँखे बन्द हो गई| जब आँखे खोली तो प्रभु वहाँ नहीं थे| वह पत्थर का सालगराम वहाँ पड़ा था| उसने बर्तन में बचा हुआ प्रसाद खाया जिससे उसे तीन लोको का ज्ञान हो गया|

प्रभु के दर्शनों के कुछ दिन पश्चात धन्ने के घर सारी खुशियाँ आ गई| एक अच्छे अमीर घर में उसका विवाह हो गया| उसकी बिना बोई भूमि पर भी फसल लहलहा गई| उसने जो जो प्रभु से माँगा था उसे सब मिल गया|

किसी ने धन्ने को कहा चाहे प्रभु तुम पर प्रसन्न हैं तुम्हें फिर भी गुरु धारण करना चाहिए| उसने स्वामी रामानंद जी का नाम बताया| एक दिन अचानक ही रामानंद जी उधर से निकले| भक्त धन्ने ने दिल से उनकी खूब सेवा की तथा दीक्षा की मांग की| रामानंद जी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली और दीक्षा देकर धन्ने को अपना शिष्य बना लिया| धन्ना राम नाम का सिमरन करने लगा| मौज में आकर धन्ना कई बार भगवान को अपने पास बुला लेता और उनसे अपने कार्य पूर्ण करवाता|

देश के प्रमुख जाट संत

तुम चले गये पर चरण चिन्ह क्या मिट सकते हैं।
कोई भी काल आये क्या आपके कर्म घट सकते हैं॥
  • (1) धन्ना जाट भक्त - हरचतवाल गोत्री,
  • (2) पूर्ण भक्त उर्फ बाबा चौरंगीनाथ - संधु (सिन्धड़) गोत्री
  • (3) सन्त गरीबदास - धनखड़ गोत्री
  • (4) बाबा दीपसिंह - संधु गोत्री
  • (5) बाबा जोगी पीर - चहल गोत्री
  • (6) पीर बाबा काला मेहर - संधु गोत्री (पाकिस्तान)
  • (7) हाफीज बरखुरदार - भराइच गोत्री (पाकिस्तान)
  • (8) लाखन पीर - चीमा गोत्री
  • (9) सन्त निश्चलदास - दहिया गोत्री
  • (10) भक्तशिरोमणि रानाबाई - घाना गोत्री (राज.)
  • (11) पीर साखी सरवर - सरवर गोत्री (पाकिस्तान)
  • (12) बाबा सिद्ध भोई - धालीवाल गोत्री
  • (13) पीर बादोके - चीमा गोत्री
  • (14) बाबा हरिदास - डागर गोत्री (दिल्ली)
  • (15) बाबा कालूनाथ - गिल गोत्री
  • (16) बाबा सिद्ध कालींझर - भुल्लर गोत्री
  • (17) बाबा मेहेर मांगा - बाजवा गोत्री
  • (18) बाबा आल्टो - ग्रेवाल गोत्री
  • (19) बाबा सिद्धासन - रणधावा गोत्री
  • (20) बाबा तिलकारा - सिन्धु गोत्री
  • (21) सिद्ध सूरतराम - गिल गोत्री
  • (22) बाबा तुल्ला - बासी गोत्री
  • (23) बाबा अकालदास - पन्नु गोत्री
  • (24) बाबा फाला - ढिल्लो गोत्री
  • (25) शहीद स्वामी स्वतंत्रानन्द सरस्वती - सरोहा गोत्री
  • (26) बाबा अदी - गर्चा गोत्री
  • (27) बाबा उदासनाथ - तेवतिया गोत्री
  • (28) पीर बादोक्यान - चीमा गोत्री
  • (29) जट्ट ज्योना - मौर गोत्री, लेकिन इनको ब्राह्मणवाद ने ज्यानी चोर कहकर बदनाम किया, क्योंकि ये दक्षिण एशिया में अपने समय के महान् बुद्धिमान् व्यक्ति थे जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने ही राजकुमारी महकदे की रक्षा की थी।
  • (30) स्वामी आनन्द मुनि सरस्वती - राणा गोत्री (उत्तरप्रदेश)
  • (31) स्वामी केशवानन्द - ढाका गोत्री (राजस्थान) - इन्होंने राजस्थान में शिक्षा क्षेत्र में महान् कार्य किया। संघरिया शिक्षा संस्थान इन्हीं की देन है।
  • (32) भक्त फूलसिंह - मलिक गोत्री। इनके नाम पर हरियाणा के सोनीपत जिले के खानपुर गांव में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।
  • (33) लोक देवता वीर तेजा जी - धौला गोत्री, राजस्थान के घर-घर में पूज्यनीय वीर देवता तथा प्रेरणा-स्रोत। इन्हीं के गोत्री भाइयों ने धौलपुर (राज.) शहर बसाया था।
  • (34) बाबा मस्तनाथ - जाटवंशज
  • (35) बाबा शिवनाथ - खत्री गोत्री, अस्थल बोहर जिला रोहतक के मुखिया रहे।
  • (36) सन्त सदाराम जी - रेवाड़ गोत्री जाट, जोधपुर के पूजनीय संत।
  • (37) सन्त मूदादास जी - वास गोत्री जाट, जोधपुर क्षेत्र में पूजनीय।
  • (38) साधवी फूलाबाई जी - नागौर क्षेत्र में लोग उनके दर्शन से धन्य होते थे, मांझू जाट गोत्र में जन्मी।
(नोट- याद रहे हरयाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौ० भजनलाल का भी यही गोत्र है जो हरयाणवी बिश्नोई जाट हैं न कि शरणार्थी पंजाबी।) इनके परिवार ने अवश्य कुछ दिन पाकिस्तान की भारत सीमा के साथ बहावलपुर स्टेट में अपने रिश्तेदारों के यहां खेती की थी। लेकिन ये सन् 1946 में ही वापिस अपने गांव आ गए थे।
  • (39) चूअरजी जाट जूझा - जिनकी मूर्ति राजस्थान में भगवान् की तरह पूजी जाती है।
  • (40) सन्त बख्तावर जी - झांझू गोत्री जाट, जिनकी मेवाड़ (राज.) क्षेत्र में पूजा होती है।
  • (41) हरिभगत कल्याण जी - जाठी गोत्री जाट जोधपुर राजाओं के गुरु कहलाये।
  • (42) महादानी भगत हर्षराम - फड़गौचा गोत्री जाट जिन्होंने खाटू से 12 कोस दूर पर विस्मयकारी कुंआं बनवाया जो आज भी अजूबा कहलाता है।
  • (43) गोगामेड़ी वाले - चहल गोत्री जाट, राजस्थान के गजरेरा गांव के रहने वाले थे, जिनके नाम पर मेड़ीधाम विख्यात है। यहां सभी धर्मों के लोग इन्हें पूजने जाते हैं।
  • (44) दानवीर सेठ छाजूराम - लांबा गोत्री जाट, जिनकी दान आस्था व सामर्थ्य कभी बिड़ला सेठ से भी अधिक थी।
  • (45) संत गंगा दास - ये महान् कवि संत थे जिनकी रचना गंगा सागरसंत सूरदास की रचनाओं के समक्ष मानी जाती है। ये गाजियाबाद के पास रसलपुर-बहलोलपुर के मुंडेर गोत्री जाट थे।
  • (46) बाबा सावनसिंहं - ग्रेवाल गोत्री - राधा स्वामी ब्यास
  • (47) जगदेवसिंह सिंह सिद्धान्ती - अहलावत गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी तथा सांसद भी रहे ।
  • (48) राधा स्वामी ताराचन्द - मल्हान गोत्री - राधा स्वामी दिनोद सत्संग के संस्थापक।
  • (49) भगवानदेव आचार्य उर्फ स्वामी ओमानन्दखत्री गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी जिन्होंने कन्या गुरुकुल नरेला तथा गुरुकुल झज्जर की स्थापना की।
  • (50) सन्त जरनैलसिंह भिण्डरवाला - बराड़ गोत्री जिन्होंने सन् 1984 में विद्रोह किया।
  • (51) संत कैप्टन लालचन्द - जिला चुरू के रहने वाले सहारण गोत्री जाट जिन्होंने एक नया अध्यात्मक विचार पैदा किया।
  • (52) त्यागी मनसाराम बूज्जाभगत - श्योराण गोत्री, आदि-आदि।

तुम चले गये पर चरण चिन्ह क्या मिट सकते हैं।
कोई भी काल आये क्या आपके कर्म घट सकते हैं॥
  • (1) धन्ना जाट भक्त - हरचतवाल गोत्री,
  • (2) पूर्ण भक्त उर्फ बाबा चौरंगीनाथ - संधु (सिन्धड़) गोत्री
  • (3) सन्त गरीबदास - धनखड़ गोत्री
  • (4) बाबा दीपसिंह - संधु गोत्री
  • (5) बाबा जोगी पीर - चहल गोत्री
  • (6) पीर बाबा काला मेहर - संधु गोत्री (पाकिस्तान)
  • (7) हाफीज बरखुरदार - भराइच गोत्री (पाकिस्तान)
  • (8) लाखन पीर - चीमा गोत्री
  • (9) सन्त निश्चलदास - दहिया गोत्री
  • (10) भक्तशिरोमणि रानाबाई - घाना गोत्री (राज.)
  • (11) पीर साखी सरवर - सरवर गोत्री (पाकिस्तान)
  • (12) बाबा सिद्ध भोई - धालीवाल गोत्री
  • (13) पीर बादोके - चीमा गोत्री
  • (14) बाबा हरिदास - डागर गोत्री (दिल्ली)
  • (15) बाबा कालूनाथ - गिल गोत्री
  • (16) बाबा सिद्ध कालींझर - भुल्लर गोत्री
  • (17) बाबा मेहेर मांगा - बाजवा गोत्री
  • (18) बाबा आल्टो - ग्रेवाल गोत्री
  • (19) बाबा सिद्धासन - रणधावा गोत्री
  • (20) बाबा तिलकारा - सिन्धु गोत्री
  • (21) सिद्ध सूरतराम - गिल गोत्री
  • (22) बाबा तुल्ला - बासी गोत्री
  • (23) बाबा अकालदास - पन्नु गोत्री
  • (24) बाबा फाला - ढिल्लो गोत्री
  • (25) शहीद स्वामी स्वतंत्रानन्द सरस्वती - सरोहा गोत्री
  • (26) बाबा अदी - गर्चा गोत्री
  • (27) बाबा उदासनाथ - तेवतिया गोत्री
  • (28) पीर बादोक्यान - चीमा गोत्री
  • (29) जट्ट ज्योना - मौर गोत्री, लेकिन इनको ब्राह्मणवाद ने ज्यानी चोर कहकर बदनाम किया, क्योंकि ये दक्षिण एशिया में अपने समय के महान् बुद्धिमान् व्यक्ति थे जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने ही राजकुमारी महकदे की रक्षा की थी।
  • (30) स्वामी आनन्द मुनि सरस्वती - राणा गोत्री (उत्तरप्रदेश)
  • (31) स्वामी केशवानन्द - ढाका गोत्री (राजस्थान) - इन्होंने राजस्थान में शिक्षा क्षेत्र में महान् कार्य किया। संघरिया शिक्षा संस्थान इन्हीं की देन है।
  • (32) भक्त फूलसिंह - मलिक गोत्री। इनके नाम पर हरियाणा के सोनीपत जिले के खानपुर गांव में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।
  • (33) लोक देवता वीर तेजा जी - धौला गोत्री, राजस्थान के घर-घर में पूज्यनीय वीर देवता तथा प्रेरणा-स्रोत। इन्हीं के गोत्री भाइयों ने धौलपुर (राज.) शहर बसाया था।
  • (34) बाबा मस्तनाथ - जाटवंशज
  • (35) बाबा शिवनाथ - खत्री गोत्री, अस्थल बोहर जिला रोहतक के मुखिया रहे।
  • (36) सन्त सदाराम जी - रेवाड़ गोत्री जाट, जोधपुर के पूजनीय संत।
  • (37) सन्त मूदादास जी - वास गोत्री जाट, जोधपुर क्षेत्र में पूजनीय।
  • (38) साधवी फूलाबाई जी - नागौर क्षेत्र में लोग उनके दर्शन से धन्य होते थे, मांझू जाट गोत्र में जन्मी।
(नोट- याद रहे हरयाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौ० भजनलाल का भी यही गोत्र है जो हरयाणवी बिश्नोई जाट हैं न कि शरणार्थी पंजाबी।) इनके परिवार ने अवश्य कुछ दिन पाकिस्तान की भारत सीमा के साथ बहावलपुर स्टेट में अपने रिश्तेदारों के यहां खेती की थी। लेकिन ये सन् 1946 में ही वापिस अपने गांव आ गए थे।
  • (39) चूअरजी जाट जूझा - जिनकी मूर्ति राजस्थान में भगवान् की तरह पूजी जाती है।
  • (40) सन्त बख्तावर जी - झांझू गोत्री जाट, जिनकी मेवाड़ (राज.) क्षेत्र में पूजा होती है।
  • (41) हरिभगत कल्याण जी - जाठी गोत्री जाट जोधपुर राजाओं के गुरु कहलाये।
  • (42) महादानी भगत हर्षराम - फड़गौचा गोत्री जाट जिन्होंने खाटू से 12 कोस दूर पर विस्मयकारी कुंआं बनवाया जो आज भी अजूबा कहलाता है।
  • (43) गोगामेड़ी वाले - चहल गोत्री जाट, राजस्थान के गजरेरा गांव के रहने वाले थे, जिनके नाम पर मेड़ीधाम विख्यात है। यहां सभी धर्मों के लोग इन्हें पूजने जाते हैं।
  • (44) दानवीर सेठ छाजूराम - लांबा गोत्री जाट, जिनकी दान आस्था व सामर्थ्य कभी बिड़ला सेठ से भी अधिक थी।
  • (45) संत गंगा दास - ये महान् कवि संत थे जिनकी रचना गंगा सागरसंत सूरदास की रचनाओं के समक्ष मानी जाती है। ये गाजियाबाद के पास रसलपुर-बहलोलपुर के मुंडेर गोत्री जाट थे।
  • (46) बाबा सावनसिंहं - ग्रेवाल गोत्री - राधा स्वामी ब्यास
  • (47) जगदेवसिंह सिंह सिद्धान्ती - अहलावत गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी तथा सांसद भी रहे ।
  • (48) राधा स्वामी ताराचन्द - मल्हान गोत्री - राधा स्वामी दिनोद सत्संग के संस्थापक।
  • (49) भगवानदेव आचार्य उर्फ स्वामी ओमानन्दखत्री गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी जिन्होंने कन्या गुरुकुल नरेला तथा गुरुकुल झज्जर की स्थापना की।
  • (50) सन्त जरनैलसिंह भिण्डरवाला - बराड़ गोत्री जिन्होंने सन् 1984 में विद्रोह किया।
  • (51) संत कैप्टन लालचन्द - जिला चुरू के रहने वाले सहारण गोत्री जाट जिन्होंने एक नया अध्यात्मक विचार पैदा किया।
  • (52) त्यागी मनसाराम बूज्जाभगत - श्योराण गोत्री, आदि-आदि।