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रविवार, 4 नवंबर 2012

धर्म नहीं ...... टैक्स बचाने की दुकान


देश भर में चल रहीं तमाम धार्मिक संस्थाओं का टैक्स बचाने की दुकान कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा। देश में ऐसी सैकड़ों धार्मिक संस्थाएं चल रहीं हैं, जिनके मठाधीश अपने संस्था से जुड़े लोगों की संख्या करोडों में बताते हैं। वैसे देश की जनसंख्या को देखते हुए यह गणितीय रुप बेशक गलत हो सकता है, लेकिन मठाधीशों द्वारा अपनी संस्था के सदस्यों की संख्या बढाकर दिखाने के पीछे कारण अपने चेलों की संख्या व जन बल दिखाना होता है।
हां तो बात चल रही थी टैक्स बचाने की दुकान की। यह सच है, करीब-करीब सभी बडी धार्मिक संस्थाओं को टैक्स कानून की धारा 80 जी के तहत व अन्य उप प्रावधानों सहित दान देने वाले को टैक्स में छूट मिलती है। इसके तहत यदि कोई व्यक्ति इन संस्थाओं को दान देता है तो दान दी गई रकम को कुल आय में से माइनस कर दिया जाता है।
मान लीजिए गायत्री सेवा नाम की संस्था को एक व्यक्ति एक्स एक लाख रूपये दान देता है। तो उस संस्था के चमचे उसे 10 लाख रुपये की रसीद काट कर देते है। माना यदि उस व्यक्ति की वार्षिक आय 12 लाख रुपये है। यदि वह सरकार को ईमानदारी से टैक्स देता है तो उसे 12 लाख की रकम पर 4 लाख 80 हजार का टैक्स देना पडेगा। यदि ऐसे हालातों में एक्स नाम का व्यक्ति कौआ धार्मिक बन जाता है और इस प्रकार के भक्त की आस में बैठी गायत्री सेवा नामक संस्था की भी बांछे खिल जाती हैं। एक लाख दान देकर वह 10 लाख की रसीद प्राप्त कर लेता है, जिसे नियामानुसार 12 लाख में से माइनस कर दिया जाएगा। तो शेष राशि 2 लाख बचती है। बचे 2 लाख रुपये जिस पर भारत सरकार के नियमानुसार कोई टैक्स नहीं देना होगा।
तो इस एक्स कौआ भक्त और गायत्री सेवा संस्थान दोनों ने मिलकर देश को 4 लाख 80 हजार का चूना लगाया। इस धंधे में एक्स को 3 लाख 80 हजार की बचत हुई साथ मठाधीश का प्रिय़ भक्त बन गया। वहीं, गायत्री सेवा संस्थान को मात्र रसीद काटने के ही 1 लाख रुपये मिल गए। दोनों की मौजा ही मौजा। ऐसे में मठाधीश साहब अपना लग्जीरियसपना मेंटेन कर रहे और उनके संस्था में अमीर भक्तों की संख्या तथाकथित धार्मिक लाभ व धन लाभ को देखते हुए दिन-दुनी रात-चौकनी गति से बढ रही है।
 नोट – दिए गए लेख व्यक्ति एक्स व गायत्री सेवा संस्थान दोनों ही काल्पनिक हैं बाकि सब तथ्य सत्य व बातें यथार्थ हैं। 


आशीष कुमार