साभार
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता , रक्षक, पोषक हूँ l
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट, मै आदि-त्राता, उद्घोषक हूँ ll
मैं एक किन्तु संकल्प किया, तो एकोSहं बहुस्याम हुआ l
... मैंने विस्तार किया अपना, ब्रम्हांड उसी का नाम हुआ ll
ये चाँद और सूरज मेरी, आँखों में उगने वाले हैं l
है एक आंख में स्नेह , और दूजी में प्रखर उजाले है ll
मनचाही सृष्टि रचाने की, क्षमता वाला मैं कौशिक हूँ |
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक, पोषक हूँ ll
जिसमे मणि-मुक्तक छिपे हुए , वह सागर की गहराई हूँ l
जिसकी करुणा सुरसरि बनती, उस हिमनग की ऊँचाई हूँ ll
मेरा संगीत छिड़ा करता , कल-कल करते इन झरनों में l
मैं सौरभ बिखराता रहता , इन रं� �-बिरंगे सुमनों  4�ें ll
यह प्रकृति छठा मेरी ही है , इतना सुंदर मनमोहक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक, पोषक हूँ ll
मेरे चिंतन की धारा से, ऋषिओं का प्रादुर्भाव हुआ l
मैंने जब ऋचा उचारी तो, सुरसंस्कृति का फैलाव हुआ ll
मैं याज्ञवल्क्य, मैं ही वशिष्ठ, मैं परशुराम, भागीरथ हूँ l
जो कभी अधूरा रहा नहीं, मैं ऐसा प्रबल मनोरथ हूँ ll
प्रण पूरा करने महाकाल हूँ, कालचक्र अवरोधक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता, रक्षक पोषक हूँ ll
जन-हित में विष पीने वाली, विषपाई मेरी क्षमता है l
जन पीढ़ा से विगलित होती, ऐसी करुणा है, ममता है ll
मैंने साधारण वानर को , बजरंग बना के खड़ा किया l
मेरी गीता ने अर्जुन को , अन्याय मिटाने अड़ा दिया ll
विकृतियों से लोहा लेने , सुसंस्कृति का सह्योजक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll
मैंने संकल्प किया है फिर , भू पर ही स्वर्ग बसाऊंगा l
इस ही धरती के मानव को, शोधूंगा, देव बनाऊंगा ll
लाऊंगा मैं उज्वल भविष्य, इसका साक्षी यह दिनकर है l
मेरे संग सविता के साधक , गायत्री वाला परिकर है ll
मैं युग-दृष्टा, युग-सृष्टा , युगपरिवर्तन उद्घोषक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll
- श्रीराम शर्मा आचार्य
ये चाँद और सूरज मेरी, आँखों में उगने वाले हैं l
है एक आंख में स्नेह , और दूजी में प्रखर उजाले है ll
मनचाही सृष्टि रचाने की, क्षमता वाला मैं कौशिक हूँ |
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक, पोषक हूँ ll
जिसमे मणि-मुक्तक छिपे हुए , वह सागर की गहराई हूँ l
जिसकी करुणा सुरसरि बनती, उस हिमनग की ऊँचाई हूँ ll
मेरा संगीत छिड़ा करता , कल-कल करते इन झरनों में l
मैं सौरभ बिखराता रहता , इन रं� �-बिरंगे सुमनों  4�ें ll
यह प्रकृति छठा मेरी ही है , इतना सुंदर मनमोहक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक, पोषक हूँ ll
मेरे चिंतन की धारा से, ऋषिओं का प्रादुर्भाव हुआ l
मैंने जब ऋचा उचारी तो, सुरसंस्कृति का फैलाव हुआ ll
मैं याज्ञवल्क्य, मैं ही वशिष्ठ, मैं परशुराम, भागीरथ हूँ l
जो कभी अधूरा रहा नहीं, मैं ऐसा प्रबल मनोरथ हूँ ll
प्रण पूरा करने महाकाल हूँ, कालचक्र अवरोधक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता, रक्षक पोषक हूँ ll
जन-हित में विष पीने वाली, विषपाई मेरी क्षमता है l
जन पीढ़ा से विगलित होती, ऐसी करुणा है, ममता है ll
मैंने साधारण वानर को , बजरंग बना के खड़ा किया l
मेरी गीता ने अर्जुन को , अन्याय मिटाने अड़ा दिया ll
विकृतियों से लोहा लेने , सुसंस्कृति का सह्योजक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll
मैंने संकल्प किया है फिर , भू पर ही स्वर्ग बसाऊंगा l
इस ही धरती के मानव को, शोधूंगा, देव बनाऊंगा ll
लाऊंगा मैं उज्वल भविष्य, इसका साक्षी यह दिनकर है l
मेरे संग सविता के साधक , गायत्री वाला परिकर है ll
मैं युग-दृष्टा, युग-सृष्टा , युगपरिवर्तन उद्घोषक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll
- श्रीराम शर्मा आचार्य