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मंगलवार, 30 जुलाई 2013

मेरा राष्ट्र महान



AKHAND BHARAT
सुना है मेरे देश का इतिहास बड़ा महान
सोने की चिड़िया था लोग थे बडे सुजान
घर-घर  पैदा  होते  थे कृष्ण और राम
नारियां  पूजी  जाती थी देवी के समान

     


      ना  वर्ग  भेद था, ना जाति असमान
     ना नर-नारी भेद, था अधिकार समान
     प्रजा  सेवा था  राजा का कर्म प्रधान
     सत्य और अहिंसा थे सबकी आन-बान  

तकनीक से  परिपूर्ण था  हमारा विज्ञान
आसमान में उड़ा करते थे पुष्पक विमान
ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष  का  था पूर्ण ज्ञान
सभी  साक्षर  थे  पूर्ण  वेद   ज्ञानवान

     अब  मेरे  राष्ट्र को  क्या  हो गया है
     वह प्राण, स्वाभिमान कहां खो गया है
     राजनीति से जन सेवा लोप हो गया है
     निज हित ही उद्देश्य प्रधान हो  गया है

धर्म   मार्गदर्शक  से  उद्योग हो  गया है
मौलानाओं   की कट्टरता श्रृंगार  हो  गया है
राजनेता, उद्य़ोगपति, मालामाल हो गया है
रोटी की जुगाड़ में आम चूर-चूर हो गया है

      अब बस, जो  होना  सो हो गया
      आत्मगौरव को पुन:  पाना  होगा
      उल्टे को उलटकर सीधा करना होगा
      भारत को विश्व का सिरमौर बनेगा
     
-    आशीष कुमार  

बुधवार, 4 मई 2011

मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता , रक्षक, पोषक हूँ

 साभार
मेरा  क्या  परिचय  पूछ  रहे,   रचियता , रक्षक,  पोषक हूँ l
मैं शून्य किन्तु फिर भी विराट,  मै आदि-त्राता, उद्घोषक हूँ ll


मैं एक किन्तु संकल्प किया, तो एकोSहं बहुस्याम हुआ l
... मैंने विस्तार किया  अपना,   ब्रम्हांड उसी का नाम हुआ ll
ये  चाँद  और  सूरज  मेरी,   आँखों  में  उगने   वाले   हैं  l
है  एक  आंख  में  स्नेह ,  और  दूजी  में प्रखर उजाले  है ll

मनचाही सृष्टि रचाने की,  क्षमता वाला मैं कौशिक हूँ |
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक, पोषक  हूँ ll


जिसमे मणि-मुक्तक छिपे हुए , वह सागर  की  गहराई  हूँ l
जिसकी करुणा सुरसरि बनती,  उस हिमनग की ऊँचाई हूँ ll
मेरा  संगीत  छिड़ा  करता , कल-कल करते इन झरनों में l
मैं  सौरभ  बिखराता  रहता ,  इन  रं� �-बिरंगे  सुमनों  4�ें  ll

यह प्रकृति छठा मेरी ही है , इतना सुंदर मनमोहक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे, रचियता, रक्षक,  पोषक हूँ ll


मेरे चिंतन  की  धारा से,  ऋषिओं  का प्रादुर्भाव  हुआ l
मैंने जब ऋचा उचारी तो, सुरसंस्कृति का फैलाव हुआ ll
मैं याज्ञवल्क्य, मैं ही वशिष्ठ, मैं परशुराम, भागीरथ हूँ l
जो  कभी  अधूरा  रहा नहीं,  मैं ऐसा प्रबल मनोरथ हूँ ll

प्रण पूरा  करने महाकाल हूँ,  कालचक्र  अवरोधक  हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता, रक्षक पोषक हूँ ll


जन-हित में विष पीने वाली,  विषपाई मेरी क्षमता है l
जन पीढ़ा से विगलित होती, ऐसी करुणा है, ममता है ll
मैंने साधारण  वानर को , बजरंग  बना के खड़ा किया l
मेरी गीता ने अर्जुन को , अन्याय  मिटाने  अड़ा दिया ll

विकृतियों से लोहा लेने , सुसंस्कृति का सह्योजक हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll


मैंने संकल्प किया   है  फिर , भू  पर ही स्वर्ग बसाऊंगा l
इस ही  धरती के   मानव को,    शोधूंगा,  देव बनाऊंगा  ll
लाऊंगा मैं उज्वल भविष्य, इसका साक्षी यह दिनकर है l
मेरे  संग  सविता  के  साधक , गायत्री  वाला परिकर है ll

मैं  युग-दृष्टा, युग-सृष्टा ,  युगपरिवर्तन  उद्घोषक  हूँ l
मेरा क्या परिचय पूछ रहे , रचियता,रक्षक,पोषक हूँ ll

                                                                                    
                                                                                          - श्रीराम शर्मा आचार्य