शनिवार, 7 अप्रैल 2012

चीन 2012 के अंत तक कर सकता है भारत पर हमला

कुछ दिन पहले एक रक्षा मामलों  से जुडी पञिका ने चीनी सरकार की नीति और उसके मुखपञ का हवाला देते हुए आशंका जताई थी कि देश की रक्षा कमजोरियों को देखते हुए चीन 2014 तक भारत पर हमला करने का दुस्‍साहस कर सकता हैं लेकिन अभी हाल में ही भारतीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के सदस्‍य रहे अफसर करीम ने आशंकाओं को हवा देतें हुए दावा किया है कि आंतरिक अशांति के कारण चीन 2012 में ही भारत पर हमला कर सकता है। सरसरी तौर पर तो यह दूर की कौड़ी लगती है, लेकिन हमें यह पड़ताल कर लेनी जरू री है कि ऎसी आकस्मिकता से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं।

चीन के युद्ध इतिहास में झाकने से पता चल जाता है कि इस देश ही हमेशा नीति रही है कि शञु पर तेजी से  हमला करके उसे चौका दो, चीन विस्‍तावादी नीति पर विश्‍वास करता हैं, वह खुद को विश्‍व सर्वोच्‍च शक्ति साबित करने के लिए भारत के मामले में कोई भी दुस्‍साहसिक कदम उठा सकता है, अपनी अहमियत साबित को करने के लिए चीन ने अमेरिका जैसे देशों को जोरदार घुडकियां दी हैं, दक्षिण चीन सागर, अरूणाचल प्रदेश व कश्‍मीर के मामले में चीन आक्रमक रवैया अपनाए हुए है, जो बहुत कुछ साबित करता है, चीन अरूणाचल प्रदेश की प्रधानमंञी मनमोहन सिंह की याञा व कश्‍मीर के नागरिकों को नथ्‍थी वीजा देकर मामले को पेचीदा बनाता रहा है,

 युद्ध की संभावनाओं को देखतें हुए चीन भविष्‍य की सेना तैयार करने में लगा हुआ है, भारत सटी सीमाओं और पडोसी देशों में उसकी तैयारी जोरशोर से चल रही हैं, चीन का तिब्बत में सैन्य ढांचा भारत से ज्यादा विकसित है। इसलिए भारत-तिब्बत सीमा के किसी भी सैक्टर में थोड़ी सी तैयारी कर वह हमला कर सकता है। वहां सीमा क्षेत्र में सड़कें विकसित करना और सैन्य निर्माण पहाडि़यों पर चढ़ाई के कारण बहुत टेढ़ा काम है। हमने बरसों तक इस पहलू की उपेक्षा की। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू होने के बावजूद हम अब भी बहुत धीमी रफ्तार से काम कर रहे हैं। स्‍थानीय समाचार पञों में छपी खबरों के मुताबिक चीनी सीमा से सटे क्षेञों में  चल रहे काम में धांधली की बात भी सामने आ रही हैं ,

सड़क, रेल और संचार की सुरक्षित प्रणाली ऎसी महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनकी बदौलत मजबूत सामरिक योजनाएं बनाई जा सकती हैं। देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, उनसे निपटने की सामर्थ्‍य उनमें होनी चाहिए। चीन की सेना ने पिछले कुछ वर्षो में तिब्बत में ढांचागत विकास कार्य कर नई क्षमताएं स्थापित की हैं, उन्हें घ्यान में रखकर हमें भी समुचित कदम उठाने चाहिए थे। इनसे चिंता तो होनी चाहिए, साथ ही इससे हमें सीमा पर बुनियादी ढांचे की अपनी मूल जरू रतों पर फिर गौर करने का मौका भी मिला है।

सीमा क्षेत्रों के विकास पर हमने समुचित घ्यान नहीं दिया है। यह उपेक्षा अक्षम्य है। सीमा पर बुनियादी विकास के काम आजादी के बाद से ही बहुत कम हुए हैं। 1962 के युद्ध में चीन से हारने के बाद भी हमारी आंख नहीं खुलीं। हमारी सीमावर्ती सड़कें अविकसित हैं। पहाडि़यों में स्थित कई प्रादेशिक राजमार्गो की देखरेख भी ढंग से नहीं होती। हालांकि हाल में सीमावर्ती क्षेत्र के विकास में तेजी आई है।

हमारा इरादा अरूणाचल प्रदेश में दो पर्वतीय डिवीजन तैनात करने का है। पूर्वी सीमाओं और लद्दाख में सीमा के पास वायुसेना के अड्डे बनाए जा रहे हैं, जिससे विवादित सीमाओं पर रक्षा सामर्थ्‍य बढ़ सके। लेकिन अब भी लद्दाख हो या हिमाचल, चीन की तुलना में हमारा रक्षा से जुड़ा हुआ ढांचा बहुत ही कम है। दूसरी ओर पिछले कुछ दशकों में तिब्बत में कई उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। गोलमुंड-ल्हासा रेलवे लाइन इसका उदाहरण है, जिसका उद्घाटन एक जुलाई 2006 को हुआ था। सेना की नजर में गोलमुंड-ल्हासा रेल लाइन बन जाने से सेना की त्वरित तैनाती हो सकेगी और उन्हें रसद आदि भी आसानी से पहुंचाई जा सकेगी। इससे चीन को ढुलाई में आने वाली दिक्कतों से राहत मिलेगी। तिब्बत में नए आपूर्ति अड्डे और वायुसैनिक अड्डे बनने से यदि कोई बाधा न पड़े तो वहां तीस दिन के भीतर 12 डिवीजन सेना तैनात हो सकती है। तिब्बत के तेरलिंग्क में प्रक्षेपास्त्र दागने का एक अड्डा पहले ही बन चुका है। आम्दो में भी ऎसा ही अड्डा जल्दी ही बनकर तैयार हो जाएगा। इसके अलावा नागबुक के रिसुर व टेगो पहाडि़यों में सैनिक अड्डे और ल्हासा व कांग्यो में भूमिगत स्थल तैयार हो रहे हैं।

एशिया में  भारत के लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती चीन से है। चीन की सेनाएं भारतीय सेना की तुलना में अधिक सुसज्जित हैं और आधुनिकीकरण में कहीं आगे हैं। यदि यह अंतर आने वाले सालों में और बढ़ा तो चीन भारत से सीमा विवाद को निपटाने के लिए ताकत का इस्तेमाल कर सकता है। यदि युद्ध छिड़ा तो यह अरूणाचल प्रदेश की सीमा तक ही सीमित नहीं रहेगा। भारत के पास चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर करने को कई और मोर्चे खोलने के विकल्प रहेंगे, बशर्ते कि भारत जरू री बुनियादी ढांचा तैयार करे और सेना को आधुनिक उपकरण मुहैया करा दे। चीन के हमले की धार भोंथरी करने के लिए ऎसा करना जरू री है। हमले के प्रतिकार के लिए हिंद महासागर में भी हमें शक्तिशाली नौसेना तैनात करनी होगी, जिससे उसमें बढ़ती चीन की नौसैनिक शक्ति का मुकाबला किया जा सके।

इस समय चीन के पास 630 नौसैनिक लड़ाकू जहाज और लगभग सवा दो लाख नौसैनिक हैं। दूसरी ओर भारत की ताकत इसके पांचवें हिस्से जितनी ही है। चीन के पास 8 एटमी पनडुब्बी हैं, लेकिन विमानवाहक पोत नहीं है। भारत की योजना रू स से एक पनडुब्बी लीज पर लेने की है। विमानवाहक पोत गोर्शकोव का सौदा तय हो ही चुका है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण भी चल रहा है। फ्रांस के सहयोग से भारत फ्रांसीसी मूल की छह डीजल चलित स्कॉरपीन पनडुब्बियां भी बनाने में जुटा है। हमें जरू रत है ज्यादा लड़ाकू जहाजों की, ताकि अपनी रक्षा के लिए हम इलाके में प्रभुत्व कायम कर सकें।

तेजी से आधुनिकीकरण कर भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति बेहतर कर सकता है। भारत ने परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बियां हासिल करने का दीर्घावधि कार्यक्रम शुरू किया है। अपने देश में ही निर्मित ऎसी ही एक पनडुब्बी का जलावतरण पिछले महीने प्रधानमंत्री ने किया था। आईएनएस अरिहंत नाम से पिछली 26 जुलाई को जलावतरित यह पनडुब्बी व्यावसायिक जहाज के रास्तों को सुरक्षित कर सकेगी, साथ ही गहरे समुद्र में इसकी मारक क्षमता भी अधिक होगी।

दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों के साथ चीन सरकार ने अरब सागर में समुद्री डाकुओं के खिलाफ एकजुटता की पेशकश की है। भारत ने इस पेशकश को ठुकरा दिया है क्योंकि भारत हिंद महासागर में चीन को उपस्थिति की अनुमति देने का इच्छुक नहीं है। भारत हिंदमहासागर को अपने प्रभाव-क्षेत्र में मानता है जहां चीन का प्रवेश स्वागत योग्य नहीं है। भारत और चीन के बीच सतही सहयोग तो हो सकता है, लेकिन सीमा विवाद और पाकिस्तान से उसके सहयोग के दृष्टिगत उससे सतर्क रहना होगा। हमें जल, थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में अपनी सेना को बहुत संतुलित तरीके से आधुनिक बनाना होगा, जिससे किसी भी चीनी हमले का प्रतिकार किया जा सके। 

सरकार को इन मामलों में दिखानी होगी तीव्रता

  • - 1200 करोड़ रुपए की जरूरत माउंटेन स्ट्राइक फोर्स के गठन के लिए। 
  • - सिलिगुड़ी से उत्तरी सिक्किम तक उपयोगी सड़क की जरूरत।
  • - रणनीतिक रूप से अहम रेलवे लाइन विकसित करने में दिखानी होगी तेजी
  • - बीआरओ को आधुनिक उपकरण और अधिक अधिकार की जरूरत।
  • - आईटीबीपी सेना के नियंत्रण में हो, गृह मंत्रालय पीछे हटे।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

चीन कर सकता है 2014 तक भारत पर हमला


भारतीय रक्षा विशेषज्ञों की यह आशंका सच भी साबित हो सकती है। चीन ने इसके संकेत दिए हैं। एक बड़ी ताकत बनते भारत और अमेरिका के साथ उसकी नजदीकियां चीन को परेशान कर रही हैं। यही वजह है कि चीन भारत पर आने वाले तीन सालों में सीधा हमला कर सकता है।
भारतीय सेना और रक्षा से जुड़े विशेषज्ञ इस बात की आशंका जताते रहे हैं कि 2014 में चीन भारत पर हमला कर सकता है। भारतीय जानकारों की आशंका की पुष्टि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की पत्रिका 'कीशी' के ताज़ा संस्करण में छपे लेख ने कर दी है। लेख में भारत के साथ सीमा विवाद को निपटाने और शांति स्थापित करने के लिए जंग की वकालत की गई है।
भारतीय सेना और रक्षा पर आधारित पत्रिका 'इंडियन मिलिट्री रिव्यू' (आईएमआर) में छपे एक लेख में भारतीय सेना के मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी बख्शी ने दावा किया है कि भारत की बढ़ती आर्थिक हैसियत और अमेरिका से नजदीकी इस जंग की वजह बनेगा। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक चीन के इस संभावित हमले में अमेरिका दखल नहीं देगा क्योंकि इराक में लड़ी गई जंग में अमेरिका को काफी नुकसान पहुंचा था और अफगानिस्तान में भी उसकी फौज को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वह एक और जंग में कूदने की हिम्मत नहीं दिखाएगा। मतलब साफ है कि अब भारत और चीन के बीच सीधी जंग की आशंका बढ़ती जा रही है। जीडी बख्शी का कहना है कि चीन से संभावित युद्ध में ऑपरेशन का केंद्र जम्मू-कश्मीर होगा, जहां पूर्व और पश्चिमी छोर पर पाकिस्तान के साथ मिलकर हमला किया जा सकता है। 
इंडियन मिलिट्री रिव्यू के संपादक मेजर जनरल (रिटायर्ड) आर.के. अरोड़ा का कहना है कि चीन की सेना पीएलए तिब्बत में अपना ढांचा विकसित कर रहा है, जो भारत के लिए चिंता की वजह है। अरोड़ा का कहना है, 'लगातार बढ़ते रेल नेटवर्क, सड़कों का जाल, तेल पाइपलाइन और ब्रह्मपुत्र (चीन में सांगपो कहते हैं) नदी के दक्षिण में रणनीतिक तौर पर एक बड़े बेस की स्थापना करके चीन बहुत कम समय में ही आक्रामक अभियान छेड़ सकता है। ऐसी तैयारी का सामना करना हमारा लिए बहुत मुश्किल होगा।'      
चीन के विशेषज्ञ आरके अरोड़ा का कहना है कि 1962 को दोहराना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि हमारी तैयारी पहले से बहुत बेहतर है। लेकिन अगर चीन और भारत के बीच हथियारों का फर्क बढ़ेगा तो हमारी सेना को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

जंग ही रास्‍ता
'कीशी' ने अपने ताज़ा लेख में शांति स्थापित करने और सीमा विवाद सुलझाने के लिए जंग को ही अंतिम रास्ता बताया है। इसके मुताबिक आधुनिक चीन के इतिहास में (1949 से) कभी भी घुटने टेकने से शांति नहीं आई है, यह सिर्फ जंग के जरिए आई है। पत्रिका के मुताबिक राष्ट्रीय हितों की हिफाजत सिर्फ बातचीत से नहीं, बल्कि लड़ाई से होती है। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच लंबे से करीब साढ़े तीन हजार किलोमीटर की लंबाई में फैली सीमा को लेकर विवाद होता रहा है।
कीशी के लेख में यह भी लिखा है कि अमेरिका भारत समेत उसके कई पडो़सी देशों के साथ मिलकर उसे घेर रहा है। इसमें अमेरिका पर 'एंटी चाइना एलायंस' बनाने का आरोप लगाया गया है। चीन की विदेश नीति पर बेबाक राय देने के लिए जानी जाने वाली 'कीशी' ने चीन की आर्थिक हैसियत के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सात कदम उठाने की रणनीति का सुझाव दिया है ताकि दक्षिण एशिया में अमेरिका के बढ़ते असर को कम किया जा सके। इसमें साफ कहा गया है कि  अमेरिका से मिल रही चुनौती के जवाब में चीन को तैयार होना चाहिए।
कम्युनिस्ट पत्रिका में कहा गया है कि अमेरिका चीन के पड़ोसी देशों-जापान, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, कोरिया और भारत के साथ मिलकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल चुका है। कीशी पत्रिका के मुताबिक इन देशों का या तो चीन के साथ युद्ध हो चुका है या हितों को लेकर टकराव रहा है।

खतरनाक इरादे
भारतीय रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक चीन द्वारा उठाए जा रहे कुछ कदमों से उसके खतरनाक इरादे जाहिर हो जाते हैं। इनमें तिब्बत में रणनीतिक रूप से अहम विकास के काम में तेजी, चीन की आने-जाने की क्षमता में बढ़ोतरी, कराकोरम हाई वे का चौड़ा किया जाना, गिलगिट में चीनी सैनिकों की तैनाती और गिलगिट की पहाड़ियों में गुफाएं और सुरंगों का निर्माण ताकि वहां डोंग फेंग 21 डी लड़ाकू विमान की तैनाती हो सके। तिब्बत में लड़ने के लिए सैन्य अभ्यास में तेजी जैसे कदम शामिल हैं।

थंडर ड्रैगन 2014
भारतीय रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक चीन 'थंडर ड्रैगन 2014' नाम के ऑपरेशन की योजना बना रहा है। इसमें पाकिस्तान के साथ मिलकर वह भारत पर दोतरफा हमला करेगा। जानकारों के मुताबिक इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान की सेना 'पीपल्स लिबरेशन आर्मी' (पीएलए) तिब्बत के लोखा इलाके में आक्रामक सैन्य अभ्यास करेगी ताकि भारतीयों को धोखे में रखा जाए। इसके साथ ही मुंबई पर २००८ में हुए हमले की तर्ज पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों द्वारा हमला किया जाएगा। इस ऑपरेशन के ब्लू प्रिंट के मुताबिक आम भारतीयों में उपजे गुस्से की वजह से भारत पाक के कब्जे वाले कश्मीर में सेना के जरिए हमला करेगी, जिसके बाद पाकिस्तान भारत के प्रमुख शहरों पर जवाबी हमले करेगा। जम्मू-कश्मीर में स्थानीय स्तर पर सैन्य हमलों के बीच हालात गंभीर होते ही सूबे के मैदानी इलाकों में सैनिकों को उतारा जाएगा। उधर, पीएलए तिब्बत में अपने रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को सक्रिय कर देगी।  ऑपरेशन 'थंडर ड्रैगन 2014' के मुताबिक पाकिस्तान के खिलाफ भारत के हमले के तीन हफ्तों के भीतर चीन की सेना लद्दाख में अपना अभियान शुरू कर देगी।

ज़्यादा ताकतवर है चीन 
चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी फौज है। इसके बाद भारत का नंबर आता है। चीन ने हाल ही में अमेरिका की टक्कर के आधुनिक हथियार और लड़ाकू विमान विकसित करने के दावे किए हैं। परमाणु हथियारों की तुलना में भी वह भारत से कहीं आगे है। एक अनुमान के मुताबिक चीन के पास करीब १९० परमाणु बम हैं।

तेजी से हथियार जुटा रहा है पाकिस्तान
अमेरिका के मशहूर अखबार 'वॉशिंगटन पोस्ट' में पिछले दिनों आई एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान ने पिछले कुछ सालों में परमाणु हथियारों का जखीरा दोगुना कर लिया है अब इनकी संख्या 100 पार कर चुकी है। पाकिस्तान ने यूरेनियम और प्लूटोनियम उत्पादन में खासी तेजी लाते हुए नए परमाणु हथियार विकसित किए हैं। 'वॉशिंगटन पोस्ट' ने गैर सरकारी जानकारों के हवाले से यह रिपोर्ट प्रकाशित की है।  
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान के प्रमुख डेविड अलब्राइट के मुताबिक पाकिस्तान हथियारों के लिए यूरेनियम दो स्थानों पर तैयार कर रहा है। इस्लामाबाद ने प्लूटोनियम का उत्पादन भी काफी बढ़ा दिया है, जिसकी मदद से वह हल्के लेकिन उतनी ही मारक क्षमता के परमाणु बनाने में सक्षम है। पाकिस्तान ने हाल ही में नई मिसाइल, शाहीन-2 विकसित की है, जिसकी मारक क्षमता 1500 मील है। इसे वह जल्दी ही तैनात करने वाला है। वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार कई सालों तक भारत और पाकिस्तान परमाणु क्षमता में लगभग बराबर थे, लेकिन अब पाकिस्तान निश्चित ही आगे निकल गया है। बताया जाता है कि भारत के पास करीब 50 से 70 परमाणु हथियार हैं। भारत की नीति परमाणु ताकत बढ़ाने के बजाय परमाणु ऊर्जा का इस्‍तेमाल जनता के हितों के लिए करने की है।

1962
की जंग
चीन-भारत के बीच 1962 में हुई जंग के बाद चीन ने कश्मीर का हिस्सा रहे अक्साई चिन के इलाके पर कब्जा कर लिया। इस लड़ाई से चीन और पाकिस्तान नजदीक आए। दोस्ती को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान ने गिलगिट बालटिस्तान के 2200 वर्ग मील के  इलाके को चीन को सौंप दिया था।   
 
आशीष कुमार