कुछ दिन पहले एक रक्षा मामलों से जुडी पञिका ने चीनी सरकार की नीति और उसके मुखपञ का हवाला देते हुए आशंका जताई थी कि देश की रक्षा कमजोरियों को देखते हुए चीन 2014 तक भारत पर हमला करने का दुस्साहस कर सकता हैं लेकिन अभी हाल में ही भारतीय सुरक्षा सलाहकार परिषद के सदस्य रहे अफसर करीम ने आशंकाओं को हवा देतें हुए दावा किया है कि आंतरिक अशांति के कारण चीन 2012 में ही भारत पर हमला कर सकता है। सरसरी तौर पर तो यह दूर की कौड़ी लगती है, लेकिन हमें यह पड़ताल कर लेनी जरू री है कि ऎसी आकस्मिकता से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं।
चीन के युद्ध इतिहास में झाकने से पता चल जाता है कि इस देश ही हमेशा नीति रही है कि शञु पर तेजी से हमला करके उसे चौका दो, चीन विस्तावादी नीति पर विश्वास करता हैं, वह खुद को विश्व सर्वोच्च शक्ति साबित करने के लिए भारत के मामले में कोई भी दुस्साहसिक कदम उठा सकता है, अपनी अहमियत साबित को करने के लिए चीन ने अमेरिका जैसे देशों को जोरदार घुडकियां दी हैं, दक्षिण चीन सागर, अरूणाचल प्रदेश व कश्मीर के मामले में चीन आक्रमक रवैया अपनाए हुए है, जो बहुत कुछ साबित करता है, चीन अरूणाचल प्रदेश की प्रधानमंञी मनमोहन सिंह की याञा व कश्मीर के नागरिकों को नथ्थी वीजा देकर मामले को पेचीदा बनाता रहा है,
युद्ध की संभावनाओं को देखतें हुए चीन भविष्य की सेना तैयार करने में लगा हुआ है, भारत सटी सीमाओं और पडोसी देशों में उसकी तैयारी जोरशोर से चल रही हैं, चीन का तिब्बत में सैन्य ढांचा भारत से ज्यादा विकसित है। इसलिए भारत-तिब्बत सीमा के किसी भी सैक्टर में थोड़ी सी तैयारी कर वह हमला कर सकता है। वहां सीमा क्षेत्र में सड़कें विकसित करना और सैन्य निर्माण पहाडि़यों पर चढ़ाई के कारण बहुत टेढ़ा काम है। हमने बरसों तक इस पहलू की उपेक्षा की। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा महत्वपूर्ण पहलू होने के बावजूद हम अब भी बहुत धीमी रफ्तार से काम कर रहे हैं। स्थानीय समाचार पञों में छपी खबरों के मुताबिक चीनी सीमा से सटे क्षेञों में चल रहे काम में धांधली की बात भी सामने आ रही हैं ,
सड़क, रेल और संचार की सुरक्षित प्रणाली ऎसी महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनकी बदौलत मजबूत सामरिक योजनाएं बनाई जा सकती हैं। देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, उनसे निपटने की सामर्थ्य उनमें होनी चाहिए। चीन की सेना ने पिछले कुछ वर्षो में तिब्बत में ढांचागत विकास कार्य कर नई क्षमताएं स्थापित की हैं, उन्हें घ्यान में रखकर हमें भी समुचित कदम उठाने चाहिए थे। इनसे चिंता तो होनी चाहिए, साथ ही इससे हमें सीमा पर बुनियादी ढांचे की अपनी मूल जरू रतों पर फिर गौर करने का मौका भी मिला है।
सीमा क्षेत्रों के विकास पर हमने समुचित घ्यान नहीं दिया है। यह उपेक्षा अक्षम्य है। सीमा पर बुनियादी विकास के काम आजादी के बाद से ही बहुत कम हुए हैं। 1962 के युद्ध में चीन से हारने के बाद भी हमारी आंख नहीं खुलीं। हमारी सीमावर्ती सड़कें अविकसित हैं। पहाडि़यों में स्थित कई प्रादेशिक राजमार्गो की देखरेख भी ढंग से नहीं होती। हालांकि हाल में सीमावर्ती क्षेत्र के विकास में तेजी आई है।
हमारा इरादा अरूणाचल प्रदेश में दो पर्वतीय डिवीजन तैनात करने का है। पूर्वी सीमाओं और लद्दाख में सीमा के पास वायुसेना के अड्डे बनाए जा रहे हैं, जिससे विवादित सीमाओं पर रक्षा सामर्थ्य बढ़ सके। लेकिन अब भी लद्दाख हो या हिमाचल, चीन की तुलना में हमारा रक्षा से जुड़ा हुआ ढांचा बहुत ही कम है। दूसरी ओर पिछले कुछ दशकों में तिब्बत में कई उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। गोलमुंड-ल्हासा रेलवे लाइन इसका उदाहरण है, जिसका उद्घाटन एक जुलाई 2006 को हुआ था। सेना की नजर में गोलमुंड-ल्हासा रेल लाइन बन जाने से सेना की त्वरित तैनाती हो सकेगी और उन्हें रसद आदि भी आसानी से पहुंचाई जा सकेगी। इससे चीन को ढुलाई में आने वाली दिक्कतों से राहत मिलेगी। तिब्बत में नए आपूर्ति अड्डे और वायुसैनिक अड्डे बनने से यदि कोई बाधा न पड़े तो वहां तीस दिन के भीतर 12 डिवीजन सेना तैनात हो सकती है। तिब्बत के तेरलिंग्क में प्रक्षेपास्त्र दागने का एक अड्डा पहले ही बन चुका है। आम्दो में भी ऎसा ही अड्डा जल्दी ही बनकर तैयार हो जाएगा। इसके अलावा नागबुक के रिसुर व टेगो पहाडि़यों में सैनिक अड्डे और ल्हासा व कांग्यो में भूमिगत स्थल तैयार हो रहे हैं।
एशिया में भारत के लिए सबसे बड़ी सामरिक चुनौती चीन से है। चीन की सेनाएं भारतीय सेना की तुलना में अधिक सुसज्जित हैं और आधुनिकीकरण में कहीं आगे हैं। यदि यह अंतर आने वाले सालों में और बढ़ा तो चीन भारत से सीमा विवाद को निपटाने के लिए ताकत का इस्तेमाल कर सकता है। यदि युद्ध छिड़ा तो यह अरूणाचल प्रदेश की सीमा तक ही सीमित नहीं रहेगा। भारत के पास चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर करने को कई और मोर्चे खोलने के विकल्प रहेंगे, बशर्ते कि भारत जरू री बुनियादी ढांचा तैयार करे और सेना को आधुनिक उपकरण मुहैया करा दे। चीन के हमले की धार भोंथरी करने के लिए ऎसा करना जरू री है। हमले के प्रतिकार के लिए हिंद महासागर में भी हमें शक्तिशाली नौसेना तैनात करनी होगी, जिससे उसमें बढ़ती चीन की नौसैनिक शक्ति का मुकाबला किया जा सके।
इस समय चीन के पास 630 नौसैनिक लड़ाकू जहाज और लगभग सवा दो लाख नौसैनिक हैं। दूसरी ओर भारत की ताकत इसके पांचवें हिस्से जितनी ही है। चीन के पास 8 एटमी पनडुब्बी हैं, लेकिन विमानवाहक पोत नहीं है। भारत की योजना रू स से एक पनडुब्बी लीज पर लेने की है। विमानवाहक पोत गोर्शकोव का सौदा तय हो ही चुका है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण भी चल रहा है। फ्रांस के सहयोग से भारत फ्रांसीसी मूल की छह डीजल चलित स्कॉरपीन पनडुब्बियां भी बनाने में जुटा है। हमें जरू रत है ज्यादा लड़ाकू जहाजों की, ताकि अपनी रक्षा के लिए हम इलाके में प्रभुत्व कायम कर सकें।
तेजी से आधुनिकीकरण कर भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति बेहतर कर सकता है। भारत ने परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बियां हासिल करने का दीर्घावधि कार्यक्रम शुरू किया है। अपने देश में ही निर्मित ऎसी ही एक पनडुब्बी का जलावतरण पिछले महीने प्रधानमंत्री ने किया था। आईएनएस अरिहंत नाम से पिछली 26 जुलाई को जलावतरित यह पनडुब्बी व्यावसायिक जहाज के रास्तों को सुरक्षित कर सकेगी, साथ ही गहरे समुद्र में इसकी मारक क्षमता भी अधिक होगी।
दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों के साथ चीन सरकार ने अरब सागर में समुद्री डाकुओं के खिलाफ एकजुटता की पेशकश की है। भारत ने इस पेशकश को ठुकरा दिया है क्योंकि भारत हिंद महासागर में चीन को उपस्थिति की अनुमति देने का इच्छुक नहीं है। भारत हिंदमहासागर को अपने प्रभाव-क्षेत्र में मानता है जहां चीन का प्रवेश स्वागत योग्य नहीं है। भारत और चीन के बीच सतही सहयोग तो हो सकता है, लेकिन सीमा विवाद और पाकिस्तान से उसके सहयोग के दृष्टिगत उससे सतर्क रहना होगा। हमें जल, थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में अपनी सेना को बहुत संतुलित तरीके से आधुनिक बनाना होगा, जिससे किसी भी चीनी हमले का प्रतिकार किया जा सके।
इस समय चीन के पास 630 नौसैनिक लड़ाकू जहाज और लगभग सवा दो लाख नौसैनिक हैं। दूसरी ओर भारत की ताकत इसके पांचवें हिस्से जितनी ही है। चीन के पास 8 एटमी पनडुब्बी हैं, लेकिन विमानवाहक पोत नहीं है। भारत की योजना रू स से एक पनडुब्बी लीज पर लेने की है। विमानवाहक पोत गोर्शकोव का सौदा तय हो ही चुका है। स्वदेशी विमानवाहक पोत का निर्माण भी चल रहा है। फ्रांस के सहयोग से भारत फ्रांसीसी मूल की छह डीजल चलित स्कॉरपीन पनडुब्बियां भी बनाने में जुटा है। हमें जरू रत है ज्यादा लड़ाकू जहाजों की, ताकि अपनी रक्षा के लिए हम इलाके में प्रभुत्व कायम कर सकें।
तेजी से आधुनिकीकरण कर भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी स्थिति बेहतर कर सकता है। भारत ने परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बियां हासिल करने का दीर्घावधि कार्यक्रम शुरू किया है। अपने देश में ही निर्मित ऎसी ही एक पनडुब्बी का जलावतरण पिछले महीने प्रधानमंत्री ने किया था। आईएनएस अरिहंत नाम से पिछली 26 जुलाई को जलावतरित यह पनडुब्बी व्यावसायिक जहाज के रास्तों को सुरक्षित कर सकेगी, साथ ही गहरे समुद्र में इसकी मारक क्षमता भी अधिक होगी।
दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों के साथ चीन सरकार ने अरब सागर में समुद्री डाकुओं के खिलाफ एकजुटता की पेशकश की है। भारत ने इस पेशकश को ठुकरा दिया है क्योंकि भारत हिंद महासागर में चीन को उपस्थिति की अनुमति देने का इच्छुक नहीं है। भारत हिंदमहासागर को अपने प्रभाव-क्षेत्र में मानता है जहां चीन का प्रवेश स्वागत योग्य नहीं है। भारत और चीन के बीच सतही सहयोग तो हो सकता है, लेकिन सीमा विवाद और पाकिस्तान से उसके सहयोग के दृष्टिगत उससे सतर्क रहना होगा। हमें जल, थल और नभ तीनों ही क्षेत्रों में अपनी सेना को बहुत संतुलित तरीके से आधुनिक बनाना होगा, जिससे किसी भी चीनी हमले का प्रतिकार किया जा सके।
सरकार को इन मामलों में दिखानी होगी तीव्रता
- - 1200 करोड़ रुपए की जरूरत माउंटेन स्ट्राइक फोर्स के गठन के लिए।
- - सिलिगुड़ी से उत्तरी सिक्किम तक उपयोगी सड़क की जरूरत।
- - रणनीतिक रूप से अहम रेलवे लाइन विकसित करने में दिखानी होगी तेजी
- - बीआरओ को आधुनिक उपकरण और अधिक अधिकार की जरूरत।
- - आईटीबीपी सेना के नियंत्रण में हो, गृह मंत्रालय पीछे हटे।