आज
के दौर में कार्लाइल की यह पंक्तियां एकदम सटीक लगती हैं “अगर समाचार पत्र हाथ में हों तो महापुरुषों का
उत्पादन बाएं हाथ का खेल है। महापुरुष करंसी नोट की तरह होते हैं। करंसी नोटों की तरह वे स्वर्ण के प्रतीक
हैं। उनका एक मूल्य होता है। हमें देखना यह
है कि वे जाली नोट तो नहीं हैं?” कार्लाइल
का कहना था कि इतिहास में ऐसे ढेर सारे महापुरुष हुए हैं, जो झूठे और स्वार्थी थे, लेकिन हम सब जानते हैं उन्हें अखबारों
और प्रचारकों ने जनता
के सामने महापुरुष बना दिया। वे किसी समाचार पत्र या मीडिया द्वारा निर्मित किए गए। अखबारों की
मिलीभगत के कारण यह सदा सवाल बना रहेगा कि
वे कितने खरे सिक्के थे और कितनी खरी-खरी बातें कहते थे। लेकिन अब सवाल समीक्षा का है, क्या
हमें समाचार पत्रों या मीडिया से जुड़े लोगों की भी तुलना करंसी नोटों की उत्पादन संस्था
से नहीं करनी चाहिए? क्या
यह नहीं देखना
चाहिए कि कहीं ये जाली नोट तो नहीं छाप रहे हैं? अभिव्यक्ति
की आजादी की
आड़ में कहीं ये ‘हीरो’ को ‘विलेन’ और ‘विलेन’ को ‘हीरो’ तो
नहीं बना रहे
हैं?
मंगलवार, 6 जनवरी 2015
मंगलवार, 23 दिसंबर 2014
राष्ट्र और धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं
भारत मां |
बाकी की
हकीकत के बारे में सभी जानते हैं। देश ने
लंबी मुस्लिम गुलामी का दौर देखा। उस दौर
में हिंदुत्व और उसके आदर्श रसातल में पहुंच गए थे। उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी
को दौर आया, जिसमें बचे-कुचे
संस्कृति के अंश भी गायब होने की कगार पर पहुंच गए थे।
.
तमाम महान लोगों
की कुर्बानी के बाद 1947 की आजादी मिली,लेकिन केवल राजनीतिक। संस्कृति और विवेक की
आजादी अभी बाकी है। उधार ली हुई तार्किकता को विवेक मान लिया गया है। विवेक में
मौलिकता नहीं है, या कहें विवेक
अभी गुलाम है। नकल को ही संस्कृति मान लिया गया है।
.
योगी अरविंद ने
कहा था - "धर्म और राष्ट्र एक साथ चलते हैं। यदि धर्म का पतन होता है तो
राष्ट्र का पतन होने लगता है। धर्म के सिकुड़ने के साथ राष्ट्र की सीमाएं सिकुड़ने
लगती हैं। साथ ही, उन्होंने कहा था
- इक्कीसवीं सदी में भारत फिर खड़ा होगा, अपनी नैतिकता, अपने ज्ञान,
अपने अध्यात्म की शक्ति के बल पर। भारत ज्ञान,
विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म में नई बुलंदियों को छुएगा। दुनिया उसकी
सर्वोच्चता स्वीकार करेगी"।
.
स्वामी विवेकानंद
ने अपने संबोधनों और पुस्तकों मे जिक्र किया था - "मैं स्पष्ट तौर पर देखता
हूं, भारत विश्वगुरू बन रहा है,
वह पूरे विश्व का वह अपने ज्ञान के जरिए मार्गदर्शन
देगा।"
.
हम भारतवासियों
को यही उम्मीद है कि श्रीअरविंद और विवेकानंद सच साबित हों, इस संसद के होहल्ले और तथाकथित सेक्युलरवादियों की चिंता के
बीच
रविवार, 21 दिसंबर 2014
दुनिया के प्रमुख आतंकवादी संगठन
अल कायदा के लड़ाके |
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि धर्म के नाम पर घोर अधर्म करने वाले कुछ प्रमुख आतंकी संगठनों के नामों का मतलब क्या है। इन नामों और इनके मतलब से हम जान सकते हैं कि ये आतंकी संगठन कितने शातिर दिमाग हैं जो खुद को सही ठहराने के लिए धर्म को कवच के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
तालिबान
यह पश्तो भाषा का शब्द है जिसका मतलब छात्र यानी शिक्षार्थी से होता है। लेकिन यह ऐसा छात्र है जो अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले ही अपने इलाकों की गलियों-कूचों में खून की नालियां बहाकर दुनिया को हिंसा की शिक्षा देने चल पड़ा है। यह आतंकी संगठन पूरे अफगानिस्तान में फैल चुका है और दिसंबर 1996 से दिसंबर 2001 तक वहां सरकार भी बना चुका है। इस संगठन का गठन 1994 में मोहम्मद उमर ने किया था। आज तालिबान न केवल अफगानिस्तान में कहर बरपा रहा है, बल्कि इसका विस्तार पाकिस्तान तक हो चुका है। वहां तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान नाम से आतंकी संगठन अस्तित्व में आ चुका है। इसके खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने अभियान चलाया हुआ है। इससे क्रुद्ध होकर इस संगठन ने 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 मासूम बच्चों समेत 141 लोगों का कत्लेआम कर डाला।
अल कायदा
इसका शाब्दिक अर्थ है- द बेस। अल का अर्थ “द” है और कायदा का “बेस” यानी आधार। यह विश्वव्यापी आतंकवादी संगठन है, जिसका गठन ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्ला आजम ने 1988-89 में कई आतंकवादियों के साथ मिलकर किया था। उसके बाद से यह संगठन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भयंकर तबाही मचा चुका है। अल कायदा शब्द का अर्थ “मिलिट्री बेस” से भी लगाया जाता है। 2001 में खुद ओसामा बिन लादेन ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए उनके संगठन ने अनेक प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना की थी। इन ट्रेनिंग कैंपों को वे लोग अल कायदा (मिलिट्री बेस) कहकर संबोधित करते थे। बस उसी के बाद से आतंकवादी संगठन को भी अल कायदा कहा जाने लगा। हालांकि ब्रिटेन के पूर्व राजनेता राबिन कुक ने लिखा है कि अल कायदा शब्द का अनुवाद “द डाटाबेस” करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब उन कंप्यूटर फाइलों से था जिनमें उन हजारों मुजाहीदीन आतंकवादियों के ब्योरे थे, जिन्हें रूस को हराने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद से भर्ती और प्रशिक्षित किया गया था।
आईएसआईएस
इसका शाब्दिक मतलब है इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया। इराक और सीरिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य से इस आतंकी संगठन का गठन किया गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आईसिस (Isis) मिस्र में बच्चे का नाम होता है। वहां इसे एक देवी से जोड़कर देखा जाता है और सभी देवियों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस तरह आईएसआईएस से, अंग्रेजी में मिलाकर बोलने से आईसिस की भी ध्वनि निकलती है, जिससे लगता है कि यह कोई पवित्र किस्म का संगठन है। आज दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बन चुके आईएसआईएस की स्थापना इराकी नागरिक अबु बकर अल बगदादी ने अलकायदा से अलग होकर की थी।
हिज्ब उल मुजाहीदीन
इसका शाब्दिक अर्थ है- पवित्र योद्धाओं का दल, मगर संगठन के किसी भी काम का पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है। इसके उलट इस संगठन से जुड़े लोगों के हाथ सैकड़ों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं। 1985 में इस संगठन की स्थापना कश्मीरी अलगाववादी अहसान डार ने की थी। इस समय इस समूह का सरगना सैयद सलाहुद्दीन है, जो पाकिस्तान में छिपा हुआ है और वहीं से आतंकवादी गतिविधियां संचालित करता है।
जैश ए मोहम्मद
इस नाम का शाब्दिक मतलब है- मोहम्मद की सेना, मगर दुर्भाग्य से मोहम्मद की दी शिक्षाओं से इस संगठन से जुड़े लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह भी कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इसे 2002 में पाकिस्तान में ऊपरी तौर पर तो प्रतिबंधित करने की घोषणा की गई थी मगर अंदरूनी तरीके से पाकिस्तान ने इसकी मदद करना जारी रखा हुआ है। इस संगठन को भारत के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन भी आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। इसका गठन 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने किया था। इसे हरकत उल मुजाहीदीन नाम के आतंकवादी संगठन से अलग होकर बनाया गया था। यह वही मसूद अजहर है जिसे भारत ने 1999 में अपहृत विमान यात्रियों की रिहाई के बदले में छोड़ा था। 2001 में भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेदार भी इसी संगठन को माना जाता है। 2002 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने संगठन पर प्रतिबंध लगाया तो इसने अपना नाम बदलकर खुद्दाम उल इस्लाम रख लिया, जिसका मतलब है इस्लाम का सेवक।
लश्कर ए तैइबा
इसका शाब्दिक मतलब है खुदा की सेना, लेकिन वास्तव में यह जालिमों की सेना ही है जो केवल खून बहाना ही जानती है। इसका मतलब शुद्धता यानी पवित्रता की सेना भी निकाला जाता है, मगर संगठन के नाम और काम में जमीन-आसमान का अंतर है। यह दक्षिण एशिया का बेहद संगठित आतंकी समूह है जो अपनी गतिविधियां पाकिस्तान से संचालित करता है। इसका गठन 1990 में हाफिज सईद, अब्दुल्ला आजम और जफर इकबाल नाम के शातिर दिमाग लोगों ने किया था। इस आतंकी संगठन के अनेक प्रशिक्षण शिविर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चलते हैं। 2008 के मुंबई हमलों के लिए इसी संगठन ने अंजाम दिया था। इस संगठन पर भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, रूस और आस्ट्रेलिया प्रतिबंध लगा चुके हैं। औपचारिक रूप से पाकिस्तान भी इसे प्रतिबंधित कर चुका है पर भारत और दुनिया के अनेक देश मानते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इस आतंकी संगठन को अपना सहयोग और समर्थन जारी रखे हुए है।
बोको हराम
यह नाइजीरिया का आतंकवादी संगठन है। बोको हराम का शाब्दिक अर्थ है- पश्चिमी शिक्षा हराम है। बोको हराम का मानना है कि पश्चिमी शिक्षा बंद कर सिर्फ और सिर्फ इस्लामी शिक्षा दी जाए। इस संगठन के अनुसार लड़कियों को पढ़ने का बिल्कुल अधिकार नहीं है, इसलिए उन्हें स्कूलों में भेजना अपराध है। इस नजरिये को लोगों पर लादने के लिए बोको हराम के आतंकी लोगों की हत्या करते हैं, लड़कियों का अपहरण करते हैं और बलात्कार करते हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं पर हमला करते हैं। वे गिरजाघरों और अन्य जगहों पर विस्फोट भी करते हैं जिनमें हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। बोको हराम का गठन 2002 में धर्मगुरू मोहम्मद यूसुफ ने किया था। शुरुआत में इस संगठन ने मस्जिद और धार्मिक स्कूल बनवाए, लेकिन धीरे–धीरे यह राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ और फिर आतंकवादी संगठन के रूप में बदल गया। बोको हराम कहता है कि अंग्रेजी शिक्षा हराम है, मगर अब नाइजीरिया में अनेक लोग कहने लगे हैं कि यह संगठन ही हराम है।
हमास
हमास शब्द अरबी भाषा के हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया का संक्षेप रूप है। इसका मतलब है इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन। अरबी में हमास एक अलग शब्द भी है, जिसका मतलब “उत्साह” होता है। हमास का गठन 1987 में मिस्र और फिलस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में पहले आत्मघाती हमले के बाद से 2005 तक हमास ने इसरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए। 2005 में हमास ने हिंसा से खुद को अलग किया मगर 2006 में फिर से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले शुरू कर दिए। तब से रह-रहकर हमास और इसरायली सैनिकों के बीच संघर्ष होता है जिसमें हर बार सैकडों लोग मारे जाते हैं। ज्यादा नुकसान फिलस्तीनी लोगों का ही होता है। हमास का मतलब उत्साह है, मगर हमास से जुड़े लोग फिलस्तीन को आगे बढ़ाने में कोई उत्साह नहीं दिखाते। इसके बजाय वे इसरायल से लड़ने में ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।
अल शबाब
यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- द यूथ यानी युवा। दुर्भाग्य से ये युवा भी युवाओं जैसा कोई काम नहीं कर रहे हैं। ये युवा अपने कंधों पर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उठाने के बजाय बंदूकें-राइफल हाथ में लेकर लोगों का खून बहा रहे हैं। अल शबाब सोमालिया, केन्या आदि देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इस संगठन ने ही पिछले दिनों केन्या के एक मॉल में घुसकर बड़ी निर्ममता से 60 लोगों की हत्या कर दी थी। यहां बताते चलें कि बहरीन में अल शबाब नाम से एक फुटबाल क्लब भी है। कई देशों में अल शबाब नाम से सामाजिक संस्थाएं भी हैं।
आतंकवादी संगठनों की चाल भी यही है कि अपने संगठन का ऐसा नाम रखा जाए जो समाज में या तो पहले से प्रतिष्ठित हों या जिसे सुनकर किसी अच्छे उद्देश्य का अहसास होता हो। इससे उन्हें युवाओं का ब्रेन वाश करने में मदद मिलती है और वे धर्म व जिहाद के नाम पर अपने संगठन की ताकत बढ़ाने में भी सफल हो जाते हैं।
शनिवार, 20 दिसंबर 2014
भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले
भारत में हाल में हुए कुछ बड़े आतंकवादी हमले
मुम्बई, १३ जून २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.
फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे। एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया।
मुंबई, 26 नवम्बर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए। हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई.
असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।
मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।
मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।
नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।
नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।
अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।
बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।
जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।
रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।
अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।
हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल।
हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।
फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 66 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।
मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 30 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।
मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।
वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 20 लोगों की मौत।
अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 62 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।
मुम्बई, १३ जून २०११ : तीन स्थानों पर बम विस्फोट. बीस से अधिक मृत तथा सैकड़ों घायल.
फरवरी, 2010: महाराष्ट्र के पुणे शहर की मशहूर जर्मन बेकरी को आतंकवादियों ने निशाना बनाया. इसमें 16 लोग मारे गए, जिनमें से काफी विदेशी भी थे। एक बार फिर इंडियन मुजाहिदीन को जिम्मेदार ठहराया गया।
मुंबई, 26 नवम्बर 2008 : भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आतंकवादियों ने घुसकर तीन दिनों तक दहशत फैलाई. पांचसितारा होटलों और रेल्वे स्टेशन पर हुए बम धमाकों में 166 लोग मारे गए। भारत के ब्लैक कैट कमांडो की कार्रवाई में पाकिस्तानी नागरिक आमिर अजमल कसाब को छोड़ कर सारे आतंकवादी मारे गए। हमले की साजिश पाकिस्तान में रचे जाने की पुष्टि हुई.
असम, 30 अक्टूबर 2008 : असम में 18 आतंकवादी हमलों में कम से कम 77 लोग मारे गए और सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए।
इंफाल, 21 अक्टूबर 2008 : मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर के नजदीक शक्तिशाली विस्फोट में 17 लोग मारे गए।
मालेगाँव (महाराष्ट्र), 29 सितंबर 2008 : भीड़भाड़ वाले बाजार में मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटकों के विस्फोट होने से पाँच लोगों की मौत।
मोदासा (गुजरात), 29 सितंबर 2008 : एक मस्जिद के नजदीक कम तीव्रता वाले बम विस्फोट में एक की मौत, कई घायल।
नई दिल्ली, 27 सितंबर 2008 : महरौली के भीड़भाड़ वाले बाजार में बम फेंकने से तीन लोगों की मौत।
नई दिल्ली, 13 सितंबर 2008 : शहर के विभिन्न हिस्सों में छह बम विस्फोटों में 26 लोगों की मौत।
अहमदाबाद, 26 जुलाई 2008 : दो घंटे से कम समय के भीतर 20 बम विस्फोटों में 57 लोगों की मौत।
बेंगलुरु, 25 जुलाई 2008 : कम तीव्रता के बम विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत।
जयपुर, 13 मई 2008 : सिलसिलेवार बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत।
रामपुर, जनवरी 2008 : रामपुर में सीआरपीएफ शिविर पर आतंकवादी हमले में आठ की मौत।
अजमेर, अक्टूबर 2007 : राजस्थान के अजमेर शरीफ में रमजान के समय दरगाह के अंदर विस्फोट में दो की मौत।
हैदराबाद, अगस्त 2007 : हैदराबाद में आतंकवादी हमले में 30 की मौत, 60 घायल।
हैदराबाद, मई 2007 : हैदराबाद की मक्का मस्जिद में विस्फोट में 11 की मौत।
फरवरी 2007 : भारत से पाकिस्तान जाने वाली ट्रेन में दो बम विस्फोटों में कम से कम 66 यात्री जल मरे, जिनमें अधिकतर पाकिस्तानी थे।
मालेगाँव, सितंबर 2006 : मालेगाँव के एक मस्जिद में दोहरे बम विस्फोट में 30 लोगों की मौत और सौ लोग घायल।
मुंबई, जुलाई 2006 : मुंबई की ट्रेनों में सात बम विस्फोटों में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और 700 अन्य घायल।
वाराणसी, मार्च 2006 : वाराणसी के एक मंदिर और रेलवे स्टेशन पर दोहरे बम विस्फोट में 20 लोगों की मौत।
अक्टूबर 2005 : दीवाली से एक दिन पहले नई दिल्ली के व्यस्त बाजारों में तीन बम विस्फोटों में 62 लोगों की मौत और सैकड़ों लोग घायल।
सोमवार, 15 दिसंबर 2014
शनिवार, 13 दिसंबर 2014
Qualitative and quantitative analysis in mass media
INTRODUCTION
In this assignment I will
explain the advantages and disadvantages of qualitative and quantitative
research and give relative examples relating them to the mass media.
Quantitative Research is
research that is collected and data that is absolute, for example numerical
data and it is usually displayed in graphs and tallies, so that it can be
compeered in as unbiased and quick way, therefore one advantage of quantitative
research is that the research is unable to be bias and it is very easy and
quick to read, so it is very good to use for presentations.
Advantages of Quantitative
research is that the results are easily analyzed and easy to compare against
other data; this comes useful when magazine company wants to know how much more
popular or unpopular a competing magazine is, because the research is
statistically reliable it gives the company a good indication of whose selling
the most issues. For example a magazine such as ‘India Today’ will want to know
how well their competitors are doing such as ‘Outlook’.
Qualitative research is
research that requires a more in-depth response, it allows you to ask personal
question and collect more data on people, this is best used in T.V shows when
they get the personal response from viewers, It allows them to find out about
how some people feel about a certain story line and weather they think it will
be appropriate, for example, Eastenders regularly like to know whose watching their
program and what they think about it and the current story line.
Qualitative of research
is easily accessible, this is useful for companies who need to access the
information easily and quickly, this works out well for the film industries
when they ask people coming out of the cinema weather they thought the film was
any good.
DISCOURSE ON QUANTITATIVE VS
QUALITATIVE IN MASS MEDIA
Debates on qualitative versus
quantitative research have reached their peak and today qualitative research is
accepted as a normal set of approaches among others. Media research has long
been dominated by quantitative methods and contributed much to their
development in the whole field of social sciences. Today, sociology, education
and also, in part, communication science make wide use of qualitative methods.
In general, it is not always clear what is meant by qualitative research. Often
it is associated with data gathering by ethnography and open interviewing as
opposed to standardized surveys. It is important to note that qualitative
methodology consists of data collection and data analysis. There has been much
development in general methodology, strongly connected to epistemological
considerations on how it is possible to perceive reality. Methods of data
collection are also very developed; most difficulties are connected to rules
for qualitative data analysis.
QUALITATIVE RESEARCH
Qualitative
Research is primarily exploratory research.
It is used to gain an understanding of underlying reasons, opinions, and
motivations. It provides insights into the problem or helps to develop ideas or
hypotheses for potential quantitative research. Qualitative Research is also
used to uncover trends in thought and opinions, and dive deeper into the
problem. Qualitative data collection methods vary using unstructured or
semi-structured techniques. Some common methods include focus groups (group
discussions), individual interviews, and participation/observations. The sample
size is typically small, and respondents are selected to fulfill a given quota.
The
qualitative tradition in mass communication research may have been relatively
slow in developing its contributions to the field in the form of journals,
conferences, textbooks, and handbooks, at least compared to mainstream
quantitative work. This has been due, in part, to factors of social history, as
already noted: the dominant social construction of reality for a long time has
remained quantitative, not least among the sociopolitical agents and
institutions that confer legitimacy and funding on science, thus creating a
structural bias against qualitative studies
Three types of Qualitative methods
TABLE
6.1
|
COMPARISON
OF QUALITATIVE METHODS
|
||
METHOD
|
STUDY
FOCUS
|
ANALYTIC
FOCUS
|
DISCIPLINES
|
Ethnography
|
culture/cultural
group
|
describe
a culture/cultural group
|
Cultural
Anthropology
|
Grounded
Theory
|
cultural
groups
|
generate
theory about a basic social process
|
Sociology/
Symbolic Interaction/ Criminology
|
Phenomenology
|
individual
experience
|
discern
the essence of the lived experience
|
Philosophy/
Psychology/ Sociology
|
Approach
of Qualitative Research
n Qualitative research – different
assumptions/ approach than quantitative research
n Emphasis on seeing the world from the
eyes of the participants
n Strive to make sense of phenomena in terms
of the meanings people bring to them
n Holistic emphasis – studying the
person, group, culture in the natural setting
Step in quantitative research
Quantitative (Linear)
↓ Define a Research Problem/Question
↓ Review the Literature
↓ Formulate Hypothesis or Refine Question
↓ Make Operational Definitions
↓ Design or Select Instruments for Data
↓ Obtain Ethical Approval
↓ Collect Data
↓ Analyze Data
↓ Interpret Findings – Refer to Literature Again
↓ Determine Implications – Draw Conclusions
Core
Activities in Qualitative Research
Qualitative approaches on:
- Literature review
- Explicating researcher’s beliefs
- Role of participants: subject or informant?
- Selection of participants
- Setting for data collection
- Approach to data analysis
- Saturation
Data
Collection Methods in Qualitative Studies in mass media
n Three data collection strategies
introduced:
1.
Participant observation
2.
In-depth interviews
3.
Focus group interviews
n Qualitative researchers may combine
more than one method
Methods
of Evaluating Qualitative Research in mass media
n Developing
standards of quality Lincoln and Guba’s classic work shed light on how to
assess truth in a qualitative report
n Offered
four alternate tests of quality that reflect the assumptions of the qualitative
paradigm:
·
Credibility
·
Dependability
·
Transferability
·
Confirmability
Advantages and Limitations
n Focus
on the whole of the human experience and the meanings ascribed to them by
participants
n They
provide the researcher with deep insights that would not be possible using
quantitative methods
n The
major strength of qualitative work is the validity of the data it produces
n Participants
true reality is likely to be reflected
n Major
limitation is its perceived lack of objectivity and generalizability
n Researchers
become the research tools and may lack objectivity
QUANTITATIVE RESEARCH
Quantitative
Research is used to quantify the problem by way of generating numerical data or
data that can be transformed into useable statistics. It is used to quantify
attitudes, opinions, behaviors, and other defined variables – and generalize
results from a larger sample population. Quantitative Research uses measurable
data to formulate facts and uncover patterns in research. Quantitative data
collection methods are much more structured than Qualitative data collection
methods. Quantitative data collection methods include various forms of surveys
– online surveys, paper surveys, mobile surveys and kiosk surveys, face-to-face
interviews, telephone interviews, longitudinal studies, website interceptors,
online polls, and systematic observations.
Burns
& Grove (1987)
“...
a formal, objective, systematic process in which numerical data are utilized to
obtain information about the world" and "a research method which is
used to describe and test relationships and to examine cause-and-effect
relationships".
Types
n Experimental
n Survey
n Meta-Analysis
n Quantitative
Case Study
n Applied
Behavior Analysis
n Longitudinal
Approach
of Quantitative Research
n Empirical
Verification through observation or experimentation
n Ruling
out simple explanations prior to adopting complex ones
n Cause-Effect
n Probability
of response
n Replication
of response
Step
in quantitative research
Pros
of Quantitative Research
n Clear interpretations
n Make sense of and organize
perceptions
n Careful scrutiny (logical,
sequential, controlled)
n Reduce researcher bias
n Results may be understood by
individuals in other disciplines
Cons
of Quantitative Research
However the information
collected in a Quantitative method doesn’t give you additional information for
example the emotions, motives, feelings and opinions of the subject are not
taken into account.
Another disadvantage may be
that the data would need regularly updating so this could lead into spending
more money, for example a T.V show would need to do test each week to find out
the amount of ratings they have and compeer them with previous data collected
to see if the popularity of the programme is increasing or decreasing, and
depending on the ratings they receive would play a major part in determining
the out-come of the show.
n Can
not assist in understanding issues in which basic variables have not been
identified or clarified
n Only 1 or 2 questions can be studied at a time,
rather than the whole of an event or experience
n Complex
issues (emotional response, personal values, etc.) can not always be reduced to
numbers
Example of Quantitative
research in mass media
If a research project used a
survey to assess the impact of English language
mass media on how NRI immigrants in the New
Delhi area adapt to their new environment. In addition to mass media use, the
survey also took into account cultural preferences, language fluency, and
demographics as possible predictors of cultural adaptation NRI immigrants in a
large and multicultural metropolitan area of the India . Hypotheses were tested
by using bivariate correlations to determine the relationships between the
independent (language, media use, demographics) and dependent (cultural
adaptation) variables. In addition, a discussion of intercultural communication
and some characteristics of the Non Residential Indian community are provided.
CONCLUSION
Qualitative
research, one of the two primary approaches to the conduct of social science
research, is a superior means for conducting meaningful research mass
media. The numerous advantages of
qualitative methods provide a depth of understanding of mass media system and
processing that far exceeds that offered by detached, statistical
analyses. Because of the differences in
the data, how data is collected and analyzed, and what the data and analyses
are able to tell us about our subjects of study, the knowledge gained through
qualitative investigations is more informative, richer and offers enhanced
understandings compared to that which can be obtained via quantitative
research.
The
superiority of qualitative research arises from the core differences in what
qualitative and quantitative research are, and what they are able to contribute
to bodies of knowledge vents, people, interactions, settings/cultures and
experience. As one leading proponent of
qualitative methods has explained, “Quality refers to the what, how, when, and
where of a thing – its essence and ambience.
Qualitative research thus refers to the meanings, concepts, definitions,
characteristics, metaphors, symbols, and descriptions of things.” (Berg, 2007,
p. 3). Notice that what is missing from
this definition is the “amount” or quantity of whatever it is that is being
studied. The number, or numerical
descriptions of things and their relationships is not The focus of qualitative
research, that is the focus of the “other” form of social science research:
quantitative
methods. Quantitative research is typically considered to be the more
“scientific” approach to doing social science.
The focus is on using specific definitions and carefully
operationalizing what particular concepts and variables mean. Qualitative research methods provide more
emphasis on interpretation and providing consumers with complete views, looking
at contexts, environmental immersions and a depth of understanding of concepts
So, why should social scientists use qualitative methods? What is the benefit of such an approach to
the study ofmass media? In simple terms,
qualitative methods are about gaining true understandings of the social aspects
of how crime occurs and how the agents, structures and processes of responding
to crime operate in c ulturall y-grounded contexts. Qualitative methods provide a depth of
understanding of issues that is not possible through the use of quantitative,
statistically-based investigations.
Qualitative methods are the approach that Centralizes and places primary
value on complete understandings, and how people (the social aspect of our
discipline) understand, experience and operate within milieus that are dynamic,
and social in their foundation and structure.
REFERENCES
सदस्यता लें
संदेश (Atom)