सोमवार, 29 जनवरी 2018
मां उमिया धाम, नागपुर
मां उमिया धाम मां पार्वती का भव्य मंदिर है। यह नापुर के रेलवे स्टेशन से भण्डारा रोड पर करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पंचायतन शैली में बना हुआ है। इसकी स्थापत्य कला बहुत ही सुंदर है। मंदिर में शिव की अर्धागिंनी मां पार्वती की प्रतिमा मध्य में स्थित है। एक और भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग व उसके एकदम सामने भगवान राम और सीता की संयुक्त विग्रह लगा हुआ। हनुमान जी की प्रतिमा की प्रवेश द्वार के पास ही लगा हुई है।
मंदिर में साउंड और लाइट की बहुत ही सुंदर व्यवस्था है। रात को मंदिर संगीत के साथ विभिन्न प्रकार की परिवर्तित होती लाइटों से प्रकाशित रहता है। बदलते प्रकाश के रंग लोगों के मन के बरबस अध्यात्म की तरफ खींच ले जाते हैं। यदि शाम के समय मंदिर दर्शन का कार्यक्रम बनाया जाए तो लाइट-साउंट इफैक्ट का आनंद लिया जा सकता है।
मंदिर सार्वजिक यातायात व टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। बर्डी बस स्टैंड से पारडी के लिए बस मिलती है। वहां हर 10-15 मिनट में शेयरिंग ऑटो से मंदिर पहुंचा जा सकता है। रेलेवे स्टेशन से पहले पारडी जाना होगा वहां से ऑटो लेना होगा।
नागपुर महाराष्ट्र की उपराजधानी है। यहां दिसंबर के माह में विधानसभा सत्र भी चलता है। जनवरी-फरवरी के महीने में यहां दिन का तापमान करीब 25 डिग्री सेल्सियस रहता है, जोकि पर्यटन के बहुत ही अनुकूल तापमान है। फोटो - क्रांति आनंद, आशीष कुमार
रविवार, 28 जनवरी 2018
डॉ. बीआर अंबेडकर की दीक्षा भूमि
दीक्षाभूमि देश
के मध्य में स्थित महाराष्ट्र उपराजधानी नागपुर में स्थित है। डा. भीमराव अंबेडकर
ने 14 अक्टूबर, 1956 को महास्थविर चंद्रमणी से बौद्ध में दीक्षित हुए थे। उनके साथ
5 लाख से अधिक लोगों ने भी बौद्ध धर्म अपना लिया था। पंचशील, त्रिशरण और अपनी 22
प्रतिज्ञाएं देकर अंबेडकर ने हिंदू दलितों को धर्मपरिवर्तन किया। प्रत्येक वर्ष 14
अक्टूबर को यहां दलितों का धर्म परिर्वतन कर बौद्ध बनाया जाता है।
डा. अंबेडकर की
बहुत सी बातें ठीक हो सकती हैं। उनका बौध्द धर्म अपनाना उनका व्यक्तिगत विषय है।
लेकिन अपनी 22 प्रतिज्ञायों में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं का अपमान करना कैसे
ठीक ठहराया जा सकता है। बौध्द धर्म की उत्पत्ति का कारण हिन्दू धर्म की बुराइयों
को माना जाता है। लेकिन महात्मा बुध्द ने बुराइयों पर हमला बोला न कि धर्म के
देवी-देवता या धर्म पर। यहां अंबेडकर साहब ने धर्म की बुराइयों पर हमला न बोलकर
धर्म पर ही हमला बोल दिया है। दीक्षा भूमि पर उनकी 22 प्रतिज्ञायों को एक काले रंग
के खड़े शिलालेख पर उकेरा गया है, जोकि पहली लाइन से ही हिन्दू-देवताओं का अपमान
करती हैं, उनकी प्रतिज्ञाएं 1 अरब लोगों के भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। सवाल यह
भी उठता है कि क्या शिलालेख की भाषा भारत के संविधान के अंतर्गत सही मानी जा सकती
है, जोकि सभी व्यक्तिओं और धर्म की भावनाओं के सम्मान की बात कहता है।
सांई, कबीर, मदर टेरेसा सभी लोग अन्य धर्मों में जन्में
लेकिन इन्होंने समाज में व्यापत बुराइयों के खिलाफ हमला बोला और मानवता की सेवा।
इन्होंने हिन्दू धर्म की बुराइयों को ढूंढ-ढूंढकर उनकी आलोचना की समाज को सुधार के
लिए खड़ा, लेकिन धर्म पर कोई हमला नहीं बोला। आज हिन्दू
धर्म इन्हें पूजता है। सवाल यहीं से उठता है कि अंबेडकर साहब ने अपनी 22
प्रतिज्ञायों में हिन्दू धर्म की बुराइयों के खिलाफ न बोलकर धर्म के खिलाफ ही बोल
दिया है।
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