सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

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बैंक के खिलाफ शिकायत




बैंक के खिलाफ शिकायत

कैसे करें बैंक के खिलाफ शिकायत ?

बैंक में शिकायत तीन तरीकों से की जा सकती है।

शिकायत सेल के ज़रिए- हर बैक में एक शिकायत सेल (grievances cell) होता है। आप इस सेल में जाकर अफसरों के सामने अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

टोल फ्री नंबर पर शिकायत- आप अपने बैंक के टॉल फ्री नंबर पर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ज़्यादातर राष्ट्रीयकृत बैंकों के पास अपने टॉल फ्री नंबर हैं। शिकायत दर्ज़ कराने के बाद शिकायत का नंबर (कंप्लेन्ट नंबर) ज़रूर लें, ताकि अगली बार बैंक से इस शिकायत के बारे में बात करते वक्त आपको सारी बात दोहराना ना पड़े, बल्कि इस नंबर से सारा मामला बैंक के कॉल सेंटर में बैठे एक्ज़ीक्यूटिव को समझ में आ जाए।

बैंक की वेबसाइट पर शिकायत- आप बैंक की वेबसाइट पर भी अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ऐसा करने पर बैंक के अधिकारी आपसे संपर्क करेंगे। शिकायत करने के तीस दिन के भीतर बैंक आपको जवाब देगा और समस्या का हल भी बताएगा।

बैंक नहीं सुने तो लोकपाल से शिकायत करें

लोकपाल से शिकायत क्यों करें - अगर आपका बैंक 30 दिन के भीतर आपकी शिकायत नहीं सुनता, तो आप बैंक के लोकपाल से संपर्क करें। ये लोकपाल भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से नियुक्त किए गए अफसर हैं, जो बैंक के खिलाफ की गई ग्राहकों की समस्या को हल करने का कार्य करते हैं। भारत में 15 लोकपाल हैं जिनके संपर्क नंबर और पते आप रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर देख सकते हैं। लोकपाल आपकी शिकायत के 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करेंगे। वो आपके (यानी ग्राहक के) और बैंक के बीच कानूनी तौर पर बाध्य समझौता कराने की कोशिश करेंगे।

लोकपाल से शिकायत का तरीका - आप सादे कागज़ पर अपनी शिकायत लिखकर उस लोकपाल के दफ़्तर में अपनी शिकायत दर्ज कराएं, जिसके क्षेत्र के अंतर्गत आपके बैंक की ब्रांच आती है। आप रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर भी जाकर भी अपने क्षेत्र के लोकपाल को शिकायत भेज सकते हैं।

क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंक की लोकपाल से शिकायत अक्सर क्रेडिट कार्ड का कारोबार करने वाले बैंकों का सारा रिकॉर्ड और सिस्टम सेंट्रलाइज़्ड होता है। ऐसे में आपका घर का पता जिस लोकपाल के क्षेत्र के अंतर्गत आता है, उसके द़फ्तर में या उसके ईमेल पते पर शिकायत दर्ज करें

अगर लोकपाल आपकी शिकायत खारिज़ कर दे तो क्या?

लोकपाल बैंक के खिलाफ आपकी शिकायत इन आधार पर खारिज कर सकता है

अगर ग्राहक ने पहले बैंक में शिकायत ना दर्ज की हो।

बैंक को जिस समयसीमा में ग्राहक की शिकायत का समधान करना है, वो समयसीमा समाप्त ना हुई हो।

ग्राहक ने किसी और जगह जैसे अदालत, या उपभोक्ता फोरम में पहले ही शिकायत दर्ज कर दी हो।

अगर बैंक में शिकायत दर्ज किए हुए एक साल से ज़्यादा समय बीत चुका हो।

लोकपाल के समझौते से सहमत ना होने पर क्या करे

मुआवजे की सीमा है 10 लाख रुपये या फिर असल नुकसान, दोनों में से जो भी कम हो। यानी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में जाकर आप ज़्यादा से ज़्यादा 10 लाख रुपये का मुआवजा ही पा सकते हैं।

अगर आप लोकपाल के समझौते से भी खुश ना हों, तो आप बैंक के खिलाफ ये कदम उठा सकते हैं। 

पहला कदम- आप रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर से 30 दिन के भीतर संपर्क कर सकते हैं।

दूसरा कदम- आप उपभोक्ता फोरम में संपर्क कर सकते हैं, जो बैंक से जुड़ी शिकायत लेता है।

तीसरा कदम- आप बैंक के खिलाफ़ अदालत में जा सकते हैं।

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

महापुरूष भी पैदा करता है मीडिया



आज के दौर में कार्लाइल की यह पंक्तियां एकदम सटीक लगती हैं अगर समाचार पत्र हाथ में हों तो महापुरुषों का उत्पादन बाएं हाथ का खेल है। महापुरुष करंसी नोट की तरह होते हैं। करंसी नोटों की तरह वे स्वर्ण के प्रतीक हैं। उनका एक मूल्य होता है। हमें देखना यह है कि वे जाली नोट तो नहीं हैं?” कार्लाइल का कहना था कि इतिहास में ऐसे ढेर सारे महापुरुष हुए हैं, जो झूठे और स्वार्थी थे, लेकिन हम सब जानते हैं उन्हें अखबारों और प्रचारकों ने जनता के सामने महापुरुष बना दिया। वे किसी समाचार पत्र या मीडिया द्वारा निर्मित किए गए। अखबारों की मिलीभगत के कारण यह सदा सवाल बना रहेगा कि वे कितने खरे सिक्के थे और कितनी खरी-खरी बातें कहते थे। लेकिन अब सवाल समीक्षा का है, क्या हमें समाचार पत्रों या मीडिया से जुड़े लोगों की भी तुलना करंसी नोटों की उत्पादन संस्था से नहीं करनी चाहिए? क्या यह नहीं देखना चाहिए कि कहीं ये जाली नोट तो नहीं छाप रहे हैं? अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कहीं ये हीरोको विलेनऔर विलेनको हीरोतो नहीं बना रहे हैं?

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

राष्ट्र और धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं



भारत मां
जब बाबर ने काबुल से आकर भारत पर हमला किया था, तो भारत के तत्कालीन महान संत गुरूनानक ने कहा था कि ''हिदुओं के नैतिक पतन के कारण यह दैवीय आपत्ति आई है, जिसका असर देश के भाग्य पर लंबे समय तक रहेगा।''
बाकी की हकीकत  के बारे में सभी जानते हैं। देश ने लंबी मुस्लिम  गुलामी का दौर देखा। उस दौर में हिंदुत्व और उसके आदर्श रसातल में पहुंच गए थे। उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी को दौर आया, जिसमें बचे-कुचे संस्कृति के अंश भी गायब होने की कगार पर पहुंच गए थे।
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तमाम महान लोगों की कुर्बानी के बाद 1947 की आजादी मिली,लेकिन केवल राजनीतिक। संस्कृति और विवेक की आजादी अभी बाकी है। उधार ली हुई तार्किकता को विवेक मान लिया गया है। विवेक में मौलिकता नहीं है, या कहें विवेक अभी गुलाम है। नकल को ही संस्कृति मान लिया गया है।
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योगी अरविंद ने कहा था - "धर्म और राष्ट्र एक साथ चलते हैं। यदि धर्म का पतन होता है तो राष्ट्र का पतन होने लगता है। धर्म के सिकुड़ने के साथ राष्ट्र की सीमाएं सिकुड़ने लगती हैं। साथ ही, उन्होंने कहा था - इक्कीसवीं सदी में भारत फिर खड़ा होगा, अपनी नैतिकता, अपने ज्ञान, अपने अध्यात्म की शक्ति के बल पर। भारत ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म में नई बुलंदियों को छुएगा। दुनिया उसकी सर्वोच्चता स्वीकार करेगी"।
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स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधनों और पुस्तकों मे जिक्र किया था - "मैं स्पष्ट तौर पर देखता हूं, भारत विश्वगुरू बन रहा है, वह पूरे विश्व का वह अपने ज्ञान के जरिए मार्गदर्शन देगा।"
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हम भारतवासियों को यही उम्मीद है कि श्रीअरविंद और विवेकानंद सच साबित हों, इस संसद के होहल्ले और तथाकथित सेक्युलरवादियों की चिंता के बीच

रविवार, 21 दिसंबर 2014

दुनिया के प्रमुख आतंकवादी संगठन

अल कायदा के लड़ाके
पूरी दुनिया इस समय आतंकवाद के कहर से कराह रही है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से आतंकवादी संगठन निर्दोष लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। विडंबना यह है कि हत्या, लूट, अवैध वसूली और बलात्कार करने वाले ये सभी आतंकी संगठन धर्म की आड़ लेकर खड़े किए गए हैं। इन्होंने खुद के संगठन के ऐसे-ऐसे धार्मिक और अन्य नाम रखे हुए हैं, जिससे ये युवाओं को बरगलाकर संगठन में शामिल कर सकें।
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि धर्म के नाम पर घोर अधर्म करने वाले कुछ प्रमुख आतंकी संगठनों के नामों का मतलब क्या है। इन नामों और इनके मतलब से हम जान सकते हैं कि ये आतंकी संगठन कितने शातिर दिमाग हैं जो खुद को सही ठहराने के लिए धर्म को कवच के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
तालिबान
यह पश्तो भाषा का शब्द है जिसका मतलब छात्र यानी शिक्षार्थी से होता है। लेकिन यह ऐसा छात्र है जो अपनी शिक्षा पूरी करने से पहले ही अपने इलाकों की गलियों-कूचों में खून की नालियां बहाकर दुनिया को हिंसा की शिक्षा देने चल पड़ा है। यह आतंकी संगठन पूरे अफगानिस्तान में फैल चुका है और दिसंबर 1996 से दिसंबर 2001 तक वहां सरकार भी बना चुका है। इस संगठन का गठन 1994 में मोहम्मद उमर ने किया था। आज तालिबान न केवल अफगानिस्तान में कहर बरपा रहा है, बल्कि इसका विस्तार पाकिस्तान तक हो चुका है। वहां तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान नाम से आतंकी संगठन अस्तित्व में आ चुका है। इसके खिलाफ पाकिस्तानी सेना ने अभियान चलाया हुआ है। इससे क्रुद्ध होकर इस संगठन ने 16 दिसंबर 2014 को पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 मासूम बच्चों समेत 141 लोगों का कत्लेआम कर डाला।
अल कायदा
इसका शाब्दिक अर्थ है- द बेस। अल का अर्थ “द” है और कायदा का “बेस” यानी आधार। यह विश्वव्यापी आतंकवादी संगठन है, जिसका गठन ओसामा बिन लादेन और अब्दुल्ला आजम ने 1988-89 में कई आतंकवादियों के साथ मिलकर किया था। उसके बाद से यह संगठन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भयंकर तबाही मचा चुका है। अल कायदा शब्द का अर्थ “मिलिट्री बेस” से भी लगाया जाता है। 2001 में खुद ओसामा बिन लादेन ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि रूस के खिलाफ लड़ाई के लिए उनके संगठन ने अनेक प्रशिक्षण शिविरों की स्थापना की थी। इन ट्रेनिंग कैंपों को वे लोग अल कायदा (मिलिट्री बेस) कहकर संबोधित करते थे। बस उसी के बाद से आतंकवादी संगठन को भी अल कायदा कहा जाने लगा। हालांकि ब्रिटेन के पूर्व राजनेता राबिन कुक ने लिखा है कि अल कायदा शब्द का अनुवाद “द डाटाबेस” करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब उन कंप्यूटर फाइलों से था जिनमें उन हजारों मुजाहीदीन आतंकवादियों के ब्योरे थे, जिन्हें रूस को हराने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की मदद से भर्ती और प्रशिक्षित किया गया था।
आईएसआईएस
इसका शाब्दिक मतलब है इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया। इराक और सीरिया में इस्लामिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य से इस आतंकी संगठन का गठन किया गया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि आईसिस (Isis) मिस्र में बच्चे का नाम होता है। वहां इसे एक देवी से जोड़कर देखा जाता है और सभी देवियों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। इस तरह आईएसआईएस से, अंग्रेजी में मिलाकर बोलने से आईसिस की भी ध्वनि निकलती है, जिससे लगता है कि यह कोई पवित्र किस्म का संगठन है। आज दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन बन चुके आईएसआईएस की स्थापना इराकी नागरिक अबु बकर अल बगदादी ने अलकायदा से अलग होकर की थी।
हिज्ब उल मुजाहीदीन
इसका शाब्दिक अर्थ है- पवित्र योद्धाओं का दल, मगर संगठन के किसी भी काम का पवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है। इसके उलट इस संगठन से जुड़े लोगों के हाथ सैकड़ों निर्दोष लोगों के खून से रंगे हुए हैं। 1985 में इस संगठन की स्थापना कश्मीरी अलगाववादी अहसान डार ने की थी। इस समय इस समूह का सरगना सैयद सलाहुद्दीन है, जो पाकिस्तान में छिपा हुआ है और वहीं से आतंकवादी गतिविधियां संचालित करता है।
जैश ए मोहम्मद
इस नाम का शाब्दिक मतलब है- मोहम्मद की सेना, मगर दुर्भाग्य से मोहम्मद की दी शिक्षाओं से इस संगठन से जुड़े लोगों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह भी कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इसे 2002 में पाकिस्तान में ऊपरी तौर पर तो प्रतिबंधित करने की घोषणा की गई थी मगर अंदरूनी तरीके से पाकिस्तान ने इसकी मदद करना जारी रखा हुआ है। इस संगठन को भारत के अलावा अमेरिका और ब्रिटेन भी आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं। इसका गठन 2000 में मौलाना मसूद अजहर ने किया था। इसे हरकत उल मुजाहीदीन नाम के आतंकवादी संगठन से अलग होकर बनाया गया था। यह वही मसूद अजहर है जिसे भारत ने 1999 में अपहृत विमान यात्रियों की रिहाई के बदले में छोड़ा था। 2001 में भारतीय संसद पर हमले का जिम्मेदार भी इसी संगठन को माना जाता है। 2002 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने संगठन पर प्रतिबंध लगाया तो इसने अपना नाम बदलकर खुद्दाम उल इस्लाम रख लिया, जिसका मतलब है इस्लाम का सेवक।
लश्कर ए तैइबा
इसका शाब्दिक मतलब है खुदा की सेना, लेकिन वास्तव में यह जालिमों की सेना ही है जो केवल खून बहाना ही जानती है। इसका मतलब शुद्धता यानी पवित्रता की सेना भी निकाला जाता है, मगर संगठन के नाम और काम में जमीन-आसमान का अंतर है। यह दक्षिण एशिया का बेहद संगठित आतंकी समूह है जो अपनी गतिविधियां पाकिस्तान से संचालित करता है। इसका गठन 1990 में हाफिज सईद, अब्दुल्ला आजम और जफर इकबाल नाम के शातिर दिमाग लोगों ने किया था। इस आतंकी संगठन के अनेक प्रशिक्षण शिविर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चलते हैं। 2008 के मुंबई हमलों के लिए इसी संगठन ने अंजाम दिया था। इस संगठन पर भारत के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, रूस और आस्ट्रेलिया प्रतिबंध लगा चुके हैं। औपचारिक रूप से पाकिस्तान भी इसे प्रतिबंधित कर चुका है पर भारत और दुनिया के अनेक देश मानते हैं कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई इस आतंकी संगठन को अपना सहयोग और समर्थन जारी रखे हुए है।
बोको हराम
यह नाइजीरिया का आतंकवादी संगठन है। बोको हराम का शाब्दिक अर्थ है- पश्चिमी शिक्षा हराम है। बोको हराम का मानना है कि पश्चिमी शिक्षा बंद कर सिर्फ और सिर्फ इस्लामी शिक्षा दी जाए। इस संगठन के अनुसार लड़कियों को पढ़ने का बिल्कुल अधिकार नहीं है, इसलिए उन्हें स्कूलों में भेजना अपराध है। इस नजरिये को लोगों पर लादने के लिए बोको हराम के आतंकी लोगों की हत्या करते हैं, लड़कियों का अपहरण करते हैं और बलात्कार करते हैं। स्कूलों में छात्र-छात्राओं पर हमला करते हैं। वे गिरजाघरों और अन्य जगहों पर विस्फोट भी करते हैं जिनमें हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। बोको हराम का गठन 2002 में धर्मगुरू मोहम्मद यूसुफ ने किया था। शुरुआत में इस संगठन ने मस्जिद और धार्मिक स्कूल बनवाए, लेकिन धीरे–धीरे यह राजनीतिक रूप से सक्रिय हुआ और फिर आतंकवादी संगठन के रूप में बदल गया। बोको हराम कहता है कि अंग्रेजी शिक्षा हराम है, मगर अब नाइजीरिया में अनेक लोग कहने लगे हैं कि यह संगठन ही हराम है।
हमास
हमास शब्द अरबी भाषा के हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया का संक्षेप रूप है। इसका मतलब है इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन। अरबी में हमास एक अलग शब्द भी है, जिसका मतलब “उत्साह” होता है। हमास का गठन 1987 में मिस्र और फिलस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इसरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में पहले आत्मघाती हमले के बाद से 2005 तक हमास ने इसरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए। 2005 में हमास ने हिंसा से खुद को अलग किया मगर 2006 में फिर से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले शुरू कर दिए। तब से रह-रहकर हमास और इसरायली सैनिकों के बीच संघर्ष होता है जिसमें हर बार सैकडों लोग मारे जाते हैं। ज्यादा नुकसान फिलस्तीनी लोगों का ही होता है। हमास का मतलब उत्साह है, मगर हमास से जुड़े लोग फिलस्तीन को आगे बढ़ाने में कोई उत्साह नहीं दिखाते। इसके बजाय वे इसरायल से लड़ने में ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।
अल शबाब
यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- द यूथ यानी युवा। दुर्भाग्य से ये युवा भी युवाओं जैसा कोई काम नहीं कर रहे हैं। ये युवा अपने कंधों पर समाज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उठाने के बजाय बंदूकें-राइफल हाथ में लेकर लोगों का खून बहा रहे हैं। अल शबाब सोमालिया, केन्या आदि देशों में सक्रिय आतंकवादी संगठन है। इस संगठन ने ही पिछले दिनों केन्या के एक मॉल में घुसकर बड़ी निर्ममता से 60 लोगों की हत्या कर दी थी। यहां बताते चलें कि बहरीन में अल शबाब नाम से एक फुटबाल क्लब भी है। कई देशों में अल शबाब नाम से सामाजिक संस्थाएं भी हैं।
आतंकवादी संगठनों की चाल भी यही है कि अपने संगठन का ऐसा नाम रखा जाए जो समाज में या तो पहले से प्रतिष्ठित हों या जिसे सुनकर किसी अच्छे उद्देश्य का अहसास होता हो। इससे उन्हें युवाओं का ब्रेन वाश करने में मदद मिलती है और वे धर्म व जिहाद के नाम पर अपने संगठन की ताकत बढ़ाने में भी सफल हो जाते हैं।