मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

DESI HINDI ALPHABETS WITH AUDIO, हिंदी वर्णमाला का देसी अंदाज - सुनें





भारत विविधताओं का देश है। यह जुमला हिंदी वर्णमाला के संबंध में भी लागू होता है। देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदी वर्णमाला को कई अंदाजों में पढ़ाया जाता है। एक अंदाज की यहां चर्चा की गई है। इस प्रकार की वर्णमाला कुछ वर्ष पूर्व तक उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के प्राथमिक विद्यालयों में सिखाई - बोली जाती थी, जिसे हमने भी सीखा।
कुछ भी हो, स्थानीय अंदाज में सीखना और आत्मसात करना बेहद सरल होता है। भाषा में अपनापन होना चाहिए। 

हिंदी वर्णमाला का देसी अंदाज
          काजर
         खीर
           गइया
           घास
ड.          ड.गन
....
           चाची
          छत
          जमनी
          झझड़
           ञेनक
....
           ट्टू
           ठाकुर
           डोर
           ढक्कन
          अणानी
....
           तोता
           थारी
          दवात
           धनुष
          नानी
....
           पानी
          फन
           बकरी
           भइया
           मामा
....
          यार
           रथ
           लल्लू
           वक
...
          सवाल
           शीटी
           पेट चीरा
           हल
...
क्ष, त्र, ज्ञ
......................................................
प्रवाह में
काजर, खीर, गइया, घास, ड.गन, चाची, छत, जमनी, झझड़, ञेनक, ट्टू, ठाकुर, डोर, ढक्कन, अणानी, तोता, थारी, दवात, धनुष, नानी, पानी, फन, बकरी, भइया, मामा, यार, रथ, लल्लू, वक, सवाल, शीटी, पेट चीरा, हल, क्ष, त्र, ज्ञ ।


ऑडियो सौजन्य - रामा देवी 

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

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बैंक के खिलाफ शिकायत




बैंक के खिलाफ शिकायत

कैसे करें बैंक के खिलाफ शिकायत ?

बैंक में शिकायत तीन तरीकों से की जा सकती है।

शिकायत सेल के ज़रिए- हर बैक में एक शिकायत सेल (grievances cell) होता है। आप इस सेल में जाकर अफसरों के सामने अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।

टोल फ्री नंबर पर शिकायत- आप अपने बैंक के टॉल फ्री नंबर पर भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ज़्यादातर राष्ट्रीयकृत बैंकों के पास अपने टॉल फ्री नंबर हैं। शिकायत दर्ज़ कराने के बाद शिकायत का नंबर (कंप्लेन्ट नंबर) ज़रूर लें, ताकि अगली बार बैंक से इस शिकायत के बारे में बात करते वक्त आपको सारी बात दोहराना ना पड़े, बल्कि इस नंबर से सारा मामला बैंक के कॉल सेंटर में बैठे एक्ज़ीक्यूटिव को समझ में आ जाए।

बैंक की वेबसाइट पर शिकायत- आप बैंक की वेबसाइट पर भी अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। ऐसा करने पर बैंक के अधिकारी आपसे संपर्क करेंगे। शिकायत करने के तीस दिन के भीतर बैंक आपको जवाब देगा और समस्या का हल भी बताएगा।

बैंक नहीं सुने तो लोकपाल से शिकायत करें

लोकपाल से शिकायत क्यों करें - अगर आपका बैंक 30 दिन के भीतर आपकी शिकायत नहीं सुनता, तो आप बैंक के लोकपाल से संपर्क करें। ये लोकपाल भारतीय रिज़र्व बैंक की ओर से नियुक्त किए गए अफसर हैं, जो बैंक के खिलाफ की गई ग्राहकों की समस्या को हल करने का कार्य करते हैं। भारत में 15 लोकपाल हैं जिनके संपर्क नंबर और पते आप रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर देख सकते हैं। लोकपाल आपकी शिकायत के 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करेंगे। वो आपके (यानी ग्राहक के) और बैंक के बीच कानूनी तौर पर बाध्य समझौता कराने की कोशिश करेंगे।

लोकपाल से शिकायत का तरीका - आप सादे कागज़ पर अपनी शिकायत लिखकर उस लोकपाल के दफ़्तर में अपनी शिकायत दर्ज कराएं, जिसके क्षेत्र के अंतर्गत आपके बैंक की ब्रांच आती है। आप रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर भी जाकर भी अपने क्षेत्र के लोकपाल को शिकायत भेज सकते हैं।

क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंक की लोकपाल से शिकायत अक्सर क्रेडिट कार्ड का कारोबार करने वाले बैंकों का सारा रिकॉर्ड और सिस्टम सेंट्रलाइज़्ड होता है। ऐसे में आपका घर का पता जिस लोकपाल के क्षेत्र के अंतर्गत आता है, उसके द़फ्तर में या उसके ईमेल पते पर शिकायत दर्ज करें

अगर लोकपाल आपकी शिकायत खारिज़ कर दे तो क्या?

लोकपाल बैंक के खिलाफ आपकी शिकायत इन आधार पर खारिज कर सकता है

अगर ग्राहक ने पहले बैंक में शिकायत ना दर्ज की हो।

बैंक को जिस समयसीमा में ग्राहक की शिकायत का समधान करना है, वो समयसीमा समाप्त ना हुई हो।

ग्राहक ने किसी और जगह जैसे अदालत, या उपभोक्ता फोरम में पहले ही शिकायत दर्ज कर दी हो।

अगर बैंक में शिकायत दर्ज किए हुए एक साल से ज़्यादा समय बीत चुका हो।

लोकपाल के समझौते से सहमत ना होने पर क्या करे

मुआवजे की सीमा है 10 लाख रुपये या फिर असल नुकसान, दोनों में से जो भी कम हो। यानी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में जाकर आप ज़्यादा से ज़्यादा 10 लाख रुपये का मुआवजा ही पा सकते हैं।

अगर आप लोकपाल के समझौते से भी खुश ना हों, तो आप बैंक के खिलाफ ये कदम उठा सकते हैं। 

पहला कदम- आप रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर से 30 दिन के भीतर संपर्क कर सकते हैं।

दूसरा कदम- आप उपभोक्ता फोरम में संपर्क कर सकते हैं, जो बैंक से जुड़ी शिकायत लेता है।

तीसरा कदम- आप बैंक के खिलाफ़ अदालत में जा सकते हैं।

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

महापुरूष भी पैदा करता है मीडिया



आज के दौर में कार्लाइल की यह पंक्तियां एकदम सटीक लगती हैं अगर समाचार पत्र हाथ में हों तो महापुरुषों का उत्पादन बाएं हाथ का खेल है। महापुरुष करंसी नोट की तरह होते हैं। करंसी नोटों की तरह वे स्वर्ण के प्रतीक हैं। उनका एक मूल्य होता है। हमें देखना यह है कि वे जाली नोट तो नहीं हैं?” कार्लाइल का कहना था कि इतिहास में ऐसे ढेर सारे महापुरुष हुए हैं, जो झूठे और स्वार्थी थे, लेकिन हम सब जानते हैं उन्हें अखबारों और प्रचारकों ने जनता के सामने महापुरुष बना दिया। वे किसी समाचार पत्र या मीडिया द्वारा निर्मित किए गए। अखबारों की मिलीभगत के कारण यह सदा सवाल बना रहेगा कि वे कितने खरे सिक्के थे और कितनी खरी-खरी बातें कहते थे। लेकिन अब सवाल समीक्षा का है, क्या हमें समाचार पत्रों या मीडिया से जुड़े लोगों की भी तुलना करंसी नोटों की उत्पादन संस्था से नहीं करनी चाहिए? क्या यह नहीं देखना चाहिए कि कहीं ये जाली नोट तो नहीं छाप रहे हैं? अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में कहीं ये हीरोको विलेनऔर विलेनको हीरोतो नहीं बना रहे हैं?

मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

राष्ट्र और धर्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं



भारत मां
जब बाबर ने काबुल से आकर भारत पर हमला किया था, तो भारत के तत्कालीन महान संत गुरूनानक ने कहा था कि ''हिदुओं के नैतिक पतन के कारण यह दैवीय आपत्ति आई है, जिसका असर देश के भाग्य पर लंबे समय तक रहेगा।''
बाकी की हकीकत  के बारे में सभी जानते हैं। देश ने लंबी मुस्लिम  गुलामी का दौर देखा। उस दौर में हिंदुत्व और उसके आदर्श रसातल में पहुंच गए थे। उसके बाद अंग्रेजों की गुलामी को दौर आया, जिसमें बचे-कुचे संस्कृति के अंश भी गायब होने की कगार पर पहुंच गए थे।
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तमाम महान लोगों की कुर्बानी के बाद 1947 की आजादी मिली,लेकिन केवल राजनीतिक। संस्कृति और विवेक की आजादी अभी बाकी है। उधार ली हुई तार्किकता को विवेक मान लिया गया है। विवेक में मौलिकता नहीं है, या कहें विवेक अभी गुलाम है। नकल को ही संस्कृति मान लिया गया है।
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योगी अरविंद ने कहा था - "धर्म और राष्ट्र एक साथ चलते हैं। यदि धर्म का पतन होता है तो राष्ट्र का पतन होने लगता है। धर्म के सिकुड़ने के साथ राष्ट्र की सीमाएं सिकुड़ने लगती हैं। साथ ही, उन्होंने कहा था - इक्कीसवीं सदी में भारत फिर खड़ा होगा, अपनी नैतिकता, अपने ज्ञान, अपने अध्यात्म की शक्ति के बल पर। भारत ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म में नई बुलंदियों को छुएगा। दुनिया उसकी सर्वोच्चता स्वीकार करेगी"।
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स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधनों और पुस्तकों मे जिक्र किया था - "मैं स्पष्ट तौर पर देखता हूं, भारत विश्वगुरू बन रहा है, वह पूरे विश्व का वह अपने ज्ञान के जरिए मार्गदर्शन देगा।"
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हम भारतवासियों को यही उम्मीद है कि श्रीअरविंद और विवेकानंद सच साबित हों, इस संसद के होहल्ले और तथाकथित सेक्युलरवादियों की चिंता के बीच