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रविवार, 2 सितंबर 2012

मीडिया में लाभ कमाने की ऐनकेन प्रकारेण तकनीक

मीडिया मे ऐनकेन प्रकारेण लाभ कमाने की तकनीक, विशेषकर इलैक्ट्रोनिक मीडिया में। संपादकों को ही चैनल का बिजनेस हेड भी बना दीजिए। संपादक को दो जिम्मेदारियां दीजिए, संपादन और अधिक से अधिक से लाभ कमाकर देना। अधिकांश राष्ट्रीय चैनलों में यही हो रहा है। आप तो जानते  ही हैं लाभ का रास्ता समझौतों से होकर गुजरता है, तो ऐसे में संपादक किन चीजों के साथ समझौता करेगा यह सब भी आसानी से समझा जा सकता हैं यानि समाचारों की निष्पक्षता के साथ। कहां तक बचेगा बेचारा। मालिक को अधिक से अधिक लाभ कमाकर जो देना है।

आशीष कुमार
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
09411400108

बुधवार, 29 अगस्त 2012

रेडियो जॉकियों द्वारा भाषा का चीरहरण

एफएम  का जाल, भाषायी बलात्कार
रेडियों जॉकियों ने हिंदी भाषा का कैसे दम निकाला है,, अश्लीललता का कैसा लेप चढाया जा रहा है। जरा देखिए - एक शो में उदघोषक साहब यानी जॉकी जनाब कुछ महिलाओं और बच्चों की प्रशंसा करते हुए कह रहे थे 'देखो इन्होंने अपराधियों की कैसे कह कर ली.' इन शब्दों के साथ वह उनकी पीठ थपथपा रहे है। दूसरा वाकया - एक सोनिया भाभी अपने श्रोताओं को ना जाने क्या क्या बांटती रहती है। तीसरा वाकया- सोच कभी भी आ सकती है। चौथा वाकया - कुछ किया तो डंडा हो जाएगा। पांचवा वाकया - एक लव गुरु रात में युवाओं का न जाने क्या क्या नुस्खे सिखाते रहते हैं। छठा वाकया - 'सोनिया भाभी की नीली है या लाल। नहीं नीली है मैने सुखाते वक्त देखा था।' इन रेडियों जॉकी में महिला उदघोषक भी शामिल रहती हैं, और कभी-कभी तो द्विअर्थी संवाद में दो कदम आगे। यदि आपके साथ परिवार का कोई मेंबर हैं और आपने गाडी में कोई एफएम चैनल टूयून कर लिया. जैसे ही आप इन रेडियो जॉकियों की अश्लील बकवास सुनेगें तो नैतिकता के नाते चैनल ही बदलना पडेगा। इनका कोई ऑफ कडक्ट नहीं है। शायद नियामक संस्थाएं भी चाय की चुस्की और पापडों के साथ इन संवादों के कुरकुरेपन का मजा ले रहे हैं।

आशीष कुमार
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
देव संस्कति विश्वविद्यालय, हरिद्वार

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

मीडिया का दम घोट रहीं प्राइवेट पार्टनरशिप

भारतीय मीडिया में प्राइवेट पार्टनरशिप

मीडिया विमर्श -

मीडिया नेट व प्राइवेट पार्टनरशिप का जाल देखिएगा, बैनेट एंड कोलमन ग्रुप की करीब 500 से ज्यादा कंपनियों मे हिस्सेदारी है। दैनिक भास्कर की करीब 100 प्राइवेट कंपनियों में हिस्सेदारी है। इस व्यवसाय में तमाम मीडिया ग्रुप अपने हाथ अजमा रहे हैं चाहे वह हिन्दुस्तान ग्रुप, नेटवर्क 18, सन नेटवर्क, एनडीटीवी या जी नेटवर्क हो। इसके लिए इन्होंने कई प्रकार की शब्दावलियों का भी अविष्कार किया है। इस प्रकार के व्यवसाय में विज्ञापन छापने के एवज में नकद रकम नहीं ली जाती है बल्कि उस कंपनी की हिस्सदारी ले ली जाती है। ऐसे में वह मीडिया ग्रुप उस कंपनी के कुछ प्रतिशत भाग का मालिक हो जाता है। मीडिया समूहों के द्वारा देश की छोटी कंपनियों के साथ इस प्रकार की डील करने में ज्यादा तरजीह दी जाती है। इस प्रकार का समझौता दस पांच पेज के कानूनी दस्तावेजों के साथ किया जाता है। समझौतों के साथ मीडिया कंपनी उस कंपनी को विज्ञापन व कई अन्य फंडों के जरिए व्यापार को बढावा देने का भरोसा भी दिलाती है। व्यापार की नजरिए से यह बेहद लाभदायक तरीका है। कंपनी के लाभ-हानि के साथ मीडिया ग्रुप की लाभ हानि भी जुडी होती है।
लेकिन पत्रकारिता की नजरिए से यह उसूलों और नैतिकता के खिलाफ है। यदि हमारा मीडिया उन कंपनियों के साथ जुडने से लाभ-हानि में तब्दील होता है तो पत्रकारिता की निष्पक्षता को खतरा हो जाता है। वह उन व्यक्तियों या कंपनियों के खिलाफ कभी खबर चलाने में कतराते हैं जिससे उन्हें सीधा नुकसान होता है। वर्तमान मीडिया में इस के प्रभावों को आसानी से देखा जा सकता है। अनेकों बार इन्हीं लाभ-हानि के डर से मीडिया में खबरें नहीं आ पाती है।
आश्चर्य की बात तो यह कि इस पर भारत में कहीं चर्चा देखते को नहीं मिलती है। सभी मीडिया घराने पत्रकारिता के उसूलों को ताक पर रख अधिक से अधिक लाभ के चक्कर में लगे हुए हैं। गजब की बात तो यह है कि ये मीडिया ग्रुप इन सबमें लिप्त होने के बावजूद अपने को पाक साफ सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ते हैं। आवश्यकता है पत्रकारिता जगत में इस पर गंभीर और सार्थक बहस की जाए। चाहे सेल्फ रेगुलेशन के जरिए ही लेकिन इस हवस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए तभी पत्रकारिता की गरिमा और विश्वास को जिंदा रखा जा सकता है। मीडिया रेगुलेशन संस्थाओं को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए।

आशीष कुमार
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, देवसंस्कति विश्वविद्यालय, हरिद्वार