सोमवार, 30 जुलाई 2018
शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018
भारत में बिजनेस पत्रकारिता
विकसित होते भारत
में आर्थिक पत्रकारिता विशेष महत्व रखती है। आर्थिक–पत्रकारिता शब्द में दो शब्द हैं–आर्थिक और पत्रकारिता। आर्थिक का संबंध अर्थशास्त्र से है। अर्थशास्त्र
सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत
वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत
शब्दों धन और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक
अर्थ है 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के
संबंध में मनुष्यों के कार्यो के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के अर्थसंबंधी
कायों का क्रमबद्ध ज्ञान होना आवश्यक है।
अर्थशास्त्र की
बहुत शुरुआती परिभाषाओं में एक परिभाषा एल रोबिंस ने दी है–अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन उन साध्यों और सीमित साधनों के
रिश्ते के रुप में करता है, जिनके वैकल्पिक
प्रयोग हैं। संसाधन सीमित हैं,
उनके किस प्रकार के प्रयोग संभव हैं। उन संसाधनों से किस
प्रकार अधिकतम आउटपुट कैस प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार के प्रश्नों का
उत्तर अर्थशास्त्र के अंतर्गत ढूंढा जाता है। अर्थशास्त्र के बारे में उन
विद्वानों ने भी लिखा है, जो मूलत
अर्थशास्त्री नहीं थे। प्रख्यात नाटककार और व्यंग्यकार बर्नार्ड शा ने लिखा है–अर्थशास्त्र जीवन से अधिकतम पाने की कला है।
अर्थशास्त्र में
उत्पादन के विभिन्न तत्वों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। उत्पादन के महत्वपूर्ण
तत्व हैं– भूमि या
प्राकृतिक संसाधन, जैसे–खनिज, कच्चा माल, जो उत्पादन में
प्रयुक्त होते हैं। श्रम यानी वह मानवीय प्रयास जो उत्पादन में प्रयुक्त होते हैं।
इनमें मार्केटिंग और तकनीकी विशेषज्ञता शामिल है। पूंजी, जिससे मशीन,फैक्टरी इत्यादि खड़ी की जाती है। कारोबारी प्रयास, जिनके चलते शेष सारे तत्व काराबोर को संभव
बनाते हैं।
इस लिहाज से आर्थिक
पत्रकारिता को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि आर्थिक या बिजनेस पत्रकारिता
का अर्थ उस पत्रकारिता से है, जिसमें व्यापार, वाणिज्य जैसी तमाम आर्थिक
गतिविधियों की जानकारी विभिन्न संचार माध्यमों के जरिए पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं
तक पहुंचायी जाती है। आर्थिक पत्रकारिता करने के लिए आर्थिक गतिविधियों और
शब्दावलियों की जानकारी होना बहुत आवश्यक है।
यदि किसी जनसंचार
के विद्यार्थी को बतौर पत्रकार आर्थिक पत्रकारिता करनी है तो आर्थिक शब्दों तकनीकी जानकारी होना बहुत
जरूरी है। अर्थजगत में
प्रत्येक आर्थिक गतिविधि से जुड़े शब्द का एक विशेष महत्व होता है। ऐसे शब्दों को
समझे बगैर, न तो सही तरह से पत्रकारिता
हो सकती है और न ही लेखक पाठकों को ठीक से समझा सकता है। आर्थिक पत्रकारिता करने
से पहले आर्थिक शब्दालियों का आत्मसात करना बहुत जरूरी है। साथ ही हिन्दी में आर्थिक
और बिजनेस पत्रकारिता करने के लिए यह आवश्यक है कि सही ढंग से अंगे्रजी का हिंदी
में अनुवाद करना भी आना चाहिए। क्योंकि
हिन्दी ख़बर लिखने के लिए जो भी सामग्री
मिलती है, वह आम तौर पर अंगे्रजी
में ही होती है,। इसलिए अगर आप डेस्क के साथ-साथ रिपोर्टिंग भी कर रहे हों,
तो अनुवाद से साबका आपका होगा ही। ऐसे में,
अंगे्रजी जानना बेहद ज़रूरी हो जाता है। अनुवाद
करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि शब्दश: अनुवाद न हो और भावानुवाद को
महत्व दिया जाए। जटिल शब्दों को सरल शब्दों में लिखना ही आर्थिक पत्रकारिता की सही
पहचान है। हां, अनुवाद करते वक्त
अगर कोई कठिन तकनीकी शब्द आ जाए, तो बेहतर यही
होगा कि उस शब्द को अंगे्रजी में ही जाने दें, ताकि अर्थ का अनर्थ न हो।
अनुवाद किसी भी
दृष्टि से अनुवाद न लगे। पढ़ने वाले को यह एहसास हो कि जिस ख़बर को वह पढ़ रहा है,
वह मूल रूप से हिंदी में ही लिखी गई है। वैसे,
अनुवाद करना भी एक कला है और यह कला नियमित
अभ्यास के जरिए ही आत्मसात की जा सकती है, बशर्ते कि हर शब्द का सही अर्थ लेखक जानता और समझता हो। अनुवाद तभी सही तरह से
पठनीय होता है, जब पत्रकार एक
भाषा से दूसरी भाषा की आत्मा को समझे। अगर मूल पाठ को समझने में कोई दिक्कत हो,
तो अर्थ का अनर्थ होने का ख़तरा सौ प्रतिशत बना
रहता है।
आर्थिक
पत्रकारिता करने वाले लोगों को यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि आखिर किसी खास
क्षेत्र के बजट में अगर सरकार बेतहाशा वृद्धि कर रही है, तो उसकी असली वजह क्या है? यहां यह जानना और लोगों को समझाना भी जरूरी होता है,
क्योंकि ऐसी ब़ढोत्तरी के लिए सरकार कुछ और
तर्क देती है, लेकिन पर्दे के
पीछे की सच्चाई कुछ और ही होती है।
आर्थिक
पत्रकारिता करने वालों को इस बात से भी वाकिफ होना चाहिए कि भले ही एक तरफ देश में
विदेशी मुद्रा भंडार और अरबपतियों की संख्या ब़ढ रही हो, लेकिन दूसरी ओर एक ब़डा वर्ग ऐसा भी है, जो दिनोंदिन और, और गरीब होता जा रहा है। समाज में चौतरफा फैल रही विषमता के
लिए सबसे अधिक जिम्मेदार आर्थिक गैरबराबरी ही है। दरअसल, आर्थिक असमानता की वजह से ही समाज में जीवनशैली, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास के अलावा,
कई बुनियादी मोर्चों पर गैरबराबरी ब़ढ रही है। इन
सभी मुद्दों पर लिखते वक्त हमें इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहीं हम पूंजीपतियों
की जी हुजूरी में तो नहीं लग गए हैं। दरअसल, हमें लिखते वक्त यह ध्यान भी रखना होगा कि आर्थिक गैरबराबरी
की वजह से ही राज और समाज में कई तरह की विषमता फैलती है।
विश्व में भारतीय युवाओं की स्थिति, बहुत अच्छी नहीं
वैश्विक युवा विकास सूचकांक
में भारत का 133 वां स्थान
भारत युवा शक्ति के आधार
विश्व शक्ति बनने का सपना देखता है, लेकिन राष्ट्रमंडल सचिवालय द्वारा जारी की गई
वैश्विक युवा विकास सूचकांक -2016 की सूची भारत में युवाओं की अच्छी स्थिति नहीं
बता रही है।
राष्ट्रमंडल सचिवालय द्वारा
जारी किए गए वैश्विक युवा विकास सूचकांक-2016 में 183 देशों की सूची में भारत को
133 वां स्थान प्राप्त हुआ है। यह सूची युवाओं की शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य व
सामाजिक-राजनीतिक भागीदारी जैसे मानकों के आधार पर तैयार की गई है। इस सूची में
भारत को अपने पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान व श्रीलंका से भी नीचे स्थान प्राप्त हुआ
है। इस सूची के मुताबिक नेपाल 77 वें, भूटान 69 वें और श्रीलंका 31 वें स्थान पर
हैं।
इस समय दुनिया में युवाओं
(15-29 वर्ष) की संख्या 1.8 अरब है। भारत में विश्व के कुल युवाओं की करीब 20
फीसदी आबादी निवास करती है। इस समय देश में युवाओं की कुल संख्या 34.5 करोड़ है।
मीडिया और युद्ध का बाजार
नब्बे के दशक के
शुरूआती दौर में अमेरिकी सीएनएन चैनल ने खाड़ी युद्ध दिखाकर भारतीय बाजार में
दस्तक दी थी। इसकी कवरेज ने युद्ध को सीधे लोगों के बेडरूम तक पहुंचा दिया था। दर्शकों
ने मशीनगनों से निकलती गोलियों की तड़तड़ाहट व बम बरसाते टैंकों को घर बैठकर टीवी
सेटों पर देखा। फिल्मों में दिखायी जाने वाली काल्पनिक हिंसा और युद्ध को सीएनएन
ने उन्हें पहली बार हकीकत में दिखाया था। दर्शकों के लिए यह बेहद रोमांचित करने
वाला अनुभव था। इस युद्ध की ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार लोगों
की नजर में असल जिंदगी के हीरो बन गए। साथ ही, इस युद्ध कवरेज ने मीडिया संस्थानों
को युद्ध के जरिए पैसा कमाने की नई ‘कारगर थ्योरी’ भी दी।
अमेरिका के विलियम
रेंडोल्फ हर्स्ट को पीत पत्रकारिता के साथ युद्ध उन्मादी पत्रकारिता का जनक कहा
जाता है। अमेरिका में पत्रकारिता के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा। उन्होंने
19वीं सदी के अंत से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक अमेरिका की पत्रकारिता को एक नई
पहचान दी। वर्ष 1887 में उनको अपने पिता से ‘द सेन फ्रांसिसको एग्जामिनर’ अखबार का करोबार विरासत
में मिला था। बाद में वे सेन फ्रांसिस्को से न्यूयार्क आ गए।
न्यूयार्क शहर आने
पर विलियम हर्स्ट ने जाने-माने अखबार ‘द न्यूयार्क जनरल’ खरीद को लिया। लेकिन वहां वे जोसेफ पुलित्जर के
अखबार ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ के साथ सर्कुलेशन की प्रतिस्पर्धा में फंस गए। सर्कुलेशन बढ़ाने के
लिए उन्होंने पीत पत्रकारिता से भी गुरेज नहीं किया। वर्ष 1898 में अमेरिका व
स्पेन की बीच हुए युद्ध को उन्होंने लोगों के सामने सनसनी बनाकर पेश किया। अखबार
की बिक्री बढ़ाने के लिए कुछ युद्ध की घटनाओं को तो शून्य से ईजाद कर दिया, जिनका
जमीनी हकीकत से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने युद्ध के रोमांच और हिंसा को
अखबारी करोबार के मुनाफे में बदल दिया था।
हालांकि इसके लिए उन्हें अलोचनाओं का भी समाना करना पड़ा।
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बुधवार, 7 फ़रवरी 2018
कांग्रेस के अधिवेशन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
अधिवेशन
-
इंडियन नेशनल कांग्रेस का
पहले नाम इंडियन नेशनल यूनियन था।
-
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में शामिल नहीं हुए थे।
1.
प्रथम अधिवेशऩ
|
1885
|
मुंबई
|
व्योमेश चंद्र बनर्जी
|
72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
|
2.
दूसरा अधिवेशऩ
|
1886
|
कलकत्ता
|
दादा भाई नौरोजी
|
|
3.
तीसरा अधिवेशन
|
1887
|
मद्रास
|
सैय्यद बदरूद्दीन तैय्यब
|
प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष
|
4.
चौथा अधिवेशन
|
1988
|
इलाहाबाद
|
जार्ज यूल
|
प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष
|
5 . पांचवा अधिवेशन
|
1889
|
मुंबई
|
विलियम वेंडरबर्न
|
1.
कांग्रेस ने अपनी एक
समिति ‘ब्रिटिश इंडिया कमेटी’ का गठन किया।
2.
पहली बार महिला सदस्यों
ने भाग लिया, जिनमें एक कादम्बिनी गांगुली थीं।
|
6 . छठा अधिवेशन
|
1890
|
कलकत्ता
|
सर फिराज मेहता
|
|
7 . सांतवा अधिवेशन
|
1891
|
नागपुर
|
पी आनंद चारलू
|
1.
कांग्रेस का नारा ‘राष्ट्रीयता’ बोला गया।
|
8. आठवां अधिवेशन
|
1892
|
इलाहाबाद
|
व्योमकेश चंद्र बनर्जी
|
1.
यह सेशन पहले इंग्लैंड
में प्रस्तावित था।
|
9. नवां अधिवेशन
|
1893
|
लाहौर
|
दादा भाई नौरोजी
|
1.
इसमें सिविल सेवा परीक्षा
भारत में करवाने का प्रस्ताव रखे गया।
|
10.
|
1894
|
मद्रास
|
अल्फ्रेड वेब
|
|
11.
|
1895
|
पुणे
|
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
|
|
12.
|
1896
|
कलकत्ता
|
रहमतुल्ला एम सयानी
|
1.
दादाभाई नौरोजी की थ्योरी
‘ड्रेन ऑफ वेल्थ’ को स्वीकार किया गया।
2.
1867 में ड्रेन ऑफ वेल्थ थ्योरी
आई थी।
|
13.
|
1997
|
अमरावती
|
सी. सी. शंकर नायर
|
|
14.
|
1898
|
मद्रास
|
आनंद मोहन बोस
|
|
15.
|
1899
|
लखनऊ
|
रोमेश चंद्र दत्त
|
|
16.
|
1900
|
लाहौर
|
सर नारायण गणेश चंद्रावरकर
|
|
17.
|
1901
|
कलकत्ता
|
सर दिनशॉ इदुल्ली वाचा
|
1.
महात्मा गांधी पहली बार
कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए।
|
18.
|
1902
|
अहमदाबाद
|
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
|
|
19.
|
1903
|
मद्रास
|
लाला मोहन घोष
|
|
20.
|
1904
|
मुंबई
|
सर हेनरी कॉटन
|
1.
मोहम्मद अली जिन्ना से
इसमें पहली बार शामिल हुए।
|
21.
|
1905
|
बनारस
|
गोपाल कृष्ण गोखले
|
1.
स्वदेशी आंदोलन को समर्थन
दिया गया।
2.
बंगाल विभाजन के खिलाफ
प्रस्ताव लाया गया।
3.
गोपाल कृष्ण गोखले को
विपक्ष के नेता की उपाधि दी गई।
|
22.
|
1906
|
कलकत्ता
|
दादा भाई नौरोजी
|
1.
इसमें ‘स्वदेश’ शब्द का पहली बार प्रयोग
किया गया।
2.
मोहम्मद अली जिन्ना सचिव
के रूप में अधिवेशन में शामिल हुए।
|
23.
|
1907
|
सूरत
|
रास बिहारी बोस
|
1.
कांग्रेस का प्रथम विभाजन
हुआ।
2.
कांग्रेस नरम दल और गरम
दल में विभाजित हो गई।
|
24.
|
1908
|
मद्रास
|
रास बिहारी बोस
|
-
कांग्रेस संविधान का
निर्माण
|
25.
|
1909
|
लाहौर
|
मदन मोहन मालवीय
|
|
26.
|
1910
|
इलाहाबाद
|
विलियम वेंडरबर्न
|
|
27.
|
1911
|
कलकत्ता
|
पंडित बिशन नारायण दर
|
1.
राष्ट्रगान पहली बार गाया
गया।
2.1912 तत्वबोधिनी पत्रिका में राष्ट्रगान भारत भाग्य विधाता शीर्षक से
प्रकाशित हुआ।
|
28.
|
1912
|
बांकीपुर
|
राम बहादुर रघुनाथ नरसिम्हा
|
1.
इसमें एओ ह्यूम को
कांग्रेस का पिता कहा गया।
|
29.
|
1913
|
करांची
|
नवाब सैय्यद मोहम्मद बहादुर
|
|
30.
|
1914
|
मद्रास
|
भूपेन्द्र नाथ बोस
|
|
31.
|
1915
|
मुंबई
|
लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्ना सिन्हा
|
लार्ड वेलिंग्टन ने हिस्सा लिया।
|
32.
|
1916
|
लखनऊ
|
अंबिका चरण मजमूदार
|
1.
गरम दल और नरम दल के बीच
लखनऊ पैक्ट हुआ।
2.
‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार’ बाल गंगाधर तिलक ने बोला
3.
मुस्लिम लीग से समझौता
|
33.
|
1917
|
कलकत्ता
|
एनी बेसेंट
|
1.
तिरंगे को कांग्रेस
द्वारा झंडे के रूप में स्वीकार किया।
2.
प्रथम महिला अध्यक्ष
|
|
|
|
|
|
पहला विशेष अधिवेशन
|
1918
|
मुंबई
(विशेष सत्र)
|
सैय्यद हसन इमाम
|
1.
मौलिक अधिकारों की बात की
गई।
2.
रोलेक्ट एक्ट (काला एक्ट)
पर विचार करने के लिए अधिवेशन बुलाया गया।
3.
कांग्रेस का दूसरा विभाजन
|
34.
|
1918
|
दिल्ली
|
मदन मोहन मालवीय
|
|
35.
|
1919
|
अमृतसर
|
पंडित मोतीलाल नेहरू
|
1.
खिलाफत आंदोलन को समर्थन
देने की बात कही गई।
2.
जलियावाला बाग हत्याकांड
की निंदा की कई।
|
36.
|
1920
|
नागपुर
|
सी विजय राघवाचारी
|
1.
भाषा के आधार पर प्रांतों
की बात कही गई।
2.
प्रोविन्सिस को लेकर
कांग्रेस ने अपनी नीति रखी।
3.
कांग्रेस संविधान में
परिवर्तन
|
विशेष अधिवेशन
|
1920
|
कलकत्ता
|
लाला लाजपत राय
|
1.
गांधी ने असयोग आंदोलन का
प्रस्ताव रखा
|
37.
|
1921
|
अहमदाबाद
|
हकीम अजमल खान
|
|
38.
|
1922
|
गया
|
देशबंधु चितरंजनदास
|
1.
स्वराज पार्टी की घोषणा
की।
|
39.
|
1923
|
काकीनाड़ा
|
मोहम्मद अली
|
1.
कामरेड समाचार पत्र का
संपादन किया गया।
|
विशेष अधिवेशन
|
1923
|
दिल्ली
(विशेष सत्र)
|
मौलाना अबुल कलाम आजाद
|
1.
सबसे कम उम्र के अध्यक्ष
बने
|
40.
|
1924
|
बेलगाम
|
महात्मा गांधी
|
1.
पहली बार गांधी अध्यक्ष
बने
|
41.
|
1925
|
कानपुर
|
सरोजिनी नायडू
|
1.
पहली बार किसी भारतीय
महिला ने अध्यक्षा की।
2.
पूर्ण स्वराज्य का
प्रस्ताव लाया गया, लेकिन पास नहीं हुआ।
|
42.
|
1926
|
गुवाहाटी
|
श्रीनिवासन अय्यंगर
|
-
खादी पहनना अनिवार्य कर
दिया।
|
43.
|
1927
|
मद्रास
|
डॉ. एम. ए. अंसारी
|
- पूर्ण स्वाधीनता की मांग।
- साइमन कमीशन का विरोध किया गया।
|
44.
|
1928
|
कलकत्ता
|
पंडित मोती लाल नेहरू
|
-
नेहरू रिपोर्ट को
स्वीकारने की बात कही गई।
|
45.
|
1929-30
|
लाहौर
|
पंडित जवाहर लाल नेहरू
|
- पूर्ण स्वराज को के प्रस्ताव को पास किया गया।
- रावी नदी के किनारे तिरंगा फहराया गया।
|
46.
|
1931
|
कराची
|
सरदार बल्लभ भाई पटेल
|
- मौलिक अधिकारों की मांग की गई
- इकोनॉमिक पॉलिसी की बात कही गई।
|
47.
|
1932
|
दिल्ली
|
अमृत रणछोड दास सेठ
|
|
48
|
1933
|
कलकत्ता
|
नलिनी सेन गुप्ता
|
|
49.
|
1934-35
|
मुंबई
|
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
|
|
50.
|
1936
|
लखनऊ
|
जवाहर लाल नेहरू
|
|
51.
|
1936-37
|
फैजपुर
|
जवाहर लाल नेहरू
|
गांव में आयोजित पहला कांग्रेस अधिवेशन
|
52.
|
1938
|
हरिपुरा
|
सुभाष चंद्र बोस
|
नेशनल प्लानिंग कमेटी की बात कही गई, अध्यक्ष
जवाहर लाल नेहरू बने।
रजवाडों का शामिल किया गया।
|
53.
|
1939
|
त्रिपुरी (जबलपुर)
|
सुभाष चंद्र बोस/राजेन्द्र प्रसाद
|
|
54.
|
1940-46
|
रामगढ़
|
मौलाना अबुल कलाम आजाद
|
|
55.
|
1946
|
मेरठ
|
जेबी कृपलानी
|
आजादी के समय अध्यक्ष
|
56.
|
1948-49
|
जयपुर
|
पट्टाभि सीतारमैय्या
|
|
57.
|
1950
|
नासिक
|
पुरूषोत्तमदास टंडन
|
|
-
सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता
की मांग हसरत मुहानी ने की थी सन 1921।
-
1906 में तिरंगा झड़ा
कांग्रेस ने कलकत्ता पारसी बगान में फहराया था।
-
कांग्रेस के प्रथम सचिव एओ
ह्यूम। इन्हें हरमिट ऑफ शिमला भी कहा जाता है। इन्होंने ‘लोकमित्र’ नाम की पत्रिका भी निकालते
हैं।
-
एओ ह्यूम को भारत में पक्षी
विज्ञान का जनक भी कहा जाता है।
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