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कोयले का सियासी हंगामा |
कोयला ब्लॉक आबंटन में हुई अनियमिताओं को लेकर पेश की गई कैग की रिपोर्ट के
बाद सियासी गलियारों में तूफान आया हुआ
है। पक्ष व विपक्ष इस घमासान के बीच 2014 के आम चुनावों को ध्यान में रखकर एक दूसरे पर
आक्रमण करने में लगे हुए हैं। आरोपी नेतृत्व की अध्यक्षा भी जबरदस्त आक्रमकता के
साथ काउंटर अटैक कर रही हैं। अपने पार्टी के लोगों से आक्रमकता के साथ मोर्चा
संभालने का आह्वान कर रही हैं। विपक्ष को लोकतंत्र और संसद की गरिमा का भान कराया
जा रहा है। संसद गतिरोध के लिए उसे कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। वहीं, बीजेपी जैसे-तैसे
मिले मुद्दे को पूरी तरह भूनाना चाहती है। सब औपचारिक नियम कायदों को ताक पर
रखकर 2014 पर टकटकी लगाए कोई कसर नही
छोड़ना नहीं चाहाते हैं।
लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इन सबके बीच पत्रकारिता का राजनैतिक चरित्र भी स्पष्ट
हो रहा है। पता चल रहा है किस अखबार का किस पार्टी की ओर झुकाव है। कौन अखबार का
मालिक व संपादक किस पार्टी के फेवर में कैंपेनिंग कर रहे हैं। निष्पक्षता व
पत्रकारिता के उसूलों की बारीक लाइन को किस प्रकार लांघा जा रहा है।
आप अलग-अलग राष्ट्रीय मीडियां ग्रुपों
के चार अखबार रख लीजिए और स्वस्थ समीक्षा कीजिए। दूध का दूध और पानी का पानी हो
जाएगा। कोई आंख मूदकर आरोपियों के पाले में खड़ा नजर आएगा तो कोई विपक्ष के साथ
कंधा मिलाए। कई समाचार माध्यम खुले तौर पर कैग की रिपोर्ट का समर्थन कर रहे है।
वहीं, कुछ माध्यम स्वयं घोषित विशेषज्ञ बन
कैग की रिपोर्ट की जबरन कमियां निकाल रहे हैं। कोई भ्रष्टाचार के मुद्दे को गौण बना
संसद संचालन के गतिरोध में किसी पार्टी को विलेन बनाने में लगा हुआ है। वहीं,
दूसरा मीडिया समूह पक्षपाती मानसिकता से सने नजर आने वाले समूहों से टीवी पर खुली
चर्चा करा रहा है। राष्ट्रीय हित को ताक पर पार्टियों की सत्ता की लिए खुली जंग में
खुली हिस्सेदारी की जा रही है। बड़ी-ब़ड़ी बातें कर विद्वता झाड़ी जा रही है। लेकिन
इन सबके बीज हैरान, परेशान, भ्रमित व चकराया हुआ नजर आ रहा है तो वह है पाठक,
दर्शक व श्रोता।
हां, कुछ एक-दो राष्ट्रीय अखबार अपनी भूमिका निष्पक्ष तरीके से निभा रहे
हैं। वे सभी इस साख संकट के दौर में प्रशंसा के पात्र हैं।
आशीष कुमार
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग
देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार
फोन – +919411400108