मंगलवार, 15 सितंबर 2015

मातृ वियोग

कहानी -


आकाश की उम्र उस समय करीब दस-बारह वर्ष रही होगी। वह घर के नजदीक, गांव के भीतर की ओर जाने वाले प्रमुख रास्ते के किनारे खड़े पीपल के पेड़ के नीचे अपने हमउम्र साथियों के साथ खेल रहा था। वह खेलने में इतना मगन था कि शरीर और कपड़ों पर रेत की परत चढ़ चुकी थी। खेल की धमाचौकड़ी में सभी बच्चों का यही हाल था। उसी वक्त साईकिल पर सवार हो गांव का एक व्यक्ति रास्ते पर खेलते हुए बच्चों के बीच से होकर निकला। बच्चे खेलने में मगन थे, उसे साईकिल निकालने में दिक्कत हुई।
तुम्हें खेलने के लिए कोई और जगह नहीं मिली .... सड़क पर ही मरोगे।’’ साईकिल सवार ने खेलते बच्चों से झुझलाकर कर कहा।
बच्चों ने उसकी डांट पर खिलखिलाकर हस दिया। बच्चों की हसी से साईकिल सवार तिलमिला उठा। उसकी नजर बच्चों के झुंड़ के बीच में खड़े आकाश पर गई। आकाश की ओर अंगुली से इशारा करते हुए, उसने कहा, तेरी मां तो घर से भाग गई  दूसरी जगह बैठ गई है... उसने दूसरा ब्याह लिया और तू यहां सड़क पर ऊधम मचा रहा है ....  थोड़ी बहुत शर्म कर ले।’’
साईकिल सवार की बात सुनकर आकाश का चेहरा लाल हो गया। वह खेलना भूल गया। बच्चों के झुंड़ के बीच से निकलकर, उसने घर की ओर दौड़ लगा दी। आंगन के बीच में चारपाई पर बैठे अपने पिता से साईकिल सवार का नाम लेते हुए, बिना सांस लिए सारी बात बता दी। सारी बात सुनने के बाद भी पिता के चेहरे के भावों में कोई बदलाव नहीं आया। पिता को देखकर आकाश ने आपा खो दिया। वह अपने पिता से कहने लगा, बाबूजी, तुम तो कह रहे थे वह अपने गांव गई है .... वह (साईकिल सवार) कह रहा था तेरी मां ने दूसरी शादी कर ली
पिता ने झुंझलाकर कहा, मैं क्या करूं यदि उसने दूसरी शादी कर ली है तो
पिता के इन संवेदनहीन शब्दों को सुनकर आकाश को सांस लेना भी भारी हो गया। वह जमीन पर गिर गया। थोड़ी देर बाद जोर-जोर से रोने लगा। बारह साल की छोटी सी उम्र में उसे लग रहा था कि जैसे किसी ने झपट्टा मारकर उसके सारे सपनों को छीन लिया हो। उसकी मां उससे बेहद प्यार करती थी। रोज रात को वह मां के हाथ का तकिया बना उसकी बगल में सोता था। 
गांव में उसेक पिता की छवि बहुत अच्छी नहीं थी। उसे लोग असामाजिक और अपनी धुन का पागल कहते थे। गांव में घटने वाली किसी भी सुख-दुख की घटना से उसे कोई लेना-देना नहीं होता था। चाहे किसी की शादी हो या तेरवीं, वह किसी के पास उठने-बैठने नहीं जाता था। वह तो केवल अपने ख्यालों और मान्यताओं को ही सही मानता था। यदि कोई गलती से उससे मजाक भी कर देता था तो वह आगबबूला हो जाता था। उसके व्यवहार को देखते हुए गांव के लोग  उससे कम ही मतलब रखना पसंद करते थे। आय का कोई नियमित श्रोत नहीं था, केवल एक एकड़ जमीन थी, जिसमें परिवार के तीन सदस्यों का खर्चा चलता था। परिवार के सदस्यों में आकाश के अलावा उसकी एक बहन और थी। वह दोनों ही पढ़ाई में तेज थे। बाप जैसा भी हो गांव के लोग दोनों ही बच्चों की बढ़ाई करते थे।
जब से उसने होश संभाला था तभी से उसने अपने पिता को अपनी मां पर जुल्म ढाते हुए देखा था। रोजाना दोनों के बीच किसी न किसी बात पर झगड़ा होता रहता था। झगड़े का अंत उसकी मां की पिटाई के साथ होता था। उसके पिता मां को बड़ी बेरहमी के साथ पीटा करते थे। हाथ में जो कुछ आ जाता था उसी से मां की पिटाई शुरू कर देते थे। कई बार मां को गंभीर चोटें आईं। उसके पिता कहते थे कि सुबह और शाम का खाना बिना नहाए नहीं बनना चाहिए। एक बार उसकी मां ने जाड़े के दिनों में शाम का खाना बिना नहाए बना दिया, इसी बात को लेकर उसके पिता ने मां को डंड़े से पीटा, उसका हाथ टूट गया। उसके पिता अपनी पत्नी को पीटना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते थे।
यदि पिटती मां को बचाने वह और उसकी बहन बीच में आ जाते थे तो उनकी भी पिटाई हो जाती थी। कभी-कभी दादी की भी मां को पिटवाने में भूमिका रहती थी, वह अपने बेटे से बहू की कोई न कोई बुराई करती रहती थी। मां को पिटते देखकर शायद दादी को भी संतुष्टि मिलती थी। पिता के इन सब कारनामों के बावजूद उसकी मां अपने पति का सम्मान ही करती थी। यदि कोई पड़ोसी उसके पति के बारे में बुरा-भला कहता तो वह कहती, यह हमारे पति-पत्नी के बीच का मामला है, उन्हें बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
पति के जुल्मों से परेशान होकर उसकी मां करीब एक साल पहले अपने मायके, भाईयों के पास चली गई थी। मां के छह भाई थे। माता-पिता पहले ही खत्म हो चुके थे। इससे पहले भी मां के भाई अपनी बहन पर हो रहे जुल्मों की खबर सुनकर कई बार गांव आए थे। गांव में इसी मसले को लेकर कई बार पंचायतें भी हुईं थी, लेकिन उसके पिता पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सवर्ण जाति से ताल्लुक रखने के कारण उसके पिता पंचों की बात को अनसुनी कर, उल्टे अपने सालों का अधिकारपूर्ण तरीके से अपमान कर देते थे। गांव के सभी लोग समझा-बुझाकर हार चुके थे।
आकाश का बचपन इन सभी घटनाओं का मूकदर्शक रहा था। पति को छोड़कर पीहर जाने के तीन-चार साल बाद हारकर भाइयों ने मां की शादी कहीं और करा दी। इसी के साथ उसके पिता और मां के बीच का पंद्रह साल पुराना पति-पत्नी का रिश्ता खत्म हो गया।
आकाश गाजियाबाद के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के हॉस्टल की छत पर अकेला बैठा अपने अतीत की इन्हीं सारी बातों को सोच रहा था, उसने तीन वर्ष पूर्व बीटेक में एडिशमन लिया था। उसके पिता ने आधे एकड़ जमीन को बेचकर उसका एडमिशन इंजीनियरिंग में कराया था। आज वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना जैसे-तैसे खर्च चला पाता है। अब उसकी उम्र करीब इक्कीस वर्ष हो चुकी है। उसे पता चला है कि मां की दूसरी शादी के बाद उसके एक बेटा और दो बेटी भी हैं।
आकाश को यह भी कचोटता है कि उसे और उसकी बहन को छोड़ने के दस-ग्यारह सालों के बीच में मां ने उनसे कभी भी संपर्क करने की कोशिश नहीं की। वह सोचता है, मेरा पिता जैसा भी रहा हो.... क्या मां को दूसरी शादी करनी चाहिए  थी?.... क्या मां को मेरे बड़े होने का इंतजार नहीं करना चाहिए था? ….. क्या मां के भाइयों में यानि मेरे मामाओं में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह कुछ वर्ष मेरी मां को अपने पास रख सकें और उसका खर्चा उठा सकें। आकाश सोचता है, यदि मां ने दूसरी शादी न की होती तो वह आज पिता को दरकिनार कर अपनी मां को वापस अपने पास बुला लाता .... पिता द्वारा मां को दिए गए कष्टों को वह जरूर दूर करता .... मां के हरे गए सम्मान और अधिकार को वह दुबारा वापिस दिलाता.... ।
इऩ्हीं बातों को सोचते-सोचते आकाश की आंखें भर आईं। उसे अहसास है कि उसका यह पूरा जीवन मातृ वियोग में ही गुजरेगा। आकाश इन सब घटनाओं के पीछे के कारणों को भाग्य में तलाशने की कोशिश करता है, लेकिन समाधान दिखाई नहीं देता। बाकि बचा है तो केवल मातृ वियोग।


ब्लॉगर्स मीटिंग



13 सितबंर, 2015 को अमृता शेरगिल मार्ग, दिल्ली पर स्थित महफूल अली जी के आवास पर ब्लॉगर्स मीटिंग का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में देशभर से आए हुए ब्लॉगर्स इकट्ठा हुए, जिनमें 'पद्मावली' के पदम सिंह जी, 'चवन्नी चैप' के अजय ब्रह्मत्मज, प्रवीन दहल खुशदिल, गजाला खान, 'पछुआ पवन' व 'हरी धरती' के पवन विजय, रमेश सिंह विष्ठ, मुकेश कुमार सिंह, साजिद अली, अरुण, ब्लॉग एग्रीगेटर 'ब्लॉग प्रहरी' के कनिष्क  कश्यप, 'माई कल्पतरू' व 'वित्त गुरु' के विवेक रस्तोगी, 'प्रेमरस' व 'हमारी वाणी' के शहनवाज सिद्दिकी, 'हिन्दी अकादमी, दिल्ली' के सदस्य सुधाकर पाठक के साथ मैं स्वयं उपस्थित रहा।

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

दूरदर्शन की वरिष्ठ पत्रकार नीलम शर्मा के साथ

दूरदर्शन की वरिष्ठ पत्रकार नीलम शर्मा के साथ

ब्लैक एंड व्हाइट स्नैप

ASHISH KUMAR

मीडिया की स्वतंत्रता और राष्ट्रहित




यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे देश के पास संविधान के अनुसार चलने वाला लोकतांत्रिक ढांचा है, .... लेकिन मिजाज के स्तर पर हमारी लोकतांत्रिकता सदैव सवालों के घेरे में रही है। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने देश को संविधान सौंपते समय इस बात को लेकर चेताया था..... उन्होंने लोकतांत्रिक मजबूती के लिए सामाजिक-आर्थिक गैर बराबरी के खात्मे की बात कही, लेकिन ... जमीनी हकीकत यह है कि राजनीतिक और सिविल सोसाइटी के स्तर पर इस ओर कभी कोई ठोस पहल नहीं हुई।
भीषण गैर बराबरी आधारित हमारे समाज में कुछ व्यक्तियों, परिवारों और समूहों का लगातार ताकतवर होते जाना कोई संयोग नहीं है।.... संयोग तो इस बात का है कि कुछ एक बाधाओं के बावजूद हमारा लोकतांत्रिक ढांचा कायम है।
आमतौर पर हम प्रत्येक वर्ष जून के अंतिम सप्ताह में इमरजेंसी के काल को याद करने का कर्मकांड करते हैं, जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित जनहित को प्रभावित किया था। इस दौरान तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं को गला मरोड़ा गया था.... इसमें मीडिया भी एक था। उस समय देश के एक बड़े नेता ने बड़ी दिलचस्प टिप्पणी की थी... मीडिया से जब झुकने को कहा था तो वह घुटनों के बल रेंगने लगा। मीडिया ने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ..... अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी आजादी और राष्ट्रहित से समझौता कर लिया।
मीडिया के प्राइवेटाइजेशन के बाद अखबारों खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अभूतपूर्व विस्तार किया है। ...... आज देश में समाचार चैनलों और अखबारों का अंबार लगा हुआ है। इन अखबार और समाचार चैनलों पर घोषित सेंसरशिप नहीं है, लेकिन सेल्फ सेंसरशिप का दायरा साफ दिखता है।
कई बार साफ दिखता है कि मीडिया का एक बड़ा हिस्सा निजी हितों के लिए राष्ट्रहितों को दरकिरनार कर देता है। खबरों को अपने व्यावसायिक एजेंडे के तहत चलाया जाता है।
हालांकि इस मसले पर कोई यह भी कह सकता है कि हम मीडिया को बेवजह दोष दे रहे हैं। लेकिन वर्ल्ड  प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है ..... 180 देशों की इस सूची में भारत का 136वां स्थान है।
क्या पूंजी और वर्चस्व की शक्तियों के तिकड़म के चलते मीडिया ने जन माध्यमों की स्वतंत्रता, जनसरोकारों और राष्ट्रहितों को नजरअंदाज कर दिया है। इन हालत में मीडिया का भविष्य क्या होगा? ...... पूंजीवादी मीडिया और राजनीति की चुनौतियों के बीच राष्ट्रहित कैसे टिकेंगे? … 

शनिवार, 5 सितंबर 2015

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में अपने बैच 2008-10 के साथियों के साथ