सोमवार, 9 अप्रैल 2012

प्रगतिशील वनविनाश


Author: 
 सोशल वॉच की रिपोर्ट
थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फिचर्स
तंजानिया में वर्ष 1990 एवं 2005 के मध्य वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत की कमी आई है और बढ़ती गरीबी के चलते लकड़ी का उपयोग भी बढ़ा है। वहीं सेनेगल और सोमालिया में स्थानीय एवं निर्यात के लिए कोयला बनाने की वजह से वनों का बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा है। यही स्थिति सूडान की भी है। द सोशल वॉच 2011 की मलेशिया की राष्ट्रीय रिपोर्ट इस खतरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा कर रही है कि स्थानीय समुदाय वनों के विनाश से न केवल अपनी जीविका ही खो रहा है बल्कि वनों की विलुप्ति के साथ उसकी पारम्परिक जीवनशैली एवं संस्कृति भी विलुप्त हो रही है।
विश्व आर्थिक संकट की ही तरह वन विनाश के भी कई कारण सामने आ रहे हैं। इसमें प्रमुख हैं बाजार में मूल उत्पादों और कृषि भूमि की मांग में वृद्धि, गरीबी की बढ़ती समस्या, जलवायु परिवर्तन, पेड़ों का लकड़ी एवं ईंधन के लिए कटना। उपरोक्त निष्कर्ष सोशल वॉच रिपोर्ट - 2012 से सामने आए हैं। पिछले कुछ वर्षों में ऊर्जा के बढ़ते मूल्यों के चलते निर्धनतम वर्ग द्वारा एक बार पुनः लकड़ी एवं कोयले के इस्तेमाल करने की वजह से भी वन संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। लेकिन यह दुष्चक्र जारी है। वनों के विलुप्त होने से हमारे ग्रह की कार्बन सोखने की क्षमता में आई कमी के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन से निपट पाना भी कठिन होता जा रहा है। कानूनों में व्याप्त ढिलाई के कारण भी समस्या और गहराती जा रही है। रिपोर्ट के यूरोप से संबंधित अध्याय में ‘इंडिजेनाडोय’ में चेतावनी देते हुए बताया गया है कि यूरोपीय संघ की अपने पशुधन के लिए चारे हेतु विदेशों पर निर्भरता ने ‘विदेशों में भूमि की मांग में हुई वृद्धि’ की वजह से विश्व भर में वनों का सामाजिक विनाश सामने आ रहा है।
वैश्विक विकास को लेकर प्राथमिक घोषणापत्र (रियो $ 20 के आगे: न्याय के बिना कोई भविष्य नहीं) में तेजी से फैलते अस्थिर उत्पादन एवं उपभोग की प्रवृत्ति को प्राकृतिक संसाधनों में तेजी से हो रही कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। इसी प्रवृत्ति को वैश्विक तापमान में वृद्धि, अतिवादी मौसम की निरन्तर आवृत्ति, रेगिस्तानीकरण एवं वनों के विनाश के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। रिपोर्ट में फिनलैंड द्वारा किए जा रहे वनों के विनाश का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि ‘वर्तमान में कई मुख्य फिनिश कंपनियां जो कि स्वयं को विश्व की सर्वोच्च कंपनी मानती हैं, के ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें उनके द्वारा अधिक संख्या में यूकेलिप्टस के लगाए जाने से आबादी का पलायन हुआ है एवं बड़ी मात्रा में भूमि हथियाई गई है।’ रिपोर्ट के अनुसार यहां की कमोवेश राज्य के स्वामित्व वाली कंपनी ‘नेस्ले आईल’ जो कि विश्व में बायो ईंधन में अग्रणी होने को तड़प रही है, ने मुख्यतया मलेशिया, इंडोनेशिया में व्यापक स्तर पर भूमि एवं वर्षा वनों के उपयोग में परिवर्तन कराया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये क्षेत्र निर्विवाद रूप से विश्व में सर्वाधिक कार्बन सोखने का कार्य करते थे। यहां नेस्ले की रिफायनरियों को तेल आपूर्ति हेतु आरक्षित भूमि करीब 7 लाख हेक्टेयर है।

जाम्बिया की स्थिति तो और भी विकट है। पिछले दशक में यहां प्रतिवर्ष औसतन 3 लाख हेक्टेयर वन नष्ट होने का अनुमान था। लेकिन मात्र एक वर्ष 2008 में 8 लाख हेक्टेयर वन कम हुए हैं। वर्ष 1990 एवं 2010 के मध्य देश में वनों के क्षेत्र में 6.3 प्रतिशत या 33 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। ब्राजील में भी वनों की कटाई एवं अमेजन वनों में लगी आग कमोवेश ‘कृषि के विस्तार’ का परिणाम ही कही जाएगी। वहीं दूसरी ओर ताकतवर लॉबी के कारण वन नियमावली में परिवर्तन कर अमेजन में पारम्परिक वन का अनुपात 80 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। पेरु का अमेजन वन क्षेत्र दुनिया का आठवां एवं लेटिन अमेरिका का दूसरा सबसे बड़ा वन क्षेत्र है। पिछले कई दशकों से यहां के वन भी घरों के लिए ईंधन के साथ ही साथ कटाई एवं खेती के लिए वन जलाने हेतु प्रचलित पद्धति के कारण विनाश की ओर अग्रसर हैं। यहां पर मैंग्रोव वनों एवं शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क वनों का क्षेत्र प्रतिवर्ष करीब 1,50,000 हेक्टेयर सिकुड़ रहा है।

ग्वाटेमाला में अमीर देशों के लिए गन्ना एवं निकारागुआ में कॉफी की एकल खेती की वजह से भी वनों को हानि पहुंची है। निकारागुआ के कृषि निर्यात मॉडल की वजह से ‘प्रगतिशील वन विनाश’ हुआ है। 1980 के दशक में जब कोको की कीमतों में कमी आई तो सरकार ने उत्पादन में वृद्धि के लिए अपने उष्णकटिबंधीय वनों का और अधिक विनाश किया। ग्वाटेमाला में रस निकालने एवं घरों के लिए ईंधन की वजह से वहां के पारम्परिक वन 80 हजार हेक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रहे हैं और यदि यही स्थिति बनी रही तो इस देश में वर्ष 2040 तक वनों का नामोनिशान मिट जाएगा।



निकारागुआ में अवैध कटाई, कृषि विस्तार एवं वनों में आग, जो कि अक्सर जानबूझकर फसलों हेतु नई भूमि प्राप्त करने के लिए लगाई जाती है, की वजह से प्रतिवर्ष 75,000 हेक्टेयर वनों का विनाश हो रहा है। यहां के घरों में खाने पकाने का 76 प्रतिशत ईंधन लकड़ियों से प्राप्त होता है। मौजूदा 1.2 करोड़ हेक्टेयर वनों में से 80 लाख हेक्टेयर वन बर्बाद हो चुके हैं। यही स्थिति पनामा की भी है यहां वर्ष 1970 में वन क्षेत्र 70 प्रतिशत था, जो कि वर्ष 2011 में घटकर 35 प्रतिशत ही रह गया है। अर्जेंटीना में वर्ष 1937 से 1987 के मध्य करीब 23553 वर्ग किलोमीटर वन नष्ट हुए वहीं वर्ष 1998 से 2006 के मध्य प्रतिवर्ष करीब 2500 वर्ग किलोमीटर वनों का विनाश हुआ। यानि यहां प्रति दो मिनट में एक हेक्टेयर वन विलुप्त हो जाता है। देश की राष्ट्रीय रिपोर्ट इसके लिए वनों का असंगठित रूप से दोहन, कृषि क्षेत्र के विस्तार, सार्वजनिक नीतियों की कमी एवं पारम्परिक प्रजातियों के पुनः वनीकरण हेतु निजी क्षेत्र को दिए जाने वाले प्रोत्साहन को जिम्मेदार ठहराती है।

म्यांमार (बर्मा) में वन एवं खनन कानूनों का क्रियान्वयन नहीं होता। इसी वजह से वर्ष 1990 एवं 2005 के मध्य यहां पर 25 प्रतिशत वनों का विनाश हुआ लेकिन उसके परिणामों पर कोई विचार ही नहीं करता। फिलीपींस में भी उपरोक्त समस्याएं बड़े पैमाने पर मौजूद हैं, जिसके परिणामस्वरूप वहां का वन क्षेत्र 40 प्रतिशत घटकर 27 प्रतिशत रह गया है। वहीं श्रीलंका तो अपने मूल वनों में से महज 1.5 प्रतिशत वनों को ही सुरक्षित रख पाया है। रिपोर्ट में इसकी वजह ब्रिटिश साम्राज्यकालीन औपनिवेशिक नीतियों को बताया है जिसके तहत रबर, कॉफी एवं चाय के बागान हेतु बड़ी मात्रा में वन काटे गए थे। इतना ही नहीं वर्ष 1990 से 2005 तक चले आंतरिक संघर्षों की वजह से वहां विश्व के प्राथमिक वनों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा और इसकी वजह से बचे हुए वनों का भी 18 प्रतिशत नष्ट हो गया। वर्ष 2004 के बाद नवनिर्माण की पहल के चलते वनों के विनाश में और अधिक तेजी आई है।

मध्य अफ्रीकी गणतंत्रों में खाद्य असुरक्षा (जलवायु परिवर्तन की वजह से) के चलते किसान अपनी खेती का क्षेत्र बढ़ाने हेतु वनों को काट रहे हैं। यहां की 90 प्रतिशत आबादी द्वारा खाना पकाने के लिए लकड़ी के इस्तेमाल की वजह से स्थितियां और भी बदतर हो रही हैं। नाईजीरिया में किसानों के साथ शिकारी भी जल्दी शिकार के लिए वनों को जला रहे हैं। तंजानिया में वर्ष 1990 एवं 2005 के मध्य वन क्षेत्र में 15 प्रतिशत की कमी आई है और बढ़ती गरीबी के चलते लकड़ी का उपयोग भी बढ़ा है। वहीं सेनेगल और सोमालिया में स्थानीय एवं निर्यात के लिए कोयला बनाने की वजह से वनों का बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा है। यही स्थिति सूडान की भी है। द सोशल वॉच 2011 की मलेशिया की राष्ट्रीय रिपोर्ट इस खतरनाक प्रवृत्ति की ओर इशारा कर रही है कि स्थानीय समुदाय वनों के विनाश से न केवल अपनी जीविका ही खो रहा है बल्कि वनों की विलुप्ति के साथ उसकी पारम्परिक जीवनशैली एवं संस्कृति भी विलुप्त हो रही है।

क्या मैदानी क्या रेतीली- सभी जगह पानी की कमी

ऐसा नहीं है कि पेयजल की समस्या केवल मैदानी क्षेत्र भरावन में ही बनी हुई है। तपती धूप और निरंतर नीचे गिरता सतर गोमती नदी तलहटी में बसें गांवों भटपुर, कटका, महीठा के डालखेड़ा, लालपुर खाले, जाजपुर, बेहड़ा, नई गढ़ी इत्यादि गांवों में भी पेयजल की समस्या से लोग जुझ रहे है। गोमती नदी के किनारे बसे भटपुर गांव व सड़क के चौराहे पर भी पेयजल की गम्भीर समस्या बनी हुई है। चौराहे पर इण्डिया मार्का नल की कमी हैं दूर-दूर से लोग यहां आते हैं परन्तु पीने के पानी की किल्लत से लोग परेशान होते हैं। रामप्रकाश तिवारी, केशव दीक्षित, अनूप, जयकेश, शैलेन्द्र आदि लोग पानी की समस्या के बारे में कहते हैं कि यहां चौराहे पर व गांव में कई स्थानों पर इण्डिया मार्का नलों की आवश्यकता है यहां भी जल स्तर तेजी से गिर रहा है।

जाजूपुर, बेहड़ा के लोग सियाराम राजेश गौतम, रामअवतार, राजाराम, रामकेशन, सुशीला, कुन्ती देवी, रिंकी आदि बताते हैं कि गांवों के कुएं सूख गए हैं। छोटे नलों से भी पानी उठाना भारी पड़ रहा है। नई फसल धान आदि के लिए बेढ़ लगाने हेतु सिंचाई जल की समस्या है। सियाराम, भगीरथ, हरीराम आदि के घरों के 200 मीटर के आसपास कोई इण्डिया मार्का नल न होने के कारण दूर से पानी ढोना पड़ता है। लोगों ने बताया कि कहीं-कहीं बिल्कुल पास-पास नल लगे हैं और कहीं-कहीं एक भी इण्डिया मार्का हैण्ड पंप नहीं है। जल ही जीवन है पर पीने के पानी की किल्लत ने उनका जीवन प्रभावित कर दिया है।

भरावन में 63 वर्षीय राजकिशोर त्रिपाठी जी ने बताया कि वे अभी हाल में ही अध्यापक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। 500 मीटर की परिधि तक कोई इण्डिया मार्का हैण्डपंप न होने से उन्हें सुबह 4 बजे ही उठकर पानी लाना पड़ता है। एक दिन का उनके घर परिवार व जानवरों को मिलाकर 60 बाल्टी का खर्चा है वे कहते हैं कि इस उम्र में इतना पानी ढोकर लाना बहुत ही कठिन है पर क्या करें पानी के बिना जिन्दा नहीं रहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि पानी की चिन्ता में उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आती है लगभग 80 परिवारों जिसमें एक हजार से ऊपर लोग रहते हैं के ब मोहल्ले में कोई इण्डिया मार्का हैण्डपंप न होने से लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। श्री तिवारी जी ने बताया कि चुनाव के समय जब श्री रामपाल वर्मा जी उनके मुहल्ले व उनके दरवाजे वोट मांगने आए थे तो उन्होंने जोर से रामपाल वर्मा जिंदाबाद के नारे लगाए थे उन्हें वोट भी दिया हम उनके समर्थक भी हैं पर अब वे मंत्री जी हैं हम उन तक नल मांगने नहीं पहुंच पा रहे हैं मुझे नल की अति आवश्यकता है पूरे मोहल्ले के लिए विकट समस्या है उन्होंने बताया कि हमारे पीने के पानी की समस्या को दूर करने हेतु एक इण्डिया मार्का हैण्डपंप दिला दो हम आपके बहुत-बहुत जीवन भर आभारी रहेंगे

भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच


भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही है जबकि विश्व की जनसंख्या का 16.7 प्रतिशत जनसंख्या भारत वर्ष में निवास करती है। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ रहा है। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, लोग वांचित होते जा रहे हैं आईये देखें - भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच 






 भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच
           
No
राज्य/

केन्द्रशासित प्रदेशों
1981
1991
ग्रामीण
शहरी
संयुक्त
ग्रामीण
शहरी
संयुक्त









भारत
26.50
75.06
38.19
55.54
81.38
62.30








1
आंध्र प्रदेश 
15.12
63.27
25.89
48.98
73.82
55.08
2
अरुणाचल प्रदेश 
40.16
87.93
43.89
66.87
88.20
70.02
3
असम
-
-
-
43.28
64.07
45.86
4
बिहार 
33.77
65.36
37.64
56.55
73.39
58.76
5
दिल्ली 
62.26
94.91
92.97
91.01
96.24
95.78
6
गोवा 
8.57
52.31
22.50
30.54
61.71
43.41
7
गुजरात 
36.16
86.78
52.41
60.04
87.23
69.78
8
हरियाणा 
42.94
90.72
55.11
67.14
93.18
74.32
9
हिमाचल प्रदेश 
39.56
89.56
44.50
75.51
91.93
77.34
10
जम्मू और कश्मीर 
27.95
86.67
40.28
-
-
-
11
कर्नाटक 
17.63
74.40
33.87
67.31
81.38
71.68
12
केरल 
6.26
39.72
12.20
12.22
38.68
18.89
13
मध्य प्रदेश 
8.09
66.65
20.17
45.56
79.45
53.41
14
महाराष्ट्र 
18.34
85.56
42.49
54.02
90.50
68.49
15
मणिपुर 
12.91
38.71
19.54
33.72
52.10
38.72
16
मेघालय 
14.26
74.40
25.11
26.82
75.42
36.16
17
मिज़ोरम 
3.57
8.79
4.88
12.89
19.88
16.21
18
नागालैंड 
43.43
57.18
45.63
55.60
45.47
53.37
19
उड़ीसा 
9.47
51.33
14.58
35.32
62.83
39.07
20
पंजाब 
81.80
91.13
84.56
92.09
94.24
92.74
21
राजस्थान 
13.00
78.65
27.14
50.62
86.51
58.96
22
सिक्किम 
21.70
71.93
30.33
70.98
92.95
73.19
23
तमिलनाडु 
30.97
69.44
43.07
64.28
74.17
67.42
24
त्रिपुरा 
22.17
67.92
27.33
30.60
71.12
37.18
25
उत्तर प्रदेश 
25.31
73.23
33.77
56.62
85.78
62.24
26
. बंगाल 
65.78
79.78
69.95
80.26
86.23
81.98
27
अंडमानऔर निकोबार
36.25
91.95
51.64
59.43
90.91
67.87
28
चंडीगढ़ 
94.39
99.39
99.09
98.11
97.68
97.73
29
दादरा व नगर हवेली 
16.85
54.35
19.35
41.17
90.97
45.57
30
दमन और दीव 
46.42
67.04
54.48
55.87
86.76
71.42
31
लक्षद्वीप 
0.97
3.65
2.19
3.41
18.79
11.90
32
पांडिचेरी
76.88
84.18
80.59
92.86
86.05
88.75