Vallabh Bhai Patel |
इतिहास कैसे रचा जाता है इसका इतिहास जानने के लिए भारत में वल्लभ भाई पटेल का प्रयास प्रत्यक्ष प्रमाण है। संकल्प, साहस, सूझ-बूझ के धनी पटेल ने तत्कालीन 565 से भी अधिक देशी रियासतों का भारत मे विलीनीकरण करके राष्ट्रीय एकता के सूत्रधार के रूप में इतिहास रच दिया है। भारत को सुदृढ़ बनाना उनका सपना था।
जिसे प्रज्ञा और पुरूषार्थ से उन्होंने साकार कर दिया। राष्ट्रीय एकता के शिल्पी के रूप में समय स्वयं उनके कृतित्व के चंवर डुलाता है और इतिहास उनके व्यक्तित्व को पलकों पर बैठाता है। उनकी प्रकृति में पुरूषार्थ, संस्कार में स्वाभिमान, सोच में सार्थकता और संवाद मे स्पष्टवादिता थी। मंदिर पर कलश की तरह उनका कृतित्व और बर्फ की चट्टान में आग की तलवार की तरह व्यक्तित्व था। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। उनके पिता झबेर भाई बोरसद ताल्लुका के करमसद गांव के निवासी थे। वे पेशे से साधारण किसान थे। उनकी माता लाड़बाई तथा पिता ने साहस, सच्चाई और सादगी के संस्कार तो सिखाए ही पुरूषार्थ और पराक्रम का पाठ भी पढ़ाया। प्रारंभ में प्रांतीय किसान नेता के रूप में तथा आगे चल कर देश के दिग्गज और दिलेर नेता के रूप में वे अपने फौलादी व्यक्तित्व के कारण लौह पुरूष कहलाए।
15 दिसंबर 1950 को उनका स्वर्गवास हो गया। सरदार पटेल असत्य के आलोचक और सत्य के समर्थक थे। कितना ही शक्तिशाली व्यक्तित्व क्यों न हो अगर वह अहंकारी व अन्यायी होता तो उसे मुंह पर फटकारने का पटेल में गजब का नैतिक साहस था, लेकिन स्वयं से गलती होने पर स्वीकारने की अद्भुत गुण भी उनमें था। उदाहरण के लिए गुजरात क्लब के आमंत्रण पर जब महात्मा गांधी व्याख्यान देने आए तो पटेल ने गांधी जी की उपेक्षा करते हुए कहा मैं इस प्रकार सत्यागृहीयों को समर्थन नहीं करता हूं
जिसे प्रज्ञा और पुरूषार्थ से उन्होंने साकार कर दिया। राष्ट्रीय एकता के शिल्पी के रूप में समय स्वयं उनके कृतित्व के चंवर डुलाता है और इतिहास उनके व्यक्तित्व को पलकों पर बैठाता है। उनकी प्रकृति में पुरूषार्थ, संस्कार में स्वाभिमान, सोच में सार्थकता और संवाद मे स्पष्टवादिता थी। मंदिर पर कलश की तरह उनका कृतित्व और बर्फ की चट्टान में आग की तलवार की तरह व्यक्तित्व था। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। उनके पिता झबेर भाई बोरसद ताल्लुका के करमसद गांव के निवासी थे। वे पेशे से साधारण किसान थे। उनकी माता लाड़बाई तथा पिता ने साहस, सच्चाई और सादगी के संस्कार तो सिखाए ही पुरूषार्थ और पराक्रम का पाठ भी पढ़ाया। प्रारंभ में प्रांतीय किसान नेता के रूप में तथा आगे चल कर देश के दिग्गज और दिलेर नेता के रूप में वे अपने फौलादी व्यक्तित्व के कारण लौह पुरूष कहलाए।
15 दिसंबर 1950 को उनका स्वर्गवास हो गया। सरदार पटेल असत्य के आलोचक और सत्य के समर्थक थे। कितना ही शक्तिशाली व्यक्तित्व क्यों न हो अगर वह अहंकारी व अन्यायी होता तो उसे मुंह पर फटकारने का पटेल में गजब का नैतिक साहस था, लेकिन स्वयं से गलती होने पर स्वीकारने की अद्भुत गुण भी उनमें था। उदाहरण के लिए गुजरात क्लब के आमंत्रण पर जब महात्मा गांधी व्याख्यान देने आए तो पटेल ने गांधी जी की उपेक्षा करते हुए कहा मैं इस प्रकार सत्यागृहीयों को समर्थन नहीं करता हूं
ये लोग अंजीनिर्वासी करके परम शक्तिशाली ब्रिटिश शासन को यहां से उखाड़ फेंकेगे मुझे इसमें बहुत संदेह है।" लेकिन कालांतर में चंपारण जिले में गांधी जी द्वारा जा रहे सत्यागृह को देखकर चमत्कृत और अभिभूत हो गए थे। तब से वे गांधी जी कीआंदोलन पद्धति के प्रशंसक और भक्त बन गए थे। यही कारण था कि उन्होंने सत्याग्रह के महात्मा गांधी के दर्शन को क्रांतिकारी निरूपित किया। उन्होंने खुद सत्याग्रह के कई प्रयोग करके अन्याय व आतंक को ध्वस्त किया। गांधी जी के साथ उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। जिससे उनकी संघर्ष शक्ति और बढ़ गई। नागपुर का झंडा सत्याग्रह, बारडोली का ताल्लुका सत्याग्रह, उनकी ख्याति मे चार चांद लगा गया।
वे टे्रड यूनियन संबंधी सुधारों और आंदोलनों के भी प्रेरणा पुंज थे। जब भारत आजाद हुआ तो जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व मे उन्हें गृह विभाग के साथ-साथ देशी रियासतों का विभाग भी दिया गया। पटेल ने विवेक और- पुरूषार्थो का प्रयोग करके देशी रियासतों का भारत में विलीनीकरण करके भारत को एकता के सूत्र में पिरोया। यह उनकी दूरदृष्टि और व्यूह रचना का परिणाम था कि जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों का विलय उन्होंने भारत में कराया। हैदराबाद विलय टेढ़ी खीर था, लेकिन पटेल ने अपने अदम्य साहस से वह कर दिखाया।
शेख अब्दुला के प्रभाव में आकर नेहरू जी ने कश्मीर मामले को पटेल के रियासत विभाग से अलग कर दिया। बतौर प्रधानमंत्री नेहरू जी ने कश्मीर को विशेष्ा राज्य के रूप में अपने हाथ में ले लिया था। बाद में कश्मीर के मामले को नेहरू जी संयुक्त राष्ट्र में लेकर गए तब से ही कश्मीर की समस्या सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है। पटेल की एक शक्तिशाली सैनिक कार्रवाई कश्मीर समस्या को सदा के लिए सरलता से सुलझा सकती थी। पटेल ने बड़े दुख से कहा था कि "जवाहरलाल और गोपालस्वामी अयंगर ने कश्मीर को व्यक्तिगत विष्ाय बनाकर मेरे गृह विभाग तथा रियासत विभाग से अलग न किया होता तो कश्मीर समस्या उसी प्रकार हल होती जैसे हैदराबाद की।"
वे टे्रड यूनियन संबंधी सुधारों और आंदोलनों के भी प्रेरणा पुंज थे। जब भारत आजाद हुआ तो जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व मे उन्हें गृह विभाग के साथ-साथ देशी रियासतों का विभाग भी दिया गया। पटेल ने विवेक और- पुरूषार्थो का प्रयोग करके देशी रियासतों का भारत में विलीनीकरण करके भारत को एकता के सूत्र में पिरोया। यह उनकी दूरदृष्टि और व्यूह रचना का परिणाम था कि जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतों का विलय उन्होंने भारत में कराया। हैदराबाद विलय टेढ़ी खीर था, लेकिन पटेल ने अपने अदम्य साहस से वह कर दिखाया।
शेख अब्दुला के प्रभाव में आकर नेहरू जी ने कश्मीर मामले को पटेल के रियासत विभाग से अलग कर दिया। बतौर प्रधानमंत्री नेहरू जी ने कश्मीर को विशेष्ा राज्य के रूप में अपने हाथ में ले लिया था। बाद में कश्मीर के मामले को नेहरू जी संयुक्त राष्ट्र में लेकर गए तब से ही कश्मीर की समस्या सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है। पटेल की एक शक्तिशाली सैनिक कार्रवाई कश्मीर समस्या को सदा के लिए सरलता से सुलझा सकती थी। पटेल ने बड़े दुख से कहा था कि "जवाहरलाल और गोपालस्वामी अयंगर ने कश्मीर को व्यक्तिगत विष्ाय बनाकर मेरे गृह विभाग तथा रियासत विभाग से अलग न किया होता तो कश्मीर समस्या उसी प्रकार हल होती जैसे हैदराबाद की।"
साभार .........
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