न्यू मीडिया बनाम प्रिंट मीडिया
आज के दौर में प्रिंट
मीडिया और न्यू मीडिया दोनों ही अभिव्यक्ति और सूचना के मुख्य साधन हैं। प्रिंट
मीडिया का इतिहास काफी पुराना है, वहीं न्यू मीडिया अभी नया है। दोनों की अपनी
प्रासंगिकता और सीमाएं हैं। प्रिंट और न्यू मीडिया में कुछ बुनियादी अंतर भी है। कई
मायनों में दोनों की अलग−अलग शैलियां, अलग−अलग प्रस्तुति और अलग−अलग प्रभाव हैं। आम धारणा है कि प्रिंट
मीडिया ज्यादा गंभीर और विस्तृत है। न्यू मीडिया में सूचनाओं की तेजी है। दोनों ही
माध्यम मानव समाज के विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इनके जरिए लोगों में अपने
अधिकारों प्रति जागरूकता आ रही है और सूचनाओं में हिस्सेदारी कर पा रहे हैं।
सोलहवीं सदी के
बाद कई सदियों तक जनसंचार और जनसूचना माध्यम के रूप में प्रिंट मीडिया का एकछत्र
राज्य रहा है। प्रिंट मीडिया स्थिर, स्थायी, निश्चिंत, अपरिवर्तित भाव से बढ़ता रहा है। पिछली सदी के मध्य पड़ाव
पर जाकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसकी शांति भंग की थी। शुरूआती दौर में
इलेक्ट्रानिक मीडिया को प्रिंट मीडिया के लिए खतरे के रूप में परिभाषित करने की
कोशिश की गई थी, लेकिन समय के साथ साफ हो गया कि दोनों माध्यमों का अलग-अलग वजूद
है। एक दूसरे के लिए खतरा बनने की बजाए दोनों ही माध्यम साथ−साथ आगे बढ़ते रहे
हैं।
अरसे बाद प्रिंट मीडिया
की निश्चलता में दूसरा बड़ा चुनौती को दौर आया है, न्यू मीडिया के जरिए। न्यू
मीडिया, यानी ऐसा मीडिया
जिसके कंटेंट के निर्माण में या पेश करने में कंप्यूटर या अन्य डिजिटल यंत्रों की
कोई न कोई भूमिका होती है। भारत में, 1995 में आम लोगों तक इंटरनेट की पहुंच के
बाद से न्यू मीडिया का दायरा और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। इसी के साथ प्रिंट
मीडिया बनाम न्यू मीडिया की बहस का भी जन्म हुआ है।
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